बच्चों को योग्य बनाएं

By: Aug 4th, 2018 12:05 am

श्रीश्री रविशंकर

इन दिनों माता-पिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वे अपने बच्चों के समक्ष एक स्वप्न रखकर बच्चों को उस पर चलने के लिए प्रेरित कैसे करें। आपको अपने बच्चों को बहुमुखी प्रवृत्तियों से परिचित कराना आवश्यक है, जैसे विज्ञान, कला और सबसे महत्त्वपूर्ण है सेवा। ये सुनिश्चित करें कि बच्चों की दृष्टि विशाल हो साथ ही उनकी जड़ें भी गहरी हों। प्रत्येक बालक इस धरती पर कुछ निश्चित प्रकृति और मूलभूत सोच के साथ आया है, जो बदली नहीं जा सकती है। माता-पिता के रूप में उनको स्वप्न के लिए प्रेरित करना आवश्यक है, लेकिन झूठी आशा जगानी ठीक नहीं है। यह सुनिश्चित कर लें कि आपके बालक की दाएं और बाएं मस्तिष्क की गतिविधियां ठीक हैं। विद्या की देवी सरस्वती की अवधारणा विश्व में अनूठी है। उनके एक हाथ में वीणा संगीत का यंत्र और दूसरे हाथ में पुस्तक ज्ञान का चिन्ह। पुस्तक बाएं मस्तिष्क की प्रवृत्तियों को दर्शाता है और संगीत दाएं मस्तिष्क की। जप माला भी है, जो कि ध्यानमग्नता के पहलु पर प्रकाश डालती है। इस प्रकार गान, ज्ञान और ध्यान ये तीनों मिलकर सभी पहलुओं से शिक्षा को पूर्ण करते हैं। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं उनमें कई प्रकार की मनोग्रंथियों का विकास होने लगता है। एक अभिभावक के रूप में उनके विभिन्न आयु वर्ग के अनुसार व्यवहार का सूक्ष्म अध्ययन करके आपको महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। इस प्रकार उनके व्यवहार को देखकर आप समझ सकते हैं कि उनमें कोई हीन भावना का विकास तो नहीं हो रहा या फिर वे पूर्ण अंतर्मुखी या ब्राह्यमुखी तो नहीं हो रहे।  आप उनका व्यक्तित्व केंद्रित गुणवान सरल और सभी ग्रंथियों से मुक्त हो ऐसे ढाल सकते हैं। जब एक बच्चा आपके पास आकर आपसे शिकायत करता है, तो आप क्या करते हैं? क्या आप उनकी नकारात्मकता को बढ़ावा देते हैं या उसे सकारात्मकता में ढाल देते हैं? यहां पर आपको एक संतुलित भूमिका निभानी होती है। यदि वे किसी के बारे में आकर नकारात्मक बातें करते हैं, तो आपको सकारात्मकता का दर्पण बनना होगा। प्रकृति के अनुसार बालक में भरोसा रखने की प्रवृति होती है, लेकिन जब वे बड़े होते हैं, तो उनका विश्वास कहीं न कहीं टूट या हिल जाता है। एक स्वस्थ बालक में तीन प्रकार का विश्वास होता है पहला दिव्यता में, दूसरा लोगों में और तीसरा लोगों की अच्छाई में। ये तीन प्रकार के विश्वास ही एक बालक को गुणवान और प्रतिभाशाली बनाने के लिए आवश्यक तत्त्व हैं। यदि आप उनसे ये ही कहते रहेंगे कि यहां सभी झूठे या धोखेबाज हैं, तो उनका लोगों और समाज से विश्वास उठ जाता है और इसका असर हर रोज की उनकी बातचीत पर पड़ता है। यदि उनका लोगों से, समाज से और लोगों की अच्छाई से विश्वास हट जाता है फिर वे चाहे कितने भी योग्य हों उनकी सारी योग्यता किसी के काम नहीं आती और वे कुछ भी करें असफल ही रहते है। जब हम विश्वास का वातावरण बनाते हैं, तो बच्चे बुद्घिमान बनकर बड़े होते हैं, लेकिन यदि हम नकारात्मकता, परेशानी, उदासी और क्रोध का वातावरण बनाते हैं तो वे बड़े होकर यही सब वापस लौटाते हैं। हर रोज जब आप काम से लौटें तो उनके साथ खेलें या हंसे।


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