भयमुक्त जीवन

By: Aug 4th, 2018 12:05 am

ओशो

प्रेम का शास्त्र इसके बिलकुल विपरीत है। वह अच्छे को अभय करता है, बुरे को भयभीत करता है। भयभीत करता है नहीं, बुरा अपने आप भयभीत होता है। अच्छा अपने आप अभय को उपलब्ध होता है, क्योंकि जितनी ही प्रेम में गति होती है उतना ही अभय उपलब्ध होता है, प्रेम से भरा हुआ व्यक्ति डरता नहीं, कोई कारण डरने का न रहा। प्रेम मृत्यु से भी बड़ा है। तुम मृत्यु से भी नहीं डर सकते। प्रेमी मर सकता है शांति से जीवन को भी दांव पर लगा सकता है, क्योंकि जीवन से भी बड़ी चीज उसे मिल गई। जब बड़ी चीज मिलती हो, तो छोटी चीज को दांव पर लगाया जा सकता है। मनुष्य आज तक भय को आधार बना कर जिया है। इसलिए कुछ आश्चर्य नहीं है कि मनुष्य जीवन नरक हो गया हो। भय नरक का द्वार है। प्रेम अगर स्वर्ग का द्वार है, तो भय नरक का। समाज की, राज्य की सारी व्यवस्था भय प्रेरित है। हमने डरा कर लोगों को अच्छा बनाने की कोशिश की है और डर से बड़ी कोई बुराई नहीं है। यह तो ऐसे ही है जैसे कोई जहर से लोगों को मारने की कोशिश करे। भय सबसे बड़ा पाप है और उसको ही हमने आधार बनाया है जीवन के सारे पुण्यों का। तो हमारे पुण्य भी पाप जैसे हो गए हैं। इसे हम थोड़ा समझने की कोशिश करें। सुगम है लोगों को भयभीत कर देना। प्रेम से आपूर्ति करना तो बहुत कठिन है, क्योंकि प्रेम के लिए चाहिए एक आंतरिक विकास। भय के लिए विकास की कोई भी जरूरत नहीं। एक छोटे से बच्चे को भी भयभीत किया जा सकता है, लेकिन छोटे से बच्चे को तुम प्रेम कैसे सिखाओगे? प्रेम तो लोग नहीं सीख पाते मृत्यु के क्षण तक, अधिक लोग तो बिना प्रेम सीखे ही मर जाते हैं।

छोटे बच्चे को अच्छा काम करवाना हो तो क्या करोगे?

भयभीत करो, मारो, डांटो, भूखा रखो, दंड दो  छोटा बच्चा असहाय है। तुम उसे डरा सकते हो। वह तुम पर निर्भर है। मां अगर अपना मुंह भी मोड़ ले उससे और कह दे कि नहीं बोलूंगी, तो भी वह उखड़े हुए वृक्ष की भांति हो जाता है। उसे डराना बिलकुल सुगम है, क्योंकि वह तुम पर निर्भर है। तुम्हारे बिना सहारे के तो वह जी भी न सकेगा। एक क्षण भी बच्चा नहीं सोच सकता कि तुम्हारे बिना कैसे बचेगा और मनुष्य का बच्चा सारे पशुओं के बच्चों से ज्यादा असहाय है। पशुओं के बच्चे बिना मां-बाप के सहारे भी बच सकते है। मां-बाप के सहारे ही जीवन खड़ा होगा। मां-बाप के हटते ही, सहयोग के हटते ही जीवन नष्ट हो जाएगा। इसलिए बच्चे को डराना बहुत ही आसान है और तुम्हारे लिए भी सुगम है, क्योंकि भय तो पहली बुराई है। अगर बच्चा डर गया और डर के कारण शांत बैठने लगा, तो उसकी शांति के भीतर अशांति छिपी होगी। उसने शांति का पाठ नहीं सीखा, उसने भय का पाठ सीखा। अगर डर के कारण उसने बुरे शब्दों का उपयोग बंद कर दिया, गालियां देनी बंद कर दीं, तो भी गालियां उसके भीतर घूमती रहेंगी, उसकी अंतरात्मा की वासिनी हो जाएंगी। वह होंठों से बाहर न लाएगा। उसने पाठ यह नहीं सीखा कि वह सद्व्यवहार करे, सद्वचन बोले, भाषा का काव्य सीखे, भाषा की गंदगी नहीं। वह नहीं सीखा, उसने इतना ही सीखा कि कुछ चीजें हैं जो प्रकट नहीं करनी चाहिएं, क्योंकि उनसे खतरा है।


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