मंडी शहर में कैसे आजाद हुआ था भारत

By: Aug 14th, 2018 12:05 am

डा. चिरंजीत परमार

लेखक, मंडी से हैं

आजादी का समारोह चौहटे में आयोजित किया जा रहा था। शायद आयोजकों की इच्छा हुई होगी कि इस विशेष दिन पर लाउड स्पीकर भी लगाया जाए। मेरा अंदाजा है कि उस वक्त मंडी में एक ही लाउड स्पीकर सिस्टम था और वह भी केवल पैलेस में। पैलेस से यह साउंड सिस्टम मांगा गया। पैलेस की ओर से मिस्त्री जी को यह काम सौंपा गया…

भारत की स्वतंत्रता की घोषणा 14 अगस्त, 1947 रात के ठीक बारह बजे हुई थी और इसी के साथ भारत एक आजाद देश बन गया था। सारे भारत में उस दिन समारोह हुए थे। उस ऐतिहासिक दिन को हमारे शहर मंडी में भी एक समारोह हुआ था, जो मुझे अच्छी तरह याद है। मेरी उम्र तब आठ साल थी। इस समारोह के बारे में बताने से पहले आपको मंडी की कुछ जानकारी देना ठीक रहेगा। मंडी हिमाचल प्रदेश का एक छोटा शहर है और अब जिला भी है। स्वतंत्रता से पहले मंडी एक रियासत हुआ करती थी, जिस पर राजा जोगेंद्र सेन राज किया करते थे। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का हिमाचल प्रदेश में विलय कर दिया गया और इसके साथ एक अन्य रियासत सुकेत को मिलाकर, आज के मंडी जिले का गठन किया गया। मंडी उस समय की काफी प्रगतिशील रियासतों में एक थी। यहां बिजली भी थी। रियासत के दिनों हमारा परिवार पैलेस, जहां अब सोल्जर बोर्ड तथा फौजी कैंटीन है, के स्टाफ क्वार्टरों में रहता था। मेरे स्वर्गीय पिता मियां नेतर सिंह राजा मंडी के निजी स्टाफ में थे। निजी स्टाफ के लगभग सारे कर्मचारी उन स्टाफ क्वार्टरों में रहा करते थे। उस दिन क्वार्टरों के निवासियों में कुछ विशेष हलचल थी और सब बड़े आपस में यह कह रहे थे कि आज रात को आजादी आएगी। हमारे साथ वाले क्वार्टर में मिस्त्री शेर सिंह रहते थे।

वह बिजली से जुड़े सारे काम कर लेते थे। पैलेस के तमाम बिजली के उपकरणों का रख-रखाव भी उनकी जिम्मेदारी थी। इन उपकरणों में दो सिनेमा प्रोजेक्टर भी थे, जिन पर कभी-कभी वह हमें कार्टून फिल्में दिखाया करते थे। पैलेस में राजकुमार (आज के मंडी के राजा अशोक पाल सेन) शाम को अकसर राजमहल होटल में टीवी देखते रहते थे। ये कार्टून फिल्में राजकुमारी के लिए आई होती थीं। इस कारण हम उन्हें मिस्त्री जी नाम से संबोधित किया करते थे। उन दिनों अंकल-आंटी का रिवाज अभी नहीं चला था। हम बच्चों में बहुत लोकप्रिय थे। आजादी का समारोह चौहटे में आयोजित किया जा रहा था। शायद आयोजकों की इच्छा हुई होगी कि इस विशेष दिन पर लाउड स्पीकर भी लगाया जाए। मेरा अंदाजा है कि उस वक्त मंडी में एक ही लाउड स्पीकर सिस्टम था और वह भी केवल पैलेस में।

इसलिए पैलेस से यह साउंड सिस्टम मांगा गया। पैलेस की ओर से मिस्त्री जी को यह काम सौंपा गया और उन्होंने साउंड सिस्टम तैयार करना शुरू किया। मिस्त्री जी के मन में अचानक यह विचार आया कि क्यों न बच्चों को भी आजादी आने का यह जश्न दिखाया जाए और उन्होंने मेरी ही उम्र की अपनी बेटी चंद्रा, भतीजे रूप सिंह और मुझे भी साथ चलने को कहा। हम तीनों बहुत ही प्रसन्न थे। समारोह के लिए चौहटे की भूतनाथ वाली साइड पर एक मंच बनाया गया था, जिस पर दरियां बिछाई गई थीं। मंच के एक कोने पर मिस्त्री जी ने अपना साउंड सिस्टम सेट किया और लाउड स्पीकर भी लगा दिया। स्टेज पर ही एक छोटा मेज रखा गया, जिस पर एक रेडियो सैट लगा दिया गया।

फिर इस रेडियो के आगे माइक्रोफोन रख दिया गया और इसके साथ ही रेडियो में चल रहा प्रसारण लाउड स्पीकर में आने लगा। मंच के आगे कुछ दरियां बिछा दी गई थीं, जिस पर लोग आकर बैठने शुरू हो गए थे। हम तीनों मिस्त्री जी के साथ थे, जो अपने लाउड स्पीकरों के कारण उस समारोह के बहुत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे, इसलिए हम तीनों को भी वीआईपी ट्रीटमेंट मिला। हम तीनों को आम पब्लिक के साथ नीचे दरियों के बजाय स्टेज पर बिठाया गया, हालांकि बैठे हम भी वहां नीचे ही थे। उस समय तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया था, पर अब मैं समझ सकता हूं। रेडियो पर शायद कमेंटरी किस्म का प्रोग्राम आ रहा था। स्वतंत्रता की घोषणा रात को बारह बजे दिल्ली में होनी थी। दिल्ली में चल रहे समारोह की जानकारी वहां उपस्थित जनसमूह को रेडियो के माध्यम से दी जा रही थी। फिर अचानक जनसमूह में जोश आ गया और लोग खुशी के मारे झूम उठे और नारे लगाने लग गए।

ध्वजारोहण भी हुआ था। मुझे याद नहीं कि मंडी में उस रात झंडा किसने फहराया था। शायद स्वामी पूर्णानंद ने यह काम किया था। उस क्षण शायद दिल्ली में भारत के आजाद होने की घोषणा हुई होगी। चौहटे के कोर्ट वाले सिरे पर पटाखे छोड़े जाने लगे। 5-6 हॉट एयर बैलून, जिन्हें बच्चे उस वक्त ‘पेड़ू’ कहा करते थे, भी छोड़े गए। फिर आया हम लोगों के लिए सबसे बढि़या क्षण। बड़ी-बड़ी परातों में गरम-गरम हलवा आया और लोगों में बांटा जाने लगा। आजादी क्या होती है, इसकी तो हमें समझ नहीं थी, परंतु उस दिन के हलवे का स्वाद आज तक भी नहीं भूला है। क्योंकि हम मिस्त्री जी के साथ थे और स्टेज पर थे, इसलिए हमें सामान्य दर्शकों से ज्यादा, दोनों हाथों की हथेलियां भरकर हलवा मिला और हमने पेट भरकर खाया। तो ऐसे हुआ था मंडी शहर में भारत आजाद। देश को आजाद कराने के लिए मंडी जिला के वीर योद्धाओं ने भी भरपूर योगदान दिया। यहां से अनेक ऐसे वीर योद्धा हुए जिन्होंने देश की आजादी के लिए बड़ी कुर्बानियां दीं।


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