माता भरमाणी मंदिर

By: Aug 11th, 2018 12:10 am

भगवान भोलेनाथ ने माता भरमाणी को यह वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति मणिमहेश मेरे दर्शन के लिए आएगा, वह पहले  माता ब्रह्माणी अर्थात भरमाणी के दर्शन करेगा, तभी उसकी यात्रा सफल होगी…

देवभूमि हिमाचल में हजारों ऐसे मंदिर हैं, जिनकी अपनी अलग ही महत्ता और पहचान है। चंबा जिले के भरमौर में अगर आप शिव धाम चौरासी या मणिमहेश के दर्शन करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको माता ब्रह्माणी अर्थात भरमाणी के दर्शन करने चाहिए। ऐसा माना जाता है कि चौरासी मंदिर या मणिमहेश यात्रा से पहले माता ब्रह्माणी के दरबार में हाजिरी लगाना जरूरी है। कभी ब्रह्मपुर के नाम से प्रख्यात भरमौर में ब्रह्मा की पुत्री ब्रह्माणी का वास हुआ करता था। भगवान भोले नाथ ने माता भरमाणी को यह वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति मेरे दर्शन के लिए मणिमहेश आएगा, वे पहले माता ब्रह्माणी के दर्शन करेगा, तभी उसकी यात्रा सफल होगी।

डूग्गा सार में बना है मंदिरः भरमौर की पहाडि़यों के एक छोर पर डूग्गा सार नामक स्थान पर स्थापित माता ब्रह्माणी के दर्शनार्थ के लिए यूं तो साल भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन मणिमहेश यात्रा के दौरान तो यहां लोगों का तांता लग जाता है और लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है। कहा जाता है कि माता ब्रह्माणी को नवदुर्गा में ब्रह्मचारिणी का रूप स्वीकारा गया है और माता ब्रह्माणी के नाम पर ही ब्रह्मपुर यानी भरमौर की स्थापना हुई थी। माता ब्रह्माणी भरमौर वासियों की कुलदेवी है और यहां पर साल भर यज्ञ एवं भंडारों का आयोजन होता रहता है।

यह है कहानीः कहा जाता है कि माता ब्रह्माणी कभी चौरासी मंदिर भरमौर के प्रांगण में विराजमान हुआ करती थी। माता ब्रह्माणी यहां स्थित एक विशालकाय देवदार वृक्ष के समीप तपस्या किया करती थी। एक दिन स्वयं भगवान भोलेनाथ अपने 84 सिद्धों के साथ यहां आए और इस स्थान पर एक रात बिताने के लिए रुक गए। माता ब्रह्माणी जब भ्रमण के बाद यहां लौटी, तो यहां विराजमान 84 सिद्धों को देखकर क्रोधित हो उठीं। माता के पूछने पर भगवान भोले नाथ स्वयं प्रकट हुए और कहा कि माता निराश न हों मेरे ये 84 सिद्ध केवल एक रात यहां ठहरेंगे, लेकिन, सुबह होने पर माता ने देखा कि उसके परिसर में 84 सिद्धों के स्थान पर 84 शिवलिंग स्थापित हो गए हैं। माता के क्रोधित होने पर भोलेनाथ पुनः प्रकट हुए और माता ब्रह्माणी से कहा कि अब यह स्थान चौरासी धाम के नाम से प्रख्यात होगा और माता आप किसी दूसरी जगह पर चली जाएं।

उन्होंने माता ब्रह्माणी को वरदान दिया कि आज के बाद जो भी भक्त मेरे दर्शन के लिए चौरासी धाम या मणिमहेश यात्रा के लिए आएगा, वह सबसे पहले माता ब्रह्माणी अर्थात भरमाणी के दर्शन करेगा तभी उसकी यात्रा संपूर्ण मानी जाएगी। भोले नाथ के इस वचन के साथ माता ब्रह्माणी डूग्गा सार नामक स्थान पर चली गईं। भरमौर की ऊंची पहाड़ी पर स्थित इस स्थान से 84 मंदिर बिलकुल नहीं दिखता है। क्योंकि माता ने कहा था कि अब मैं ऐसे स्थान पर डेरा लगाउंगी, जहां से चौरासी परिसर बिलकुल भी दिखाई न दे। तभी से लोग इस स्थान को भरमाणी कह कर पुकारते हैं। मंदिर के पुजारियों के अनुसार मंदिर परिसर में माता के चरणों से होकर निकलने वाला जल एक कुंड में एकत्रित होता है और इसमें स्नान करने से लोगों की कई व्याधियां दूर होती हैं। यह भी माना जाता है कि कुंड के शीतल जल से स्नान करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। खासकर मणिमहेश यात्रा के दौरान यहां लोगों को लाइनों में लगकर कुंड में स्नान करना पड़ता है और माता ब्रह्माणी के दर्शन के लिए भी लंबी कतारें लगती हैं। इस दौरान यहां 24 घंटे निःशुल्क लंगर की सुविधा उपलब्ध होती है। यह मंदिर ट्रस्ट के अधीन है और यहां ठहरने के लिए  सराय का निर्माण भी करवाया गया है।

हर तरफ  मनमोहक है नजाराः माता भरमाणी मंदिर के लिए पैदल यात्रा के दौरान गांव मलकौता में लकड़ी से निर्मित प्राचीन मकान लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। खास बात यह है कि इन लकड़ी के मकानों के नीचे लोग अपने पशु बांधते हैं और पहली मंजिल पर आवास रखते हैं। हालांकि, समय के बदलाव के कारण कई लोगों ने पक्के मकान भी बनवाने शुरू किए हैं, लेकिन ये भी छतनुमा ही बनाए गए हैं। गांव के एक छोर पर हनुमान जी का मंदिर भी स्थापित है, जहां पर सुबह-शाम पूजा अर्चना होती है।

कैसे पहुंचें : चंबा से 62 किमी. दूर भरमौर पहुंचने पर यहां से अगर पैदल जाना हो, तो वाया मलकौता गांव होकर हम अढ़ाई-तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर माता ब्रह्माणी के मंदिर पहुंच सकते हैं। वहीं, गाड़ी या दोपहिया वाहन से भी वाया संचूई या मलकौता से होकर माता भरमाणी के मंदिर पहुंचा जा सकता है।

-कपिल मेहरा, जवाली


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