मेरी अविस्मरणीय जगन्नाथ यात्रा

By: Aug 18th, 2018 12:12 am

जगन्नाथ यात्रा एक अद्भुत अनुभूित एक खूबसूरत एहसास। जब मुझे एक कृष्ण भक्त ने यात्रा मेंचलने के लिए आमंत्रित किया, तो अनायास ही दिल से निकला हां क्यों नहीं। जब हम हवाई अड्डे पहुंचे, तो इतने कृष्ण भक्तों के साथ मिलते ही, ‘हरे कृष्णा’ अभिवादन के साथ ही वातावरण कृष्णमयी हो गया।  मठ से चार दिवसीय जगन्नाथ यात्रा का प्रबंध बेहद अनुसाशित ढंग से किया गया था। हमारी यात्रा का पहला पड़ाव था ‘लिंग राज मंदिर’ जहां लिंग स्वयंभू यानी स्वयं प्रकट हुआ है। सबसे विचित्र बात कि यहां शिवलिंग पर बेलपत्र की  बजाय तुलसी पत्र चढ़ता है। थोड़ी आगे जाने पर बिंदु सागर गए, माना जाता है कि सभी तीर्थों का जल बिंदु सागर में प्रवाहित हो रहा है। फिर हम लोग अनंत वासुदेव गए। भवय कारीगिरी मेंअनूठा यहां विष्णु भगवान जगन्नाथ रूप में विराजमान हैं। दर्शन के पश्चात सबने मिलकर प्रसाद ग्रहण किया। पहले दिन के आखरी दर्शन थे। नील माधव के, जहां ठाकुर जी के दर्शन तो हुए ही साथ ही महासमुद्र के दर्शन भी हुए। यहीं से लकड़ी लाकर जगन्नाथ मंदिर में बलराम, सुभद्रा और कृष्ण भगवान के विग्रह स्थापित हुए। विश्वकर्मा द्वारा बनाए बिना बाजु और पांवों की अद्भुत कथा है। ऐसी ही अनेक अद्भुत कथाओं का हमने श्रवण किया। दूसरे दिन हम ‘टोटा गोपीनाथ’ गए, जहां ठाकुर जी भक्त की पुकार पर स्वयं को छोटा कर लेते हैं। ऐसा अनूठा है भगवान और भक्त का रिश्ता। फिर हम लोग हरिदास जी की समाधि पर गए। हरिदास जिन्होंने वृंदावन मेंबांके बिहारी मंदिर की स्थापना की। तीसरा दिन था, रथ यात्रा का। प्रातःकाल से ही हृदय प्रफुलित और रोमांचित था। हम लोग प्रातः5 बजे सबसे पहले सागर दर्शन के लिए गए, इसे स्वर्ग द्वार के रूप मेंजाना जाता है। लक्ष्मी जी के पिता समुद्र से लक्ष्मी ने शांत रहने की प्रार्थना की कि कहीं शोर से परेशान विष्णु भगवान यहां से चले न जाएं। आज भी यहां समुद्र शांतभाव से सबको आनंदित करता है। फिर बारी आई रथ यात्रा की। सुंदर मनमोहक चित्रकारी, फू लों से सजे भव्य रथों के बहुत दूर होने पर भी दर्शन हो रहे थे। उड़ीसा के राजा द्वारा रथ को स्वयं सोने के झाड़ू से बुहारना, फू लों से सजाना, फिर जगन्नाथ मंदिर से बलराम, सुभद्रा जगन्नाथ जी के विग्रहों को रथ पर स्थापित करना। उमड़ता जन सैलाब जय जगन्नाथ का उदघोष जैसे धरा से अंबर तक जैसे सब भक्तिमय हो गया। उस पर ढोल मंजीरों ने वातावरण को संगीतमय बना दिया। अब था रथों के चलने का इंतजार सबसे पहले जैसे ही बलराम जी का रथ चला, मन रोमांचित हो उठा। रथ जैसे ही निकट आया, जय बलराम के उदघोष के साथ हजारों लोगों की भीड़ के साथ जैसे ही हमने रस्से को छुआ हृदय प्रभु प्रेम से ओत-प्रोत हो गया। फिर सुभद्रा जी का रथ आया, उसके रस्से को छू कर खुद को कृतार्थ किया। अंत मेंबारी आई जगन्नाथ भगवान के रथ की, उस समय उनके दर्शनों के सिवा कुछ नहीं सुझ रहा था। पूर्ण विश्वास था इतने जन सैलाब के मध्य भी जगन्नाथ जी के  रथ को खींचने का मौका जरूर मिलेगा। जैसे ही रथ निकट आया जगन्नाथ जी के दर्शन हुए, दृष्टि वहीं स्थिर हो गई। मनमोहनी इतने सुंदर दर्शन मन भाव-विभोर हो उठा। लगा वक्त बस थम जाए, दर्शनों का सिलिसला यूं ही चलता रहे।  रथ आगे चला उसे अपने हाथों से छुआ। भगवान कभी भक्तों के विश्वास को टूटने नहीं देते। श्रद्धा से सर्वस्व नतमस्तक हो गया। हम लोग भी कितने नादान ये सोच कर प्रसन्न कि  हमने अपने हाथों से रथ को खींचा जब कि जगन्नाथ भगवान को तो उनकी मर्जी के बिना एक कदम भी नहीं चला सकता। ये साबित भी हो गया जब तीन किलोमीटर की यात्रा तीन दिन मेंपूरी कर नाज-नखरों के साथ जगन्नाथ जी अपनी मौसी के घर पहुंचे। इतने गर्मी झमाझम बरसात शायद इंद्र देव भी इस मनभावन यात्रा का मौका गंवाना नहीं चाहते थे। तन बरसात मेंभीगा, तो मन भक्ति और प्रेम के रस से सराबोर हो गया।

 – अनीता बंसल


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