राज्यसभा में एनडीए का बहुमत

By: Aug 11th, 2018 12:05 am

राज्यसभा में भाजपा-एनडीए का अल्पमत में होने के बावजूद जीत हुई है। सहयोगी जनता दल-यू के सांसद हरिवंश 125 वोट हासिल कर उपसभापति चुने गए हैं। विरोधी कांग्रेस के बीके हरिप्रसाद को 105 वोट ही मिल पाए। उच्च सदन में पहली बार भाजपा का कोई सहयोगी उपसभापति चुना गया है। पहली बार राज्यसभा सांसद और पहली बार में ही उपसभापति के संवैधानिक आसन पर विराजमान…! अब यह कीर्तिमान हरिवंश के नाम दर्ज हो गया है। भाजपा के कद्दावर नेता रहे, दिवंगत भैरोंसिंह शेखावत उपराष्ट्रपति होने के नाते राज्यसभा के सभापति जरूर थे, लेकिन भाजपा-एनडीए का कभी बहुमत ही नहीं रहा, तो उपसभापति का पद स्वप्निल था। हालांकि राज्यसभा में सत्तारूढ़ पक्ष का बहुमत अब भी नहीं है, लेकिन उपसभापति के चुनाव में जो समीकरण सामने आए हैं, उनके मद्देनजर भाजपा-एनडीए के बहुमत का दावा किया जा सकता है। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक (13), ओडिशा में सत्ता पक्ष बीजू जनता दल (9), तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस ( 6), हरियाणा के प्रमुख विपक्षी इंनेलो आदि ने भाजपा-एनडीए उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह के पक्ष में वोट दिए। इनके अलावा, निर्दलीय, एनपीएफ, बीपीएफ के सांसदों ने भी हरिवंश को वोट दिए। जो शिवसेना सरेआम भाजपा का विरोध करती रही है और अलग चुनाव लड़ने की धमकियां देती रही है, उसके तीनों सांसद भाजपा-एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में रहे। अब सवाल यह किया जा सकता है कि क्या तमिलनाडु, तेलंगाना, ओडिशा, हरियाणा आदि राज्यों में कुछ नए और ताकतवर दल 2019 के चुनाव से पहले एनडीए के घटक बन सकते हैं? क्या वे पार्टियां अंततः प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार हैं, जो न तो एनडीए के साथ हैं और न ही कांग्रेस-समर्थक हैं? तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मिलकर ‘संघीय मोर्चा’ बनाने की सार्वजनिक घोषणा की थी। क्या अब वे अलग-अलग होकर एनडीए का हिस्सा बनने जा रहे हैं? बीजद तो वाजपेयी सरकार के दौरान एनडीए का घटक रहा है। वह 2009 में अलग हुआ था। क्या 2019 के मद्देनजर उसकी भी वापसी होगी? हरियाणा में भाजपा ने इंनेलो के साथ गठबंधन कर सरकारें बनाई हैं। क्या उसने भी भाजपा की ओर लौटने के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं? 2019 चुनाव के मद्देनजर राज्यसभा में उपसभापति का जीतना यह भी साफ कर गया कि अब भाजपा-एनडीए का विस्तार होना तय है, लिहाजा स्पष्ट बहुमत भी दूर नहीं है। राज्यसभा में कुल सांसद 245 होते हैं और बहुमत का आंकड़ा 123 है, लेकिन हरिवंश को 125 वोट हासिल हुए हैं, लिहाजा समीकरण एनडीए के पक्ष में बन रहे हैं। लगातार महागठबंधन का राग अलापता विपक्ष राज्यसभा में उपसभापति के चुनाव में बिलकुल बिखर कर रह गया। तृणमूल कांग्रेस और सपा के दो-दो (कुल 4) सांसद सदन में मौजूद नहीं रहे। आम आदमी पार्टी, आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस और कश्मीर की पीडीपी के सांसद भी तटस्थ रहे। यही नहीं, चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार की जीत के बाद विपक्षी ही कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ने लगे। ‘आप’ ने तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को विपक्षी एकता में सबसे बड़ा रोड़ा करार दिया और कहा कि यह भाजपा की रणनीति है कि वह चुनावी मुकाबला ‘मोदी बनाम राहुल’ दिखाना चाहती है। ‘आप’ ने इसे राहुल और कांग्रेस का ‘अहंकार’ करार दिया कि वोट के लिए राहुल गांधी ने ‘आप’ के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल को फोन तक नहीं किया! उधर नीतीश कुमार ने बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक को फोन करके समर्थन मांगा। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने  भी अलग-अलग फोन किए। नतीजतन एनडीए और उसके समर्थक दलों के एक-एक सांसद ने वोट डाला। यह संसदीय और सदनीय प्रबंधन का उदाहरण भी है। कांग्रेस इसमें नाकाम रही, लिहाजा विपक्ष पूरी तरह एकजुट नहीं हो पाया। संसद के भीतर ही अविश्वास प्रस्ताव के बाद उपसभापति का चुनाव हारना स्पष्ट संकेत है कि विपक्षी महागठबंधन आकार नहीं ले पा रहा है। बहरहाल राज्यसभा में उपसभापति के 19 चुनावों में पहली बार कोई पत्रकार उपसभापति के पद पर बैठा है। हरिवंश का ‘धर्मयुग’ और ‘रविवार’ से लेकर ‘प्रभात खबर’ तक पत्रकारिता का लंबा अनुभव और सफर रहा है। अब वह ‘न्यायाधीश’ के आसन पर हैं। यह एक नई पारी का आगाज है।


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