वासंती-वासंती बना दें

By: Aug 5th, 2018 12:05 am

कविता

वे माहिया

मैं चैत की लाल टहनी सी

कच्ची कोंपल, नाजुक-नाजुक शर्मिली सी

ये सांवली सी धूप

मां के आंचल सी ममतामयी तपिश देती

बहकी-बहकी हवा

किसी अच्छी पड़ोसन सी भली लगती

हौले-हौले चलती हरियाली

बचपन की किसी प्यारी सखी सहेली सी

खुशबू किसी मेले सी दूर-दूर तक फैली

आवाज देती मानो

मनमौजी जैसी दोपहर

नई-नई लगी यारी-दोस्ती की तरह तरोताजा

सारा माहौल नई दुल्हन के

सतरंगे अपनों जैसा

प्यार, मोहब्बत से लवरेज

उनींदा सा

धीमे-धीमे चढ़ते नशे जैसा

वसंत के रंग-रूप में अब सराबोर हों

इसे संभाले, संहजें, बांटें

जीवन के हर क्षण को,

हर राग-अनुराग को

वासंती-वासंती बना दें।

हंसराज भारती, बसंतपुर, सरकाघाट, मंडी


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App