वीरभूमि के शौर्य का साक्षी कारगिल युद्ध

By: Aug 16th, 2018 12:05 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक, बिलासपुर से हैं

शक्तिशाली सेना ही किसी ताकतवर राष्ट्र की पहचान होती है। कठिन परिस्थितियों में भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध जीतकर दुनिया को यह बता दिया कि विश्व की सर्वोत्तम थल सेना आज भारत के पास है। जिसे दूसरे देश के अंदर घुसकर लक्षित हमला (सर्जिकल स्ट्राइक) करने की महारत हासिल है…

26 जुलाई का दिन राज्य सहित देश में 19वें ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया गया। 19 साल पहले 1999 के शुरुआती दिनों में पाक सेना ने भारत के विरुद्ध अपना षड्यंत्रकारी चरित्र दिखाते हुए, विश्वासघात करके कारगिल के चारों उपखंडों के शिखरों पर घुसपैठ करके अक्तूबर, 1947 की तरह एक बार फिर से कश्मीर को हथियाने की नापाक कोशिश कर डाली थी। मगर इस घुसपैठ में पाक समर्थित आतंकियों के साथ पाक सेना की नॉर्दन लाइट इन्फेंटरी के सैनिक पूरी तरह शामिल थे, जिसका खुलासा स्वयं उनके कई पूर्व सैन्य अधिकारी अपनी कई किताबों में कर चुके हैं। मई, 1999 को कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में युद्ध से पूर्व नियंत्रण रेखा के अंदर पाक सेना की घुसपैठ की नापाक साजिश का पता वीरभूमि के सैनिक ले. सौरभ कालिया व उनके गश्ती दल के पांच साथियों ने लगाया था, जिसके लिए उन्हें अपने इस दल के साथियों सहित पाक सेना के अमानवीय व्यवहार व क्रूरता का शिकार होकर कारगिल के लिए पहली शहादत देनी पड़ी थी। इस गश्ती दल में एक सैनिक अर्जुन राम की उम्र मात्र 18 वर्ष थी। लगभग 168 किलोमीटर तक फैला कारगिल क्षेत्र सामारिक दृष्टि से भारत की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण होने के कारण यह घुसपैठ भारत की संप्रभुता व अस्मिता के लिए किसी खतरे से कम नहीं। भारतीय सीमा में दाखिल इन घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने इतना जोरदार पलटवार किया, जिससे पाक हुकमरानों को उम्मीद नहीं थी, बल्कि उन्हें बिना शर्त युद्ध विराम के लिए अमरीका की शरण लेनी पड़ी। पाक रणनीतिकारों के मन में शंका थी कि उनकी सेना भारतीय चौकियों पर कब्जा करके कश्मीर में एक नया इतिहास लिख देगी, मगर हमें गर्व होना चाहिए अपनी सेना के उन जांबाजों पर जिन्होंने भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपरा को कायम रखा और अपने अदम्य साहस से दुश्मन की सेना ध्वस्त करके स्वयं रक्तरंजित होकर मातृभूमि पर दोबारा अपना आधिपत्य जमाया। 26 जुलाई, 1999 को कारगिल की सभी चोटियों पर तिरंगा लहरा दिया। इसलिए 26 जुलाई का गौरवमय दिन देश भर में इन्हीं रणबांकुरों की याद में ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, मगर इस युद्ध में जीत इतनी आसानी से हासिल नहीं हुई। 14 मई, 1999 से 26 जुलाई, 1999 तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के 527 रणबांकुरों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी तथा 1363 सैनिक घायल हुए।

इसी युद्ध में प्वाइंट 5140 पर तथा इसके साथ कई अन्य चोटियों पर कब्जा करने के लिए अपने दल का नेतृत्व करके कैप्टन विक्रम बतरा ने अपना अहम रोल निभाया था। साथ ही प्वाइंट 4875 पर कब्जा करते समय एक आक्रामक मिशन के दौरान इस युद्ध के महान नायक को मातृभूमि की रक्षा के लिए शहादत का जाम पीना पड़ा। मगर शहादत से पहले इन्होंने पाक सेना पर अपने पराक्रम की वीर गाथा लिख डाली थी, जिसके लिए इन्हें देश के सर्वोच्च शौर्य पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ (मरणोपरांत) से अलंकृत किया गया था। शिखर 4875 को अब इन्हीं के नाम से जाना जाता है। इसी युद्ध में वीरता के अद्भुत परिचय की मिसाल पेश करते हुए संजय कुमार को भी परमवीर चक्र से नवाजा जा चुका है। इस प्रकार युद्ध की शुरुआत में घुसपैठ का पता लगाने से लेकर कारगिल के उपखंडों के सभी शिखरों पर भारत की विजय का पताका फहराने तक देवभूमि के 52 सैनिकों  की शहादत हुई थी। वहीं इस युद्ध में सरकार द्वारा प्रदान चार सर्वोच्च पदकों में से दो परमवीर चक्र सहित चार वीर चक्र, पांच सेना मेडल वीरभूमि के सैनिकों के नाम रहे। वीरता व बलिदान के प्रतिशत के मामले में देश में राज्य की अपनी अलग पहचान रही है। अब देश रक्षा में देवभूमि के सैनिकों की शहादतों का आंकड़ा 1300 से ऊपर जा चुका है। स्वाभाविक है कि राज्य देवभूमि के साथ ‘वीरभूमि’ के नाम से भी जाना जाता है। यह युद्ध दुनिया के युद्धों के इतिहास में सबसे ऊंचे व दुर्गम क्षेत्रों में शामिल था। जहां 16 हजार से 18 हजार फुट की ऊंचाई पर सांस लेना भी मुश्किल था, जहां पाक सेना उस ऊंचाई पर रक्षात्मक मोर्चा संभाल चुकी थी और भारतीय सेना निचले क्षेत्रों में होने के कारण उनके स्वचालित हथियारों के लिए आसान टारगेट बन चुकी थी। भारतीय सेना की आक्रामक नीति, साहस और मनोबल के आगे पाक सेना को एक और शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा, जो इससे पहले हुए तीन युद्धों में भी पाक सेना का यही हश्र हुआ था। शौर्य, पराक्रम और वीरता भारतीय सेना का स्वाभाविक तथा जन्मजात गुण रहा है, जिसमें मातृभूमि की रक्षा के साथ तिरंगे के मान-सम्मान को कायम रखना सर्वोपरि है। भारत-पाक में हुए चार युद्धों में से तीन इसी कश्मीर के लिए हुए। यदि आज कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, तो यह समझ लेना चाहिए कि सिर्फ सेना की वजह से है।

शक्तिशाली सेना ही किसी ताकतवर राष्ट्र की पहचान होती है। सेना के बिना किसी देश की कल्पना ही नहीं की जा सकती। कठिन परिस्थितियों में भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध जीतकर दुनिया को यह बता दिया कि विश्व की सर्वोत्तम थल सेना आज भारत के पास है। जिसे दूसरे देश के अंदर घुसकर लक्षित हमला (सर्जिकल स्ट्राइक) करने की महारत हासिल है। देश के नीति निर्माताओं से आग्रह है कि देश पर कुर्बान होने वाले और अपनी वीरता से इतिहास लिखने वाले जांबाजों के शौर्य पराक्रम के सबूत मांगने के बजाय, उनका सिर्फ सम्मान करें तथा सैन्य कार्रवाइयों का श्रेय लेने के बजाय उन्हें प्रोत्साहित करें और मातृभूमि पर कुर्बान होने वाले शूरवीरों की गाथाएं स्कूली पाठ्यक्रम में अनिवार्य करें।


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