सरकारी प्रश्रय की आस में फोटो गैलरी

By: Aug 13th, 2018 12:05 am

सुरेंद्र शर्मा

लेखक, सुंदरनगर से हैं

यह फोटो गैलरी पिछले दो दशकों से सरकारी प्रश्रय मांग रही है, परंतु भागीरथी प्रयास को दुलार की एक लोरी भी नसीब नहीं हुई। मुख्यमंत्री, राज्यपाल के अलावा कई नामचीन हस्तियां फोटो गैलरी को निहार चुकी हैं, परंतु आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं मिला…

हिमाचल प्रदेश के नैसर्गिक सौंदर्य, लोक संस्कृति, देव संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, परंपराओं और समृद्ध संस्कृति रूपी संग्रहालय प्रकल्प आज देश के विकास की बलिवेदी पर चढ़ गया है। प्रदेश का इतिहास स्मृतिपटल गवाह है कि ‘हिमाचल’ जिसे एक छत के नीचे देवभूमि व स्विट्जरलैंड की उपाधियों से अलंकृत किया गया है, उसके दीदार करवाने के प्रयास विरले ही हुए हैं। यदि हुए भी हैं, तो इनमें व्यावसायिकता का आलेप चस्पां रहा है। एकमात्र भागीरथी प्रयास उस जुनूनी शख्सियत बीरबल शर्मा के थे, जिसने देवभूमि व स्विट्जरलैंड की परिभाषा को प्रमाणित करने के लिए लगभग दो दशकों तक अपनी आजीविका, परिवार, बच्चों का भविष्य और जीवन के अति महत्त्वपूर्ण कालखंड को दांव पर लगा दिया। ‘हिमाचल दर्शन फोटो गैलरी’ आम आदमी के लिए छायाचित्रों का एक संग्रहालय हो सकती है, परंतु इसकी स्थापना और उद्देश्य की गठरी का बोझ बीरबल शर्मा के कंधे ही बयां कर सकते हैं।

हिमाचल दर्शन फोटो गैलरी में निःशुल्क प्रदेश के नैसर्गिक सौंदर्य, लोक संस्कृति, देवालय, झीलें, नदियां, मैदान, दर्रे, दुर्गम दृश्यावलियों को आप चंद मिनटों में निहार कर प्रदेश के बारे में बहुत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकल्प रूपी महायज्ञ की पूर्णाहुति 1997 में डाली गई, परंतु उसके बाद भी इसे परिष्कृत करने का अविरल प्रवाह अभी तक जारी है। इस गैलरी में लगे प्रत्येक चित्र के पीछे बीरबल शर्मा के उस जुनूनी सफरनामे की वह दास्तां है, जिसे आलेखित करने के लिए शब्दकोष को कंगाली की कगार पर खड़ा होना पड़ रहा है। प्रदेश के नैसर्गिक सौंदर्य के छायांकन में विरले छायाचित्रों में किसी को महारत हासिल हो सकती है, परंतु बीरबल शर्मा के इस संकलन में मीलों पैदल, स्कूटर व कार से पहुंचकर मौसम की अनुकूलता, सूर्य की भोर व अस्त बेला का इंतजार, बादलों की नटखटता, आसमान पर अठखेलियां करते परिंदों का इंतजार करना और फोटोग्राफी के मानकों को अपनी आंख व उंगली पर नचाना, यही इस हरफनमौला के जुनून की पराकाष्ठा थी। इसके अलावा अपनी घुमक्कड़ी के दौरान सामाजिक सरोकार व समाज की पीड़ा की गठरी भी बांधकर लाना और समाचार पत्र के माध्यम से सरकार तक पहुंचाने का अपना कर्त्तव्य समझना इनकी प्राथमिकता में है, जो अभी भी प्रवाहमान है। हिमाचल दर्शन फोटो गैलरी बीरबल शर्मा के जुनून की पराकाष्ठा का जीवंत हस्ताक्षर है। लाखों लोग इसे निहार कर उन्हें साधुवाद दे चुके हैं। प्रदेश की इस एकमात्र धरोहर में जहां फोटो के माध्यम से प्रदेश की लोक संस्कृति व पर्यटन को सहेजा गया है, वहीं विलुप्त हो रही वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। हम देश का ‘विकास के नाम पर उजड़ना’ तर्क देकर संतोष कर सकते हैं, परंतु इस तरह की धरोहरों की पुनर्स्थापना की पीड़ा को विकास के सूत्रधार भी तो समझें। पुरातत्त्व चेतना संघ के आंचल की छांव में संचालित यह फोटो गैलरी पिछले दो दशकों से सरकारी प्रश्रय मांग रही है, परंतु भागीरथी प्रयास को दुलार की एक लोरी भी नसीब नहीं हुई। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री, राज्यपाल के अलावा कई नामचीन हस्तियां फोटो गैलरी को निहार चुकी हैं, परंतु आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं मिला। यदि किसी पर्यटक को मनाली की सैर से पहले एक छत के नीचे समूचे प्रदेश की तस्वीर उपलब्ध हो जाए, तो उसके लिए उसकी यात्रा सार्थक हो जाती है। जब तक इस तरह के जुनूनी प्रयासों पर सरकारी नजरेइनायत नहीं होगी, तो ऐसी धरोहरें बसती और उजड़ती रहेंगी। हम प्रदेश को पर्यटन राज्य बनाने की बात तो करते हैं, परंतु हमें न तो पर्यटन और न ही पर्यटक शब्द की परिभाषा का ज्ञान है। इसके लिए जो भी निजी तौर पर प्रयास हो रहे हैं, लावारिसता की मंडी में नीलाम हो रहे हैं। उसका ताजा उदाहरण ‘हिमाचल दर्शन फोटो गैलरी’ के एक आम मकान के बराबर मुआवजे के तराजू पर तौलकर सरेबाजार नीलाम कर दिया। यदि विकास की परिभाषा धरोहरों, स्मारकों, देवालयों, पहाड़ों के सीनों की चीरफाड़ व प्राकृतिक संसाधनों को उजाड़ना है, तो ऐसा विकास किस काम का? भावी पीढ़ी को हम क्या संरक्षित कर रहे हैं? विकास के नाम पर विनाश भी तो नहीं होना चाहिए। साढ़े तीन दशकों से जिस तरह इस धरोहर का पोषण बीरबल शर्मा ने किया, शायद इतनी बखूबी से अपने परिवार को भी पोषित नहीं किया होगा। इस बेला पर यह हृदय विदारक बज्रपात की पीड़ा का अहसास ‘जिस तन लागे, वही तन जाने’ कहावत चरितार्थ करती है। वहीं इस विरह की क्रंदन को सूफी संत बुल्लेशाह ने कुछ यूं बयां किया है-सानू गए बेदर्दी छड के, सीने सांग हिजर दी गड के, जिस्मों-जिंद नूं लै गए कडके, ए गल्ल कर गए है सियारी।


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