सुध महादेव

By: Aug 4th, 2018 12:07 am

सुध महादेव का मंदिर जम्मू से 120 किमी दूर तथा समुद्र तल से 1225 मीटर की ऊंचाई पर पटनीटाप के पास स्थित है। यह मंदिर शिवजी के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर एक विशाल त्रिशूल के तीन टुकड़े जमीन में गड़े हुए हैं ,जो पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वयं भगवान शिव के हैं। इस मंदिर से कुछ दुरी पर माता पार्वती की जन्मभूमि मानतलाई है। इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 2800 वर्ष पूर्व हुआ था, जिसका पुनर्निर्माण लगभग एक शताब्दी पूर्व एक स्थानीय निवासी रामदास महाजन और उसके पुत्र ने करवाया था। इस मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग, नंदी और शिव परिवार की मूर्तियां हैं।

पौराणिक कथा- सुध महादेव के पास ही मानतलाई है, जो माता पार्वती की जन्मभूमि है। पुराणों की कहानी के अनुसार माता पार्वती नित्य मानतलाई से इस मंदिर में पूजन करने आती थीं । एक दिन जब पार्वती वहां पूजा कर रही थीं, तभी सुधांत राक्षस जो स्वयं भगवान शिव का भक्त था, वहां पूजन करने आया। जब सुधांत ने माता पार्वती को वहां पूजन करते देखा, तो वह पार्वती से बात करने के लिए उनके समीप जाकर खड़े हो गए। जैसे ही मां पार्वती ने पूजन समाप्त होने के बाद अपनी आंखें खोलीं, वह एक राक्षस को अपने सामने खड़ा देखकर घबरा गईं।  घबराहट में वह जोर-जोर से चिल्लाने लगीं। उनकी चिल्लाने की आवाज कैलाश पर समाधि में लीन भगवान शिव तक पहुंची। महादेव ने पार्वती की जान खतरे में जान कर राक्षस को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका।  त्रिशूल आकर सुधांत के सीने में लगा। उधर, त्रिशूल फेंकने के बाद शिवजी को ज्ञात हुआ कि उनसे तो अनजाने में बड़ी गलती हो गई। इसलिए उन्होंने वहां पर आकर सुधांत को पुनः जीवन देने की पेशकश की, पर दानव सुधांत ने यह कह कर मना कर दिया कि वह अपने इष्ट देव के हाथों से मरकर मोक्ष प्राप्त करना चाहता है। भगवान ने उसकी बात मान ली और वहां की यह जगह आज से उसके नाम पर सुध महादेव के नाम से जानी जाती है, साथ ही उन्होंने उस त्रिशूल के तीन टुकड़े करके वहां गाड़ दिए जो कि आज भी वहीं हंै। हालांकि कई जगह सुधांत को दुराचारी राक्षस भी बताया गया है और कहा जाता है कि वह मंदिर में मां पार्वती पर बुरी नियत से आया था, इसलिए भगवान शिव ने उसका वध कर दिया। मंदिर परिसर में एक ऐसा स्थान भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां सुधांत दानव की अस्थियां रखी हुई हैं।

ये तीनों टुकड़े मंदिर परिसर में खुले में गड़े हुए हैं। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा त्रिशूल के ऊपर वाला हिस्सा है, मध्यम आकर वाला बीच का हिस्सा है तथा सबसे नीचे का हिस्सा सबसे छोटा है, जो कि पहले थोड़ा सा जमीन के ऊपर दिखाई देता था, पर मंदिर के अंदर टाइल लगाने के बाद वह फर्श के लेवल के बराबर हो गया है।  इन त्रिशूलों के ऊपर किसी अनजान लिपि में कुछ लिखा हुआ ह, जिसे आज तक पढ़ा नहीं जा सका है। ये त्रिशूल मंदिर परिसर में खुले में गड़े हुए हैं और भक्त लोग इनका नित्य जलाभिषेक भी करते हैं। मंदिर के बाहर ही पाप नाशनी बावड़ी है, जिसमें पहाड़ों से 12 महीने पानी आता रहता है। ऐसी मान्यता है कि इसमें नहाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। बाबा रूपनाथ की धूणी- इस मंदिर में नाथ संप्रदाय के संत बाबा रूप नाथ ने सदियों पहले समाधि ली थी, उनकी धूणी आज भी मंदिर परिसर में है, जहां अखंड ज्योति जलती रहती है।

मानतलाई- यहीं माता पार्वती का जन्म और शिव जी से उनका विवाह हुआ था। यहां पर माता पार्वती का मंदिर और गौरी कुंड देखने लायक जगह हैं।

 


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