राहुल कांग्रेस का हिंदुत्व

By: Sep 7th, 2018 12:05 am

सवर्णों ने ‘भारत बंद’ का आह्वान किया था। दलित-आदिवासियों को आरक्षण और संसद में एससी / एसटी अत्याचार कानून पारित करने के बाद वे सवाल कर रहे हैं-आखिर हम क्या करें? कहां जाएं? दलित, आदिवासी, गरीब और पिछड़े भी आंदोलनरत हैं। किसान आज भी ठगा महसूस कर रहा है, लिहाजा उसकी खुदकुशी के सिलसिले थमे नहीं हैं। अभी हाल ही में किसानों-मजदूरों ने दिल्ली में संसद मार्ग से रामलीला मैदान तक प्रदर्शन किया। भीड़ में कई हजार लोग शामिल थे। राशन और रोजगार ही उनका मुद्दा था। दरअसल देश में तनाव, गुस्से और आवेश का माहौल स्पष्ट महसूस किया जा सकता है। बेशक प्रधानमंत्री मोदी ऐसी तमाम गुत्थियों को सुलझाने में लगे हैं और समस्याओं को संबोधित भी कर रहे हैं, लेकिन देश शांत और संतुष्ट नहीं है। विडंबना यह है कि ऐसे ही माहौल में ‘हिंदू-हिंदू’ की सियासत खेली जा रही है। हिंदू देश का सबसे बड़ा वोट बैंक है। करीब 60 फीसदी हिंदू भाजपा के पक्ष में वोट करते आए हैं। कांग्रेस उसमें सेंध लगाना चाहती है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर हैं और पार्टी ‘हर-हर महादेव’ करती हुई उन्हें ‘शिवभक्त’ स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। राहुल ने मानसरोवर झील के पानी की तस्वीरें ट्वीट की हैं-निर्मल, निश्छल और पीने लायक पानी। शांत और सुकून देने वाला माहौल..! कैलाश वही जा सकता है, जिसे बुलावा आता है। यह लगभग वैसा ही कथन है, जैसा नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के दौरान ‘गंगा मैया’ के बारे में बोलते थे। प्रधानमंत्री मोदी ने भी काठमांडू प्रवास के दौरान हर बार प्रख्यात ‘पशुपतिनाथ मंदिर’ में भगवान शिव के दर्शन किए हैं और पूजा-पाठ भी की है। मोदी को ‘मां गंगा’ ने बुलाया था और अब राहुल को ‘भोले बाबा’ ने बुलाया है। भारत की जनता को कोई भी बुलाने को राजी नहीं है! सवाल यह है कि देश के सामने सिर्फ ‘हिंदुत्व’ है या कुछ और सरोकारों की भी चिंता है? कौन असली हिंदू है और कौन नकली हिंदू है? देश ने कांग्रेस के ही सांसद शशि थरूर की हिंदू से जुड़ी नई परिभाषाएं भी सुनी हैं-हिंदू तालिबान, हिंदू पाकिस्तान…! राहुल गांधी के हिंदुत्व को स्वीकार करें या थरूर के हिंदुत्व को मानें! इसी बीच कांग्रेस का डीएनए भी सामने आया है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कुरुक्षेत्र में ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन कराया और कहा कि कांग्रेस के डीएनए में ही ब्राह्मण है। इसके पहले राहुल ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात और विमर्श किया था, तो उसका निष्कर्ष सामने आया था कि राहुल ने उन्हें यकीन दिलाया था कि कांग्रेस ‘मुसलमानों की पार्टी’ है। दरअसल कांग्रेस का असली डीएनए क्या है? उधर मध्यप्रदेश में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने ऐलान किया है कि यदि पार्टी सत्ता में आई, तो हरेक ग्राम पंचायत में ‘गौशाला’ खोली जाएगी। गाय का मुद्दा भी कांग्रेस भाजपा से छीनना चाहती है। इन तमाम कलाबाजियों को देखते हुए एक सवाल सहज ही पैदा होता है कि क्या 2019 का जनादेश हिंदुत्व ही तय करेगा। शेष रोजी, रोटी, विकास, कल्याण, कूटनीति, रक्षा नीति, आर्थिक नीति, परमाणु नीति आदि के मुद्दे क्या नेपथ्य में चले जाएंगे? क्या हिंदुत्व के सहारे ही भारत जैसा विराट राष्ट्र संचालित किया जा सकता है? बिलकुल ऐसा ही गुजरात और कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान किया गया था। गुजरात में चुनाव प्रचार की शुरुआत राहुल गांधी को ‘शिवभक्त’ के तौर पर पेश करते हुए की गई थी। राहुल गुजरात में 27 मंदिरों में गए, भगवान के दर्शन किए, पूजा-पाठ किया। नतीजा हार…! कर्नाटक में राहुल 19 मठों और मंदिरों में गए, जबकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह 27 पूजास्थलों में गए। यदि तथ्यों के आधार पर देखें, तो कांग्रेस कर्नाटक भी हारी है, लेकिन जद-एस के साथ सरकार बनाने में सफल रही है, क्योंकि जनादेश खंडित था। अलबत्ता भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई और वह बहुमत के करीब भी थी। उस दौरान पुराने फोटो दिखा कर यह भी साबित करने की कोशिश की गई कि राहुल गांधी ‘जनेऊधारी हिंदू’ हैं। अब 2019 का चुनाव कांग्रेस के राजनीतिक अस्तित्व के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है। राहुल गांधी के नेतृत्व की परीक्षा भी इन्हीं चुनावों से तय होनी है, लिहाजा कांग्रेस आमादा है कि भाजपा के हिंदू और सवर्ण वोट बैंक में गहरी सेंध लगाकर अपना जनाधार व्यापक किया जाए। इसका आकलन अभी नहीं किया जा सकता, क्योंकि सवर्ण कांग्रेस से भी नाराज हैं, लेकिन हम इसी विडंबना के साथ समापन कर रहे हैं कि जातीय और धार्मिक आधारों पर चुनाव तय होंगे, तो सभी ‘सांप्रदायिक’ हैं। फिर ‘धर्मनिरपेक्षता’ का क्या होगा?


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