क्षमता से कितना बाहर शिमला

By: Oct 15th, 2018 12:07 am

शिमला शहर  अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा भार ढो रहा है। कभी अंग्रेजों ने 25 हजार की आबादी के लिए यह नगर बसाया था, लेकिन आज इसकी जनसंख्या अढ़ाई लाख को भी पार कर गई है। यहां  निर्माण भी बेतरतीब किया गया है। चारों ओर इमारतें बनाने की होड़ मची हुई है और हालत यह हो गई है कि शहर में कहीं भी बाहर झांकने तक को झरोखा नहीं बचा है। राजधानी के वर्तमान हालात बता रहे हैं…

टेकचंद वर्मा और प्रतिमा चौहान

शिमला में अब नहीं बचा ओपन स्पेस

शिमला शहर अब कैपेसिटी से अधिक भार ढो रहा है। कभी अंग्रेजों ने ‘पहाड़ों की रानी’ यानी शिमला को 25 हजार की आबादी के लिए बनाया था, लेकिन आज इसकी आबादी अढ़ाई लाख को भी पार कर गई है। यहां पर निर्माण भी बेतरतीब किया गया है। चारों ओर इमारतें बनाने को होड़ मची है और हालत यह हो गई है कि शहर में अब कहीं भी ओपन स्पेस नहीं बचा है। नगर निगम शिमला के पुराने क्षेत्रों, खासकर इसके कोर एरिया की हालत खराब है। शहर के लोअर बाजार, मिडल बाजार, गंज, कृष्णानगर सबसे भीड़भाड़ वाले क्षेत्र हैं। यहां पर अब पांव रखने के लिए जगह भी नहीं रही है। शिमला का पूरा शहर कंकरीट में बदल गया है। ऐसे में यहां लोगों के घूमने के लिए पार्क रहे हैं और न ही यहां बच्चों के खेलने के लिए मैदान बचे हैं। शिमला शहर में अधिकांश स्कूलों के पास खुले प्लेग्राउंड भी नहीं है। ऐसे में स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के शारीरिक विकास की क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दरअसल शिमला शहर का विकास प्लानिंग के साथ नहीं हुआ है। शिमला शहर राजधानी होने के साथ-साथ एक पर्यटक स्थल भी हैं। ऐसे में यहां बसने की चाह में बेतरतीब निर्माण हुआ है। इसके लिए शहर के ओपन स्पेस को खत्म कर दिया गया है। पेड़ पौधों वाले क्षेत्र का आकार सिमटता जा रहा है। हालात यह हैं कि शिमला के कोर और ग्रीन एरिया में भी ऊंची पहुंच वाले लोगों ने नियमों को ताक पर रखकर यहां निर्माण कार्य किया है। सरकार और प्रशासन के नाक तले यहां ग्रीन एरिया में बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी की गई हैं। यही वजह है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को भी शिमला शहर में हो रहे अनियोजित विकास को लेकर हस्तक्षेप करना पड़ा है।  एनजीटी ने शिमला के कोर एरिया, ग्रीन एरिया के साथ-साथ वन क्षेत्र में अब निर्माण कार्यों पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है।

अगले साल बेहतर होगा रोड नेटवर्क

राजधानी शिमला को पर्यटन की दृष्टि से और विकसित करने के लिए एक बड़ा प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से 185 करोड़ रुपए खर्च कर शिमला की सड़कें और सर्कुलर रोड को सुधारा जाएगा। राजधानी को विकास कार्यों के लिए यह बजट स्मार्ट सिटी के तहत केंद्र सरकार की ओर से दिया जाएगा। जानकारी के अनुसार शिमला के सभी बाइपास, बस स्टैंड और सर्कुलर रोड को चौड़ा किया जाएगा। खास बात यह रहेगी कि इस योजना के तहत शिमला के बाईपास के समीप और ब्रिज ओवर भी बनाए जाएंगे, ताकि जाम की समस्या से भी छुटकारा मिल सके। बताया गया है कि 185 करोड़ के बजट से शिमला के रोड़ नेटवर्क का विस्तार करने और सर्कुलर रोड़ को ठीक करने के लिए केंद्र सरकार ने ही बजट को मंजूरी दी है। हालांकि अभी बजट नहीं मिला है। जानकारी के अनुसार पहले चरण में शिमला की किन सड़कों का निर्माण किया जाएगा, इसको लेकर रोड मैप तैयार कर लिया गया है। केंद्र सरकार को यह मंजूरी के लिए भेजा जा रहा है। शिमला में इस प्रोजेक्ट की डीपीआर भी पूरी तरह से तैयार कर ली गई है।

कंकरीट के जंगल में बदले शहर

प्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थलों में वर्तमान स्थिति का यदि आकलन किया जाए तो इन क्षेत्रों में अधांधुंध भवन निर्माण कार्य हुआ है। इस वजह से इन पर्यटक स्थलों का प्राकृतिक सौंदर्य खत्म होने लगा है।  राजधानी शिमला की बात की जाए तो शहर कंकरीट के जंगल में तबदील हो गया है। शहर के उपनगर संजौली, न्यू शिमला, बीसीएस, टुटू, विकासनगर, पंथाघाटी में अनियोजित तरीके से भवन निर्माण हुआ है।  प्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थलों पर ट्रांसपोर्टेशन के दबाव के कारण भी ये स्थल अपनी चमक खोने लगे हैं। इसका असर कैरिंग कैपेसिटी पर भी पड़ रहा है।

महज 5000 गाडि़यां पार्क करने की जगह

राजधानी शिमला में कुल पांच हजार गाडि़यों को पार्क करने की क्षमता है। इसके अलावा नगर निगम के पास अपनी जो पार्किंग है, उसमें केवल 2500 गाडि़यों करे पार्क करने की सुविधा दी गई है। इसी तरह शिमला में लिफ्ट के समीप नगर निगम की सबसे बड़ी पार्किंग है। इसके अलावा संजौली, पुराने बस स्टैंड, छोटा शिमला, कुसुम्पटी और ऐसी छोटी-छोटी पार्किंग्स नगर निगम ने जगह-जगह  बनी हुई हैं। हालांकि शिमला में लोगों की अपनी निजी पार्किंग भी हैं, जिनमें पर्यटकों व आम लोगों से गाडि़यां पार्क करने के लिए अधिक पैसे घंटों के हिसाब से लिए जाते हैं। शिमला में पार्किंग की समस्या कई सालों से चली आ रही है, लेकिन इसका समाधान अभी तक नहीं हो पाया है।

स्मार्ट सिटी से सुंदर बनेगी पहाड़ों की रानी 

राजधानी शिमला में आने वाले पांच वर्षों में स्मार्ट सिटी शहर की तस्वीर पूरी तरह से बदलेगी। स्मार्ट सिटी के तहत कई करोड़ों से शहर में छोटे से छोटा, बड़े से बड़ा विकास कार्य किया जाएगा। शिमला शहर में कुछ वर्षों में स्मार्ट पार्किंग, मुख्य सार्वजनिक स्थलों पर ई-शौचालय का निर्माण, ईको टूरिज्म डिवेलपमेंट और पार्क-कंपोस्टिंग का निर्माण करना, शहर में स्मार्ट टै्रफिक का प्रबंध किया जाएगा। इस तरह से स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट अगर सफल हो पाता है तो कुछ सालों शिमला की तस्वीर पूरी तरह से बदल जाएगी। अहम यह है कि शिमला में आने वाले समय में कई रोप-वे का निर्माण भी स्मार्ट सिटी के तहत किया जाएगा। कुल मिलाकर कुछ सालों बाद राजधानी को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए स्मार्ट सुविधाएं यहां पर्यटकों और शहरवासियों को दी जाएगी।

एनजीटी के नियम पर लोगों के सवाल

एनजीटी ने कैरिंग कैपेसिटी पर जो प्रश्न उठाए हैं, वे शिमला शहर के लिहाज से काफी हद तक सही हैं, लेकिन शहर के बाहरी एरिया में एनजीटी के नियम लागू नहीं होने चाहिएं। शिमला एक पर्यटक स्थल है, जो आर्थिकी का एक अहम हिस्सा है। वहीं, इस व्यवस्या के हजारों लोग जुड़े हैं। ऐसे में शहर के बाहर 10 से 15 किलोमीटर की दूरी पर पर्यटन से जुड़ी व्यवसायिक गतिविधियों के लिए निर्माण कार्य की स्वीकृति दी जानी चाहिए। होटल व्यवसायियों का कहना है कि अपने स्तर पर होटलों द्वारा पर्यटकों की हर संभव सुविधा देने का प्रयास किया जा रहा है। पानी और पार्र्किंग की सुविधा अपने स्तर पर दी जा रही है। मौजूदा समय में शहर में छोटे बड़े मिलाकर कुल 252 होटल है,ं जिसमें से 48 प्रतिशत के पास पार्किंग सुविधा है।

पर्यटन सीज़न में शहर हो जाता है पैक

शिमला न केवल प्रदेश की राजधानी है बल्कि यह एक पर्यटन स्थल भी है। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों के साथ-साथ देश-विदेश से लाखों सैलानी यहां पहुंचते हैं। गर्मियों और सर्दियों में बर्फबारी के समय यहां सबसे ज्यादा सैलानी आते हैं। शिमला शहर में आने वाले सैलानियों में करीब 80 फीसदी सैलानी गर्मियों के सीजन में यहां आते हैं। शिमला शहर में सैलानियों का रश गर्मियों, बर्फबारी और नव वर्ष जैसे मौकों पर एकाएक बढ़ जाता है। शिमला शहर के कोर एरिया पर सैलानियों का दवाब ज्यादा रहता है। आम तौर पर पर्यटक सीजन के दौरान शहर में एक ही दिन में सैलानियों के 10 से 15 हजार वाहन रोजाना पहुंचते हैं। वहीं कुछ एक मौकों पर शिमला शहर में 25 से 30 हजार वाहन भी सैलानियों के पहुंचते हैं और सैलानियों की तादाद पौने एक लाख तक पहुंच जाती है। पुलिस विभाग ने करीब दो साल पहले शिमला पहुंचने वाले सैलानियों को लेकर आंकड़े जुटाए थे। इन आंकड़ों के अनुसार 31 दिसंबर, 2016 को सुबह पांच बजे से लेकर पहली जनवरी, 2017 तक की सुबह पांच बजे तक करीब 65 हजार सैलानी पहाड़ों की रानी शिमला में पहुंचे थे। इस 24 घंटों की अवधि के दौरान परवाणू बैरियर से सोलन और शिमला की ओर 32 हजार वाहन गुजरे थे, वहीं शोघी  बैरियर से भी इस दौरान करीब 27 हजार वाहन क्रॉस हुए थे। इस दिन राजधानी के मालरोड पर ही नववर्ष पर करीब 25 हजार सैलानी पहुंचे हुए थे। शिमला के मालरोड, रिज के साथ ही पर्यटक स्थल कुफरी में भी हजारों सैलानी गर्मियों में पहुंचते हैं।

सुनहरे भविष्य का प्लान

पर्यटक नगरी शिमला को आने वाले समय में हाईटेक सुविधाओं से लैस किया जाएगा। शिमला में स्मार्ट सुविधाएं आम जनता व पर्यटकों को मिलें, इसके लिए 58 प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी में शािमल किए गए हैं। इनमें रोड नेटवर्क के विकास को लेकर ओवर ब्रिज बनाने तक का मास्टर प्लान तैयार किया गया है। राजधानी की ऐतिहासिक जगहों के पुनर्निर्माण को लेकर भी स्मार्ट सिटी में बजट का प्रबंध किया गया है। वहीं खास बात यह है कि शिमला के पुराने अस्पतालों में भी मूलभूत सुविधाएं स्मार्ट सिटी के तहत मुहैया करवाई जाएग। शिमला को स्मार्ट सिटी में लाने के लिए कई जगहों पर रोप-वे का भी निर्माण किया जा रहा है।

अब पहले वाला शिमला कहां

स्थानीय निवासी सुभाष वर्मा ने कहा कि अब शिमला, शिमला कहां रहा। कभी हरे-भरे जंगलों से घिरा शिमला आज कंकरीट का जंगल नजर आता है। शहर में अंधाधुंध निर्माण कार्य का नतीजा है कि शहर  की हरियाली गायब हो गई है। विकास और पर्यटन के नाम पर शहर के हासिल कम किया है, उल्टा गंवाया ही है। शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल जाखू इसका उदाहरण है, जो कभी घने जंगल से ढका था आज अत्याधिक निर्माण कार्य के चलते पेड़ों को खोता जा रहा है।

प्रकृति से खिलवाड़ ठीक नहीं

शिमला के गुलाब सिंह ठाकुर ने बताया कि इन सालों में शहर का स्वरूप पूरी तरह बदल गया। विकास होना भी जरूरी है, लेकिन विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ करना जायज नहीं है। उन्होंने कहा कि पुराने समय में शहर के प्राकृतिक सौंदर्य का कोई मुकाबला नहीं था, लेकिन आज प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने शहर के बाहर जाना पड़ता है। जंगलों को साफ कर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं।

नियमों के मुताबिक होना चाहिए निर्माण

सेवानिवृत्त टीसीपी प्लानर राजेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि शिमला शहर के संदर्भ में एनजीटी के ऑब्जेक्शन काफी हद तक सही है, लेकिन शहर की मौजूदा स्थिति व जगह को देखते हुए तीन से अधिक मंजिला भवन बनाने की स्वीकृति दी जाए। शहर में अवैध निर्माण तुरंत प्रभाव से बंद होना चाहिए। भवन निर्माण तय  नियमों और पास किए गए नक्शों के मुताबिक होना चाहिए। इसके अलावा नियमों में संशोधन संबधित टीसीपी प्लानर और तकनीकि विशेषज्ञो की सलाह पर होना चाहिए।

विकास का मास्टर प्लान ही तैयार नहीं

नगर निगम ने शहर की कैरिंग कैपेसिटी बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार को शिमला का डिवेलपमेंट प्लान तैयार  को सुझाव दिया था। साथ ही शहर की कैरिंग क्षमता कम होने की सूरत में शहर के बाहरी क्षेत्रों को बड़े नियोजित रिहायशी क्षेत्र के रूप में विकसित करने के सुझाव दिया था। इसमें लोगों को शहर की तर्ज पर सारी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं, लेकिन हालत यह है कि आज तक इसका मास्टर प्लान ही तैयार नहीं किया गया। वहीं, जो इसका अंतरिम डिवेलपमेंट प्लान तैयार किया गया, उसको भी सही तरीके से लागू नहीं किया गया। यह तब है, जबकि शिमला शहर पूरे प्रदेश की राजधानी है और यहां नगर नियोजन विभाग यानी टीसीपी का मुख्यालय है, लेकिन शिमला शहर को प्लानिंग के अनरूप तो बसाया ही नहीं गया। इसके लिए जो अंतरिम प्लान बनाया भी गया था, उसके अनुरूप शिमला शहर का विकास ही नहीं किया गया। शिमला शहर का अंतरिम डिवेलपमेंट 1979 में तैयार किया गया था। यह प्लान 2001 की शहर की आबादी और उसकी जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था, लेकिन इस प्लान को पूरी तरह लागू ही नहीं किया गया।

39 साल पहले बनाया था अंतरिम डिवेलपमेंट प्लान

शिमला शहर का अंतरिम डिवेलपमेंट प्लान 1979 में तैयार किया गया था। यह प्लान 2001 की शहर की आबादी और उसकी जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। प्लान में शिमला शहर की संभावित आबादी करीब 1.27 लाख रखी गई थी। इस आबादी के लिए क्या-क्या सहूलियतें होनी चाहिएं और शहर का कैसा विकास होना चाहिए, इसका खाका इस प्लान में था। इस प्लान में यह तय किया गया था कि कहां पर आवासीय क्षेत्र होंगे, कहां पर औद्योगिक क्षेत्र और कहां पर अन्य कार्यों के लिए जगह होंगी। इसमें शिमला शहर के आसपास उपनगरों के विकसित होने की भी संभावना थी, लेकिन इस प्लान को पूरे तौर पर लागू ही नहीं किया गया। शहर के अनियोजित विकास हुआ। जहां औद्योगिक क्षेत्र होने चाहिए थे, वहां पर आबादी बस गई। मसलन प्लान में संजौली क्षेत्र में सर्विस इंडस्ट्रियल जोन बनाया जाना था, लेकिन इस पूरे इलाके को रिहायशी क्षेत्र में बदल दिया गया और यहां हजारों घर बन गए।

अवैध निर्माण पर एनजीटी सख्त

एनजीटी ने प्रदेश में अवैध भवन निर्माण को लेकर सख्त आदेश पारित कर रखे हैं। इसके तहत शिमला और इसके आसपास के क्षेत्रों में अढ़ाई मंजिल से ऊंचे भवन निर्माण पर भी रोक लगा दी गई है। साथ ही  हरित क्षेत्र में नए आवासीय, संस्थागत और व्यावसायिक निर्माण की अनुमति नहीं दी गई है। सघन हरित या वन क्षेत्र के बाहर का ऐसा इलाका, जो शिमला प्लानिंग एरिया के प्राधिकरणों के अधीन आता है, वहां भी निर्माण बेहद कड़ी शर्तों और मौजूदा टीसीपी कानून, विकास योजना, नगरीय कानूनों के आधार पर ही संभव है। एनजीटी के आदेशों के बाद शिमला में अब दो मंजिला भवन से अधिक नहीं बनाया जा सकेगा। जाहिर है इस फैसले की चपेट में अब भवनों के साथ ही होटलों भी आ गए हैं। एनजीटी के फैसले के बाद शिमला में होटल कारोबार करने के लिए कोई निवेशक आगे नहीं आ रहा है। नगर निगम और टीसीपी ने अढ़ाई मंजिल से अधिक ज्यादा के नक्शे पास करवाने पर रोक लगा दी है। इससे शिमला में बड़े होटलों का निर्माण नहीं हो सकेगा। यही वजह है कि अब हिमाचल से बड़े निवेशक हाथ खींचने लगे हैं।  पर्यटन स्थलों पर पहले ही जमीनों की कीमतें आसमान छू रही है। कारोबारियों की मानें तो अढ़ाई मंजिल तक होटल बनाने से उनको घाटा होगा। इससे पर्यटन कारोबारर अब नई होटल इकाइयों के निर्माण से हाथ खींच रहे हैं।

पीक सीजन में कम पड़ जाते हैं होटल

शिमलाd  शहर में सैलानियों लिए होटल सुविधाएं भी कम पड़ जाती हैं। पीक सीजन में शिमला के होटलों पर दबाव बढ़ जाता है। शिमला शहर में मौजूदा समय में करीब 252 होटल पंजीकृत हैं, जो कि पीक सीजन में कम पड़ जाते हैं। एक अनुमान  पीक सीजन में जितने सैलानी शिमला शहर में पहुंचते हैं, उनके लिए यहां पर एक हजार होटल भी कम हैं। हालांकि शिमला शहर में अब होटल सुविधाओं के विस्तार की संभावनाएं क्षीण हो गई हैं और ऐसे में शहर से बाहर के इलाकों में होटलों सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा सकती हैं।  सैलानियों के दवाब से पानी की किल्लत होना भी आम है। गर्मियों में शिमला में पानी की कमी को बाहर से आने वाले सैलानी और भी गहरा देते हैं।  जाहिर है कि भारी संख्या में शिमला में सैलानियों के आने से होटल, सड़क, पानी व अन्य मूलभूत सुविधाओं पर दवाब बढ़ जाता है।

टै्रफिक जाम-अनियोजित निर्माण चुनौती

टूरिस्ट प्लेस और राजधानी मुख्यालय होने के चलते शिमला में सैलानियों की आमद से विकास को तो गति मिली है, मगर इससे कई चुनौतियां भी खड़ी हो गई हैं। सैलानियों की तादाद बढ़ने से यहां ट्रै्रफिक जाम की समस्या विकराल  हो गई है। सड़कों पर भीड़ बढ़ने से जहां स्थानीय लोगों का जीना दूभर हो गया है, वहीं सैलानी भी इससे अछूते नहीं हैं। शिमला में हर वर्ष समर व विंटर सीजन के दौरान बाहरी राज्यों से काफी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं। इसके अलावा मुख्यालय होने के चलते यहां लोगों का आना-जाना भी लगा रहता है। जब सभी लोग अपने वाहन लेकर चलते हैं, तो यहां बार-बार टै्रफिक जाम लगता रहता है। हालांकि प्रशासन द्वारा इससे निपटने के लिए हर वर्ष योजनाएं बनाई जाती हैं और व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस भी तैनात की जाती है, मगर इसके बावजूद जनता को आए दिन टै्रफिक जाम की समस्या से जूझना पड़ता है। शिमला में सड़कें तंग हैं और इनके विस्तार के लिए जगह ही नहीं है। ऐसे में इस चुनौती से पार पाना सरकार व प्रशासन के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है और यह शहर की कैरिंग क्षमता पर भी भारी पड़ रहा है। इसके अलावा शहर में अनियोजित विकास हुआ है। शिमला शहर में सैकड़ों भवन बनाए गए हैं और वे पूरी तरह से अनियोजित तरीके से बने हैं। शुरू में भवनों को नक्शों के अनुरूप  बनाया गया था, लेकिन अब हालात यह हो गए हैं कि उपनगरों में सड़कें बनाने की संभावना तो दूर, कई जगह पैदल चलने के लिए रास्ते तक नहीं रहे हैं। शिमला के संजौली, न्यू शिमला, समरहिल, टुटू, ढली, बीसीएस सहित साथ लगते क्षेत्रों में हजारों घर बन गए हैं।

बड़े होटलों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट जरूरी

एनजीटी ने शिमला में बड़े होटलों के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने के निर्देश दिए थे। इसमें कहा गया था कि 25 कमरों से अधिक वाले होटलों को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने होंगे। इसको लेकर पर्यटन विभाग द्वारा जांच भी की गई है। पर्यटन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि शिमला में होटल सीवरेज लाइनों से जुड़े हैं। ऐसे में यहां कोई होटल खुले में सीवरेज नहीं बहा रहा। सीवरेज लाइनों से जुड़ने की वजह इन होटलों का सीवरेज नगर निगम के ट्रीटमेंट प्लांट में जा रहा है।

हर साल बढ़ रहा ट्रैफिक का बोझ

शहर पर ट्रैफिक का दबाब हर साल बढ़ रहा है। एक ओर जहां शिमला शहर में ही करीब एक लाख वाहन पंजीकृत हैं तो वहीं हजारों वाहनों के यहां पहुंचने से सड़कों पर जाम लग जाता है। शहर में अंग्रेजों के जमाने की सड़कें हैं। हालांकि शिमला के सर्कुलर रोड को चौड़ा करने का काम अब शुरू किया गया है, लेकिन इसकी चौड़ाई बढ़ाने की संभावनाएं भी कुछ ही जगह पर हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App