ऐसी जिंदगी से तो मौत को गले लगाना बेहतर

By: May 18th, 2019 12:05 am

नेरवा—नेरवा तहसील की बौर पंचायत के बिगरौली गांव की एक दृष्टिहीन महिला सुमित्रा ने अभाव भरी जिंदगी से आजिज आकर जान देने की बात कही है। महिला के इस दर्द ने सरकार द्वारा गरीबों के लिए चलाई योजनाओं के क्रियान्वयन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। गुहार लगाते हुए सुमित्रा ने कहा है कि यदि उसे सरकार से मदद नहीं मिली तो वह जहर खा कर अपनी व अपने बच्चों की इहलीला समाप्त कर देगी। बिगरौली गांव में रहने वाली सुमित्रा बचपन से ही सौ प्रतिशत दृष्टिहीन है व उसके पति घटनु की अढ़ाई वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी है। सुमित्रा का 13 साल का बड़ा बेटा नीरज, जिसे स्कूल में होना चाहिए था। मेहनत मजदूरी कर किसी तरह घर का खर्च चला रहा है। दूसरा दस वर्षीय बेटा संदीप पांचवी कक्षा, सात वर्षीय बेटी तीसरी कक्षा में पढ़ती है जबकि सबसे छोटा चौथा बेटा तीन साल का है। सुमित्रा ने बताया कि आज तक पंचायत का कोई भी नुमायंदा उसका हाल जानने उसके पास नहीं आया। उसका शत-प्रतिशत अपंगतता का प्रमाण पत्र गांव के ही एक व्यक्ति रत्न सिंह ने बनवाया है जिसके लिए वह उनका आभार व्यक्त करती हैं। सुमित्रा अपने इन चार बच्चों के साथ झोंपड़ी नुमा एक कमरे के घर में रहती है। इसी कमरे में लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाया जाता है व पांच जनों का परिवार इसी एक कमरे में रहता व सोता है। गांव वाले कभी कभार सुमित्रा की मदद कर देते हैं। सुमित्रा के घर तक न तो बिजली पहंुची है न ही पानी, शौचालय भी नहीं है व घर तक पहुंचने के लिए ठीक से रास्ता भी नहीं है। रत्नसिंह ने गृहिणी योजना के तहत गैस कनेक्शन दिलवाया है, परंतु घर तक सड़क सुविधा न होने के कारण वह कहीं आधे रास्ते में ही किसी के घर में रखा है। इस विषय में ग्राम पंचायत कोटि की प्रधान सरला जोशी ने कहा कि घर बनाने के लिए पंचायत की तरफ से पैसा दिया जा चुका है, जबकि शौचालय के लिए उसका नाम पंचायत की शैल्फ में डालकर खंड विकास अधिकारी को पे्रक्षित किया जा चुका है। वह अपने छोटे छोटे बच्चों की मदद से जंगल से लकडि़यां लाकर आज भी चूल्हे पर ही खाना बनाती है। इसे गरीबी की इंतहा ही कहा जाएगा कि यह परिवार जंगली जड़ी बूटियों की सब्जियां बनाकर अपना गुजारा चला रहा है। यदि घर में कभी कभार दाल, सब्जी बन जाए तो इसे तीन तीन दिनों तक बचा-बचाकर खाया जाता है। सुमित्रा अपने बच्चों को बाल आश्रम में भेजना चाहती है परंतु उसे इसकी प्रक्रिया के बारे कोई भी जानकारी नहीं है। सुमित्रा ने सरकार से गुहार लगाई है कि उसके बच्चों को बाल आश्रम में भेजने की व्यवस्था की जाए व सरकार की तरफ  से मिलने वाली सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं।


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