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कम से कम बीस मिनटों तक तेज चलने, दौडऩे व शारीरिक क्रियाओं के करने से रक्त वाहिकाओं में रक्त संचार तेज हो जाता है। उससे हर मसल को उपयुक्त मात्रा में प्राणवायु मिलने से उसका समुचित विकास होता है। आज के विद्यार्थी को अगर कल का अच्छा नागरिक बनाना है तो हमें उसके लिए सही फिटनेस कार्यक्रम भी देना होगा...

छात्रों को भी अपनी प्रतिभा पर आत्मविश्वास जगाना होगा ताकि ट्यूशन व कोचिंग की जरूरत न पड़े। शिक्षा व्यवस्था का परिदृश्य बदलने वाली ट्यूशन, कोचिंग तथा निजी व विदेशी शैक्षणिक संस्थानों की तरफ छात्रों का बढ़ता क्रेज चिंतनीय है...

वास्तव में यह एक क्रांति की तरह है, जिससे हर दिन लाखों छात्र लाभान्वित हो रहे हैं। एआई को अगर आने वाले समय की मुख्य जरूरत कहा जाए तो गलत नहीं होगा। पढ़ाई से लेकर बिजनेस तक कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां इसका इस्तेमाल नहीं होता है। समय के साथ लोगों की निर्भरता एआई पर बढ़ी है और आगे यह और बढ़ेगी। राज्य सरकारें स्कूल शिक्षा की विषय वस्तु में आर्टिफिशियल इंटेलि

केंद्रीय राजस्व में हिस्सेदारी के अलावा, इन राज्यों को महत्वपूर्ण राजस्व घाटा अनुदान भी दिया गया। राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय सद्भाव के मुद्दों पर हमें अलगाववादी बयानों से बचना चाहिए...

हम उम्मीद करें कि सरकार और देश के उद्योग-कारोबार जगत के द्वारा देश के तेज विकास और आम आदमी के आर्थिक-सामाजिक कल्याण के मद्देनजर दुनिया के विभिन्न विकसित देशों की तरह भारत में भी बौद्धिक समझ, शोध एवं नवाचार पर अधिक धनराशि व्यय होगी...

अंग्रेजी भाषा की हुकूमत से यदि भारतीय भाषाएं बहरों की अंजुमन में दर्द की गजल पेश करके अपने वजूद पर अश्क बहा रही हैं तो मैकाले का तस्सवुर यही था। अत: अपनी शिक्षा-संस्कृति का वजूद बचाने के लिए भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता अवश्य देनी होगी...

जब तक अन्ना हजारे या दूसरे लोग कुछ समझ पाते, तब तक खेला हो चुका था। आम आदमी पार्टी बन गई थी। उसने लोकसभा के चुनावों में प्राय: हर सीट पर अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया था। खुद वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़े हो गए और उसके दूसरे साथी कुमार विश्वास अमेठी में ताल ठोकने लगे। लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हुआ... दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद

भवन निर्माण उन्नत प्रौद्योगिकी के कारण कहीं भी हो सकता है तो फिर मैदान के लिए दुर्लभ समतल जगह को क्यों बरबाद कर रहे हो। हर शिक्षा संस्थान को अपना खेल मैदान चाहिए। नए खेल मैदानों का निर्माण व पुरानों का संरक्षण जरूरी है...

भजन-कीर्तन करते हों तो करें। माला जपते हों तो जपें। उसमें कुछ भी बदलने की आवश्यकता नहीं है। समझना सिर्फ ये है कि ये सब अध्यात्म की शुरुआती सीढिय़ां हैं। अध्यात्म में आगे तब बढ़ेंगे जब हम खुद भगवान हो जाएंगे, तो हमारा हर काम खुद-ब-खुद परमात्मा को समर्पित होता चला जाएगा। जीवन सिर्फ स्वस्थ ही नहीं होगा, खुशनुमा भी होगा और खुशहाल भी होगा। स्पिरिचुअल हीलिंग, यानी आध्यात्मिक उपचार इस मामले में हमारे लिए सबसे उपयुक्त साधन है, जो हमें हमारी मानसिकता