भरत झुनझुनवाला

सरकार ने छोटे उद्योगों को सरल ऋण उपलब्ध कराने पर जोर दिया है जो कि सामान्य परिस्थितियों में सही बैठता। लेकिन जिस समय छोटे उद्योगों द्वारा बनाया गया माल बाजार में बिक ही नहीं रहा है, उस समय उनके द्वारा ऋण लेकर कठिन समय पार करने के बाद उनके ऊपर ऋण का अतिरिक्त बोझ आ

भारत सरकार ने दिसंबर 2019 में अपनी जीडीपी का 74 प्रतिशत ऋण ले रखा था जो कि दिसंबर 2020 में बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया है। इस वर्ष के बजट में वित्त मंत्री ने भारी मात्रा में ऋण लेने की घोषणा की थी जो कि कोविड की दूसरी और तीसरी लहर के कारण हुई क्षति

इसलिए हमें दीर्घ अवधि के लिए सोचना चाहिए और इस गलतफहमी से उबरना चाहिए कि यदि हमने 15 दिन के लिए लॉकडाउन आरोपित कर दिया तो इसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा। जरूरत यह है कि किन कार्यों पर और किस प्रकार से लॉकडाउन लगाया जाए, इस पर विचार किया जाए। इसके हर कार्य

तात्पर्य यह कि राज्य सरकारों द्वारा दिए गए अधिक मूल्य के द्वारा केंद्र सरकार को सबसिडी दी जा रही है। यदि केंद्र सरकार सीरम इंस्टीच्यूट को कोविशील्ड का सही मूल्य अदा कर दे तो सीरम इंस्टीच्यूट द्वारा राज्य सरकारों को भी इसे सस्ता उपलब्ध कराया जा सकता है। चूंकि महामारी की चपेट में संपूर्ण देश

बड़े व्यापारियों ने सीमेंट, लोहे और एयर कंडीशनर आदि की आपूर्ति की, उस उत्पादन में रोजगार कम संख्या में बने, आम आदमी के हाथ में रकम कम आई और बाजार में मांग कम बनी। बड़ी कंपनियों का कार्य अवश्य बढ़ा परंतु जमीनी स्तर पर अर्थव्यवस्था में चाल नहीं बनी। इसकी तुलना में यदि सरकार संसद

वर्तमान संकट से शीघ्र ही छुटकारा मिलने वाला नहीं दिख रहा है। सरकार को सर्वप्रथम टीका बनाने में भारी निवेश करना चाहिए, विशेषकर देश में उपलब्ध गंगा के फाज अथवा आयुर्वेद इत्यादि से। दूसरे, ऋण लेकर अपने खर्चों को सामान्य रूप से बनाए रखने की नीति को त्याग कर सरकारी खर्चों में 50 प्रतिशत की

समस्या यह है कि यदि सरकार पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टी और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठनों को मान्यता देती है तो इन संगठनों द्वारा भ्रष्ट नौकरशाही के साथ-साथ भ्रष्ट सरकार पर भी प्रश्न उठाए जाते हैं, जो कि सरकार को मान्य नहीं होता है। प्रतीत होता है कि इसलिए सरकार का प्रयास है कि सिविल

जरूरत इस बात की है कि हम अपने समग्र पर्यावरण की रक्षा करें, जिससे उत्तराखंड में जंगल का जलना, गंगा के पानी का प्रदूषित होना इत्यादि न हो। देश का पर्यावरण स्वच्छ और स्निग्ध हो ताकि देश के अमीर देश में ही रहकर अपनी पूंजी का निवेश देश में ही करने को लालायित हों और

अतः कम ही सही, लेकिन श्रमिक को कुछ रोजगार मिलता रहे, इसके लिए जरूरी है कि श्रम की उत्पादकता को  बढ़ाया जाए। श्रम की उत्पादकता बढ़ाने के दो प्रमुख उपाय हैं। एक यह कि उत्तम मशीनों का उपयोग किया जाए जिससे कि उसी कुशलता के स्तर का श्रमिक अधिक उत्पादन कर सके। दूसरा यह है