डा. कुलदीप चंद अग्रिहोत्री

सदियों पहले अरबों ने ईरान पर हमला करके उसे जीत लिया था। जीत ही नहीं लिया था बल्कि उसे बलपूर्वक इस्लाम पंथ में मतान्तरित भी कर लिया था। बहुत से ईरानी उस समय मतान्तरण से बचने के लिए ईरान से भाग कर भारत में भी आ गए थे जिन्हें आजकल पारसी कहा जाता है। लेकिन अब ईरान अरबों के आगे विवश था। उसकी सभ्यता संस्कृति खत्म हो रही थी। अरबों से बदला लेने का उसे पहला अवसर तब मिला जब मुसलमानों ने हजरत मोहम्मद को दामाद हजरत अली और उनके सभी रिश्तेदारों की कर्बला के मैदान में धोखे से हत्या कर दी थी...

यह काम कनाडा को दिया गया क्योंकि विश्व राजनीति में कनाडा की औकात कुछ नहीं है। बाकी चार आंखें जमा जुबानी कनाडा की हां में हां मिलाती रहेंगी। लेकिन भारत से संबंध बिगाड़ेंगी नहीं क्योंकि चीन

गुज्जर जिसे संस्कृत में गुर्जर कहा जाता है, जितना प्राचीन शब्द है, उतना ही प्राचीन इनका इतिहास है। गुजरात और राजस्थान से इनका इतिहास जुड़ा हुआ है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू और कश्मीर में जितने गुज्जर समुदाय के लोग हैं, वे सभी किसी न किसी समय राजस्थान से ही चल कर इन स्थानों पर पहुंचे थे। मोटे तौर पर गुज्जर पशुओं का पालन करते हैं। उनको लेकर निरन्तर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। लेकिन इतने वर्षों में गुज्जर जन-समुदाय के कुछ लोगों ने घुमक्कड़ी का जीवन छोड़ कर स्थायी तौर पर भी रहना शुरू कर दिया है। स्थायी

मोदी सरकार को अपदस्थ करने में लगी शक्तियों को जानते-बूझते हुए भी, प्रधानमंत्री बनने की लालसा के चलते, राहुल गांधी हाथ में जाति का झुनझुना बजाते हुए मैदान में घूम रहे हैं...

मैरीलैंड में अंबेडकर की मूर्ति स्थापना का संकेत क्या है? भारत को भी उत्तरी अमेरिका में अफ्रीकी मूल के नागरिकों व इंडियन के अधिकारों के लिए अपनी आवाज विश्वमंचों पर उठानी चाहिए...

पिछली बार बातचीत करने के लिए नेहरू ने शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को भेजा था, इस बार उन्हीं के पुत्र और पौत्र फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला को भेजा जा सकता है।

सोवियत संघ के पतन के बाद ग्रामकी का यह सिद्धांत अमेरिका के विश्वविद्यालयों में पुन: प्रकट होने लगा। लेकिन कल्चरल माक्र्सवाद के पैरोकारों को लगता है भारत इस क्रांति के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। यह सनातन राष्ट्र हजारों सालों के झंझावातों को झेलता हुआ भी अपनी आत्मा या चिति को बचाए हुए है। यह गतिशील भी है और सनातन भी है। इसलिए जब तक भारत को विखंडित नहीं किया जाता, तब तक कल्चरल माक्र्सवाद का यह रथ दलदल से बाहर नहीं निकल सकेगा। शायद हमारे अपने उच्चतम न्यायालय में भी यह बहस शुरू हो गई है कि किसी के लिंग का निर्धारण करने का अधिकार किसी दूसरे को नहीं है। प्रोफेशनल आंदोलनकारियों

यही कारण था कि जब दुनिया के बाकी देश दिल्ली में आकर भारत की प्रशंसा कर रहे थे, इंग्लैंड के प्रधानमंत्री अपने सनातनी हिंदू होने पर गर्व कर रहे थे, तब राहुल गांधी इंडिया गठबंधन के प्रतिनिधि के तौर पर विदेशों में जाकर बता रहे थे कि यदि भारत में इसी प्रकार चलता रहा तो देश का पतन हो जाएगा। उनको वही भारत चाहिए था जो अंग्रेज छोड़ कर गए थे। राहुल एक बार महात्मा गांधी का हिंद स्वराज पढ़ लें तो उन्हें सब

यही कारण है कि इस्लाम पंथ, ईसाई पंथ या यहूदी पंथ के पैरोकार भारत के समाज का अध्ययन भी इसी मनोविज्ञान के सहारे करते हैं। इसलिए भारतीय/हिंदू समाज को लेकर