आस्था

श्रीश्री रवि शंकर प्रेम सभी नकरात्मक भावनाओं का जन्म दाता है। जिनको उन्मत्तता से प्रेम होता है वे शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं। वे सब कुछ उत्तम चाहते हैं। वे हर चीज में पूर्णता ढूंढते हैं। ईष्र्या प्रेम के कारण होती है। आप किसी से प्रेम करते हो, तो ईष्र्या भी आती है। लालच आता

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… स्वामी जी वृंदावन में पहुंचकर कला बाबू के कुंज में ठहरे और उनके मेहमान बने। स्वामी जी ने एक दिन अपने शरीर के कोपिन को धोकर किनारे पर सूखने के लिए डाल दिया और खुद स्नान के लिए पानी में उतर गए। स्नान करके जैसे ही निकले, वहां से कोपिन

* जीत निश्चित हो तो कायर भी लड़ सकता है। बहादुर तो वह है जो हार निश्चित हो फिर भी मैदान न छोड़े * अपने रहस्यों को किसी पर भी उजागर मत करो। यह आदत स्वयं के लिए ही घातक सिद्ध होगी * खेत में बोए हुए सभी बीज अंकुरित नहीं होते, परंतु जीवन में

मौसम में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। सुबह के समय ठंड अपनी चरम पर होती है। कई लोगों को इस समय घर से बाहर निकलकर आफिस के लिए जाना होता है। यहां तक कि अब तो स्कूल भी खुल गए हैं। इस तरह, देखें तो अगर इस मौसम में अपनी सेहत पर

लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर में लोहड़ी नाम से मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। एक प्रचलित लोककथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन कंस ने कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था जिसे कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिंधी समाज में भी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व ‘लाल लाही’ के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है...

दुर्गाष्टमी का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। प्रत्येक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर दुर्गाष्टमी व्रत किया जाता है, इसे मासिक दुर्गाष्टमी भी कहते हैं। इस दौरान श्रद्धालु दुर्गा माता की पूजा करते हैं और उनके लिए पूरे दिन का व्रत करते हैं। मुख्य दुर्गाष्टमी, जिसे महाष्टमी कहा जाता है, आश्विन माह में नौ दिन के शारदीय नवरात्र उत्सव के दौरान पड़ती है। दुर्गाष्टमी को दुर्गा अष्टमी और मासिक दुर्गाष्टमी को मास दुर्गाष्टमी के नाम से

मकर संक्रांति भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी के महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परंपरा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है। इस त्योहार का संबंध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। ये तीनों चीजें ही जीवन का आधार हैं। प्रकृति के कारक के तौर पर इस पर्व में सूर्य देव को पूजा जाता है, जि

हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पर देवी-देवताओं के कई चमत्कारी मंदिर स्थित हैं, उन्हीं में से जिला कांगड़ा में एक ऐसा अकेला शक्तिपीठ है, जहां माघ मास में आयोजित होने वाले पर्व के बाद मिलने वाले प्रसाद को आप खा नहीं सकते।

नाथ संप्रदाय के सबसे बड़े मठ गोरखनाथ मंदिर में हर साल 14 जनवरी को खिचड़ी मेले का आयोजन होता है। यह मेला मकर संक्रांति से लेकर एक महीने तक मंदिर परिसर में लगता है। मेले में भारत के विभिन्न राज्यों से लोग आते हैं और मेले का लुत्फ उठाते हैं। इस बार भी खिचड़ी मेला बड़ी धूमधाम से आयोजित किया जा रहा है।