आस्था

हिंदू पंचांग के अनुसार, 20 मार्च यानी आमलकी एकादशी के दिन बाबा श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। ऐसे में प्रसिद्ध बाबा खाटू श्याम का लक्खी मेला 21 मार्च तक आयोजित किया जाएगा। वहीं, बाबा श्याम का मुख्य लक्खी मेला 20 मार्च को होगा। इस बार लक्खी मेला 10 दिवसीय होगा। इस मेले में देशभर से लाखों भक्त पहुंचते हैं। खाटूश्याम जी को श्रीकृष्ण ने वरदान में अपना नाम श्याम दिया था...

अमेठी में स्थित शक्तिपीठ कालिकन धाम की महिमा अपार है। यह धरती च्यवन मुनि की तपोभूमि कही जाती है। मंदिर में अन्य छोटे-छोटे देवालय भी स्थापित हैं। यहां पर एक प्राचीन अमृत कुंड भी है। मान्यता है कि अमृत कुंड में स्नान से...

शिव के हाथों में त्रिशूल, तीनों गुणों सत्व, रजस और तमस का प्रतिनिधित्व करता है। शिव तत्त्व इन तीनों गुणों से परे है। डमरू ‘नाद’ का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार ढोल की ध्वनि आकाश तत्त्व का प्रतीक है। सिर से बहती हुई गंगा, मानव चेतना में संचित विविध ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है...

क्या कभी सोचा है कि इतने मनोवैज्ञानिक, डाक्टर्स इतने इलाज कराने के बाद भी क्यों इनसान को ठीक नहीं कर पा रहे हैं? बीमारी दिन प्रतिदिन दिन बढ़ती जा रही है। इनसान पैसा लगाता है समय देता है, लेकिन बीमारी बिलकुल ठीक होने के बजाय और खराब होती जाती है। आज ये कहानी आपको उस सच्चाई से रू-ब-रू कराएगी, जो आजकल लोगों को समझनी बहुत जरूरी है कि बीमारी की असल जड़ क्या है?

भावना अंत:करण की एक वृत्ति है। संकल्प, चिंतन, मनन आदि इसी के नाम हैं। भावना तीन प्रकार की होती है सात्विक, राजसी और तामसी। आत्मा का कल्याण करने वाली जो ईश्वर विषयक भावना है वह सात्विकी है। सांसारिक विषय भोगों की राजसी एवं अज्ञान से भरी हुई हिंसात्मक भावना तामसी है। संसार के बंधन छुड़ाने वाली होने के कारण सात्विकी भावना के अनुसार इच्छा, इच्छा के अनुसार कर्म, कर्म के अनुसार संस्कार, संस्कारों के अनुसार ही मनष्य के स्वभाव बनते हैं। कर्मों के अनुसार जीवन बनता है। भा

यह सांसारिक जीवन सत्य नहीं है। सत्य तो परमात्मा है, हमारे अंदर बैठी हुई साक्षात ईश्वर स्वरूप आत्मा है, वास्तविक उन्नति तो आत्मिक उन्नति है। इसी उन्नति की ओर हमारी प्रवृत्ति बढ़े, इसी में हमारा सुख-दु:ख हो। यही हमारा लक्ष्य रहा है। अपने हास के इतिहास में भी भारत ने अपनी संस्कृति, अपने धर्म, अपने ऊंचे आदर्शों को प्रथम स्थान दिया है। मनुष्य अच्छी तरह जानता है कि असत्य अच्छा

इस रुद्ध प्रवाह को गतिशील एवं निर्मल बनाने के लिए मार्ग भी उनके दिल में रूपाभित हुआ। भारतवासियों की अज्ञानता को देखकर उनका मन व्याकुल हो उठा। उनके गुरु श्रीराम कृष्णदेव ने कहा, कि खाली पेट धर्म नहीं होता। इस बात की सच्चाई को उन्होंने अब महसूस किया था। इस सबका प्रतिकार कैसे हो?

यजुर्वेद मंत्र 31/1 का यही भाव है कि मनुष्य और पशु-पक्षी आदि के शरीर में ईश्वर विराजमान है। अत: जितने भी मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग आदि के मुख, नेत्र, बाहु, जंघाएं, पैर और उदर (पेट) हैं, वह सभी निराकार परमेश्वर के हैं, परमेश्वर के दिए हुए हैं...

* नारियल का तेल हल्का सा गर्म करके दिन में दो-तीन बार बिवाइयों पर लगाने से पूरी राहत मिलती है।