आस्था

सद्गुरु वही देता है जो तुम्हारे पास है ही, सदा शाश्वत से है, सनातन से है, कुछ नया नहीं देता। सद्गुरु तुमसे वही छीन लेता है जो तुम्हारे पास है ही नहीं। नींद छीन लेता है, जगा देता है, अहंकार छीन लेता है, अहंकार झूठा है। सद्गुरु सत्य, श्रद्धा, प्रेम बांटता है, झोली खुशियों से भर देता है। सद्गुरु तुम्हें मुक्ति देना चाहता है, स्वतंत्रता देना चाहता है, तुम्हारे सारे बंधन तोडऩा चाहता है। ऐसा गीत देना चाहता है जिसे तुम गुनगुना सको।

आकाश को व्योम या व्याप्ति वर्णित किया जाता है, जिसका मतलब है जो सर्वव्यापी और सब में समाया हुआ है। आकाश से परे क्या है? आकाश से परे के बारे में सोचना अकल्पनीय है। सब कुछ आकाश में निहित है, सभी चार तत्व आकाश में ही हैं। सबसे स्थूल है पृथ्वी और फिर जल, अग्नि, वायु और आकाश। वायु अग्नि से अधिक सूक्ष्म है। आकाश सूक्ष्मतम है...

पहली बात है परलोक के संबंध में अति चिंतन ने भारत को अधार्मिक होने में सहायता दी, धार्मिक होने में जरा भी नहीं। सोचा शायद हमने यही था कि परलोक का यह भय लोगों को धार्मिक बना देगा। सोचा शायद हमने यही था कि परलोक की चिंता लोगों को अधार्मिक नहीं होने देगी। लेकिन हुआ उलटा, हुआ यह कि परलोक इतना दूर मालूम पड़ा कि वह हमारा कोई कंसर्न ही नहीं है, हमारा उससे कोई संबंध, नाता नहीं है। हमारा नाता है इस जीवन से। और इस जीवन को कैसे जीया जाए, इस जीवन की कला क्या है, वह सिखाने वाला हमें कोई भी न था। धर्म हमें सिखाता था,

शरीर और प्राण मिलकर जीवन बनता है। इन दोनों में से एक भी विलय हो जाए, तो जीवन का अंत ही समझना चाहिए। गाड़ी के दो पहिए ही मिलकर संतुलन बनाते और उसे गति देते हैं। इनमें से एक को भी अस्त-व्यस्त नहीं होना चाहिए। अन्यथा प्राण को भूत-प्रेत की तरह अदृश्य रूप से आकाश में, लोक-लोकांतरों में परिभ्रमण करना पड़ेगा। शरीर की कोई अंत्येष्टि न करेगा, तो वह स्वयं ही सड़ गल जाएगा। आत्मा को उसी के साथ गुंथा रहना पड़ता है। इसका प्रतिफल यह होता है कि आत्मा अपने आपको शरीर ही समझने लगती है और इसकी आवश्यकताओं से

साधारण भद्रता सूचक शिष्टाचार का ही प्रदर्शन किया, बल्कि कई लोगों के मुंह पर अवज्ञा चिन्हित विरक्ति के चिन्ह भी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे। इसी बीच श्री रामकृष्ण समाधि में मग्र हो गए। उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी, इससे उपासना गृह में गड़बड़ी और कोलाहल होते देख संचालकों ने गैस की बत्तियां बुझा दीं। नरेंद्र काफी मुसीबत उठाकर मंदिर के पिछले दरवाजे से श्री रामकृष्ण को बाहर निकाल लाए और उन्हें दक्षिणेश्वर भेज दिया। नरेंद्र को श्री रामकृष्ण के प्रति ब्रह्मों के इस प्रकार के आचरण को देखकर गहरा धक्का लगा और यह जानकर कि सिर्फ उन्हीं की वजह से श्री रामकृष्ण को अपमानित होना पड़ा, क्षुब्ध और व्यथित नरेंद्र फिर कभी ब्रह्म समाज नहीं गए। नरेंद्र

जब ब्रेन को सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, तो दिमाग के सैल्स मरने लगते हैं। ऐसे में शरीर की गतिविधियां प्रभावित होने लगती हैं। जिसे इंट्राक्रानियल हेमरेज या सेरेब्रल हेमरेज कहा जाता है। ऐसे में अगर ...

मौसम में बदलाव के साथ हमारे खान-पान का पैटर्न भी बदल जाता है। कई लोग तो सर्दियों के दिनों में बहुत कम मात्रा में पानी पीते हैं। असल में, सर्दियों में प्यास कम लगती है, इसलिए लोगों का पानी पीना कम हो जाता है। तो क्या सर्दियों में कम पानी पीने से कोई तकलीफ नहीं होती है? जबकि, गर्मियों में कम पानी पीने से हमें डिहाइड्रेशन, लो एनर्जी और थकान जैसी कई तरह की शारीरिक समस्याएं परेशान करती हैं...

विश्व भर में प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां चिंतपूर्णी से श्रद्धालु अब घर बैठे प्रसाद व मां चिंतपूर्णी का स्वरूप मंगवा सकते हैं। चिंतपूर्णी मंदिर ट्रस्ट द्वारा यह नई सुविधा श्रद्धालुओं के लिए शुरू की गई है। इस नई सेवा का शुभारंभ उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने स्थानीय विश्राम गृह में किया। इस अवसर पर चिंतपूर्णी

करवा चौथ का पर्व भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मुख्य रूप से मनाया जाता है। करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। करवा चौथ स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है। यों तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी और चंद्रमा का व्रत किया जाता है, परंतु इनमें करवा चौथ का सर्वाधिक महत्त्व है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए यह व्रत करती हैं। वामन पुराण में करवा चौथ व्रत का वर्णन आता है...