आस्था

प्राचीन काल से ही हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यदि हम कहें कि हिमाचल देवी-देवताओं का निवास स्थान है तो बिलकुल भी गलत नहीं होगा। इसलिए ऐसी पावन धरती पर जन्म लेना और यहां जीने का अवसर मिलना सौभाग्य की बात है। ऐसा ही हिमाचल में एक मंदिर है, बाबा गरीब

देव दीपावली दिवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन देवता धरती पर आकर पवित्र गंगा नदी के किनारे दीप जलाते हैं। इस दिन शिव और विष्णु की पूजा की जाती है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। पुराणों

इस वर्ष यह मेला श्रीरेणुकाजी तीर्थाटन पर 24 से 30 नवंबर तक परंपरागत एवं बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मध्य हिमालय की पहाडि़यों के आंचल में सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र का पहला पड़ाव है श्रीरेणुकाजी… मां-पुत्र के पावन मिलन का श्रीरेणुकाजी मेला हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है, जो

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कही जाती है। इस दिन महादेवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसलिए इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहते हैं। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो यह ‘महाकार्तिकी’ होती है, भरणी नक्षत्र होने पर विशेष फल देती है और रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका

विनियोग : ॐ अस्य श्री अर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुऋर्षिः अनुष्टुप छन्दः श्रीमहालक्ष्मीर्देवता श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः । ॐनमश्चण्डिकायै (मार्कण्डेय उवाच ) ॐजयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।। 1।। जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि। जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते ।। 2।। ॐचंडिका देवी को नमस्कार है। मार्कण्डेय जी कहते

श्री गुरु नानक देवजी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता श्री कालू मेहता तथा माता तृप्ता के घर में हुआ था। नामकरण के दिन पंडित हरदयाल ने उनका नाम नानक रखा,तो पिता ने इस पर आपत्ति उठाई। क्योंकि यह नाम हिंदू तथा मुसलमान दोनों में सम्मिलित है। इस पर पंडितजी ने

अगर वह नित्यकर्म के लिए यहां आया था तो सारे कपड़े उतारने की क्या आवश्यकता थी? यह उसकी समझ में नहीं आ रहा था। आखिर नरबहादुर को सारे कपड़े उतारने की क्या जरूरत पड़ गई थी? नरबहादुर की लाश उठाकर लाई गई। घर में हाहाकार मच गया। सारा गांव इस घटना पर स्तब्ध था। नरबहादुर

क्रोध के कारण को देखने के बजाय, अपने शरीर और मन पर पड़ने वाले प्रभाव को देखें और फिर अपने आप को विश्राम देते रहें, स्वयं को देखें। यह दुनिया इतनी त्रुटिहीन नहीं हो सकती। इसलिए अपनी दृष्टि को व्यापक बनाएं। आप हर किसी को वैसा नहीं बना सकते जैसा आप उन्हें चाहते हैं… यदि

स्वार्थ बड़ा प्यारा शब्द है, लेकिन गलत हाथों में पड़ गया है। स्वार्थ का अर्थ होता है आत्मार्थ। अपना सुख, स्व का अर्थ। तो मैं तो स्वार्थ शब्द में कोई बुराई नहीं देखता। मैं तो बिलकुल पक्ष में हूं। मैं तो कहता हूं, धर्म का अर्थ ही स्वार्थ है। क्योंकि धर्म का अर्थ स्वभाव है