आस्था

शरीर में जब यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, तो जोड़ों में दर्द और गठिया रोग की समस्या बढ़ जाती है। हमारे शरीर में प्यूरिन के टूटने से यूरिक एसिड बनता है। ब्लड के जरिए किडनी में पहुंच कर यह यूरिन के जरिए बाहर निकल जाता है, लेकिन कई बार खान-पान की अनदेखी या

देवोत्थान एकादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को ही देवोत्थान एकादशी अथवा देवउठान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान

-गतांक से आगे… गायन्तं रम्यसंगीतं कुत्रचिद् बालकैः सह। स्तुत्वा शक्रः स्तवेन्द्रेण प्रणनाम हरिं भिया॥ 16 ॥ पुरा दत्तेन गुरुणा रणे वृत्रासुरेण च। कृष्णेन दत्तं कृपया ब्रह्मणे च तपस्यते॥ 17 ॥ एकादशाक्षरो मन्त्रः कवचं सर्वलक्षणम्। दत्तमेतत् कुमाराय पुष्करे ब्रह्मणा पुरा॥ 18 ॥ कुमारोऽङगिरसे दत्तो गुरवेऽङगिरसा मुने। इदमिन्द्रकृतं स्तोत्रं नित्यं भक्तया च यः पठेत्॥ 19 ॥ इह

गोपाष्टमी ब्रज में संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम ‘गोविंद’ पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इंद्र अहंकार रहित होकर भगवान की शरण में आए। कामधेनु ने

अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ल नवमी को कहते हैं। अक्षय नवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारंभ माना जाता है। अक्षय नवमी को ही विष्णु भगवान ने कुष्मांडक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्मांड की बेल हुई। इसी कारण कुष्मांड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गंध, पुष्प और

जयंती माता मंदिर में हर साल पंचभीष्म मेले लगते हैं। जो बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के कारण माता के मंदिर में शायद पहले जैसी रोनक देखने को न मिले। क्योंकि कोरोना ने हर त्योहार और उत्सव पर असर डाला है। इस बार ये मेले 25 नवंबर से शुरू

इस बार यह मेला 22 नवंबर से शुरू होकर 30 नवंबर को समाप्त होगा। मेले का रंग राजस्थान में देखते ही बनता है। पुष्कर मेला थार मरुस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। पुष्कर झील भारतवर्ष के पवित्रतम स्थानों में से एक है। प्राचीन काल से लोग यहां प्रतिवर्ष कार्तिक मास में

अमरीका के सैनियागो चिडि़याघर में एक बार एक बंदर दंपति ने एक बच्चे को जन्म दिया। माता ने खूब स्नेह और प्यार से बच्चे का पालन-पोषण किया। बच्चा अभी 20 महीने का ही हुआ था कि माता ने एक नए बच्चे को जन्म दिया। यद्यपि पहला बच्चा मां का दूध पीना छोड़ चुका था, तथापि

ताबूत आ जाने के बाद राजकुमारी का शरीर सावधानी व सम्मान के साथ उठाकर उसमें रख दिया गया। अब ऐसा लगने लगा जैसे कोई राजकुमारी शीशे के बक्से में सो रही हो। बौने जंगल से सुंदर-सुंदर फूल चुन लाए और उन्हें राजकुमारी के शरीर पर रख दिया। पशु-पक्षी भी आकर बौनों के साथ रोने और