आस्था

स्वामी रामस्वरूप  क्या आज डेढ़-दो हजार वर्षों में वेद विरोधी मनगढं़त पूजा-पाठ और गीता रामायण आदि के वेद विरोधी मनगढ़ंत अर्थ करने वाले संत आज मोक्ष का उपदेश करें और दो-अढ़ाई वर्ष पहले से क्या कोई मोक्ष पद प्राप्त किए हुए नहीं था। जबकि उस समय आज के वेद विरोधी पंथ नहीं थे… गतांक से

*  रात को सोते समय सात काली मिर्च और उतने ही बताशे चबाकर सो जाएं। बताशे न मिलें तो काली मिर्च व मिसरी मुंह में रखकर धीरे-धीरे चूसते रहने से बैठा गला खुल  जाता है। * सोते समय एक ग्राम मुलहठी की छोटी सी गांठ मुख में रखकर कुछ देर चबाते रहें, फिर मुंह में

कान साफ करते वक्त अगर कुछ महत्त्वपूर्ण सावधानी नहीं बरती गई, तो इससे शिशु के कान में इन्फेक्शन हो सकता है या उसके कान के अंदर की त्वचा पर खरोंच भी लग सकती है…शिशु का शरीर बहुत नाजुक होता है इसलिए उसका ध्यान भी बहुत ही सावधानी के साथ रखना चाहिए। शिशु के शरीर की

यह विज्ञान अत्यंत शुद्ध, मल रहित तथा शोकलोमादि सभी दोषों से शून्य केवल एक सत्स्वरूप, वासुदेव परमेश्वर है, उससे पृथक कुछ नहीं । सभभ्दाव एव भवतो मयोक्तो ज्ञानं तथा सत्यमसत्यमयत। एत्ततु यत्संव्यवहारभूतं तत्रापि चोक्तं भुवनाश्रित ते।। यज्ञः पशंर्वह्निरशेषऋत्दिक्सोमः सुराः स्वर्गमयश्च कामः। इत्यादिकर्माश्रितमागदृष्टं भूरादिभोगाश्च फलानि तेषाम।। यच्चंतददुवनगतं मया तबदोक्तं सवैत्र ब्रजति हि तत्र कर्मवश्यः। ज्ञात्वैवध्रुवमचलं सदकरूपं

मूंगफली के दाने हमारी सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद होते हैं। मूंगफली में भरपूर मात्रा में न्यूट्रीशन और आयरन मौजूद होते हैं, जो आपके दिल को स्वस्थ रखने का काम करते हैं…मूंगफली खाना लगभग सभी लोगों को पसंद होता है, लोग टाइमपास के रूप में मूंगफली का सेवन करते हैं। सर्दियों में लोग मूंगफली

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव आप कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति परमानंद से भरा हुआ हो, तो वह अधिक लचीला, नर्म हो जाता है, ज्यादा मुक्त रहता है, व्यक्तित्व के बोझ से दबा हुआ नहीं रहता। ये परमानंद वास्तव में क्या है? सद्गुरु, क्या आप सच्चे परमानंद को स्पष्ट करेंगे? सद्गुरु-मैं आप को ये कैसे समझाऊं?

मन को मना लिया, आत्मा को उठा लिया तो समझना चाहिए ईश्वर की प्रार्थना सफल हो गई और उसका अनुग्रह उपलब्ध हो गया। गिरे हुओं को उठाना, पिछड़े हुओं को आगे बढ़ाना, भूले को राह बताना और जो अशांत हो रहा है, उसे शांतिदायक स्थान पर पहुंचा देना, यह वस्तुतः ईश्वर की सेवा ही है।

हमारे ऋषि-मुनि, भागः 14  विश्वामित्र ने तपस्या की। वशिष्ठ जी उनसे प्रसन्न थे, ब्रह्माजी के कहने पर विश्वामित्र को केवल ब्रह्मर्षि ही नहीं कहा, बल्कि गले लगा लिया। उनको सप्तर्षियों में भी स्थान दिला दिया। वनों में जब राक्षसों ने विश्वामित्र के धर्मकार्यों, यज्ञ-अनुष्ठानों में विघ्न डालना शुरू किया, तो श्रीराम को ले आए। राजा

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… जब स्वामीजी ने बताया कि समुद्र यात्रा के दिन विरुद्ध शास्त्र का कोई संसंगत निषेध नहीं है, मानों आग में घी पड़ गया और चिंगारी भड़क उठी। स्वामी जी ने समझाने की बड़ी कोशिश की लेकिन वह किसी बात पर तैयार नहीं थे। वहां की स्थिति को देखकर स्वामी जी