आस्था

-गतांक से आगे… गृध्र-रूपा शिवा-रूपा चक्रिणी चक्र-रूप-धृव्। लिंगाभिधायिनी लिंग-प्रिया लिंग-निवासिनी।। 121।। लिंगस्था लिंगनी लिंग-रूपिणी लिंग-सुंदरी। लिंग-गीतिमहा-प्रीता भग-गीतिर्महा-सुखा।। 122।। लिंग-नाम-सदानंदा भग-नाम सदा-रतिः। लिंग-माला-वंहृठ-भूषा भग-माला-विभूषणा।। 123।। भग-लिंगामृत-प्रीता भग-लिंगामृतात्मिका। भग-लिंगार्चन-प्रीता भग-लिंग-स्वरूपिणी।। 124।। भग-लिंग-स्वरूपा च भग-लिंग-सुखावहा। स्वयंभू-कुसुम-प्रीता स्वयंभू-कुसुमार्चिता।। 125।। स्वयंभू-पुष्प-प्राणा स्वयंभू-कुसुमोत्थिता। स्वयंभू-कुसुम-स्नाता स्वयंभू-पुष्प-तर्पिता।। 126।। स्वयंभू-पुष्प-घटिता स्वयंभू-पुष्प-धारिणी। स्वयंभू-पुष्प-तिलका स्वयंभू-पुष्प-चर्चिता।। 127।। स्वयंभू-पुष्प-निरता स्वयंभू-कुसुम-ग्रहा। स्वयंभू-पुष्प-यज्ञांगा स्वयंभू-कुसुमात्मिका।। 128।। स्वयंभू-पुष्प-निचिता स्वयंभू-कुसुम-प्रिया। स्वयंभू-कुसुमादान-लालसोन्मत्त-मानसा।। 129।। स्वयंभू-कुसुमानंद-लहरी-स्निग्ध

श्री गुरु नानक देवजी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता श्री कालू मेहता तथा माता तृप्ता के घर में हुआ था। नामकरण के दिन पंडित हरदयाल ने उनका नाम नानक रखा,तो पिता ने इस पर आपत्ति उठाई। क्योंकि यह नाम हिंदू तथा मुसलमान दोनों में सम्मिलित है। इस पर पंडितजी ने

देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु जागते हैं। जिसके बाद वह अपने आराध्य देव भगवान शिव की भक्ति में लीन हो जाते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी  के दिन जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु की एक हजार कमलों से पूजा करता है। उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल में श्रीनगर में बैकुंठ

कांगड़ा के साथ लगती पहाड़ी पर स्थित जयंती माता का मंदिर काफी प्राचीन है। जयंती माता मंदिर में हर वर्ष पंचभीष्म मेले लगते हैं। ये मेले हर साल कार्तिक मास की एकादशी से शुरू होते हैं। इस दौरान तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… बहुत अनुरोध करने पर भी स्वामी जी ने उनसे मित्रता के स्मृति चिन्ह के रूप में एक छोटी सी चीज लेकर शेष सबको अस्वीकार कर दिया। दीवान बहादुर ने स्वामी जी को छोटी सी गठरी में छोटा सा एक बंडल रख देने के लिए चेष्टा की, किंतु सफल न हो

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव क्या यह संभव है कि हम नींद में भी जागरूक और होशपूर्ण रहें? शून्य एवं सुषुप्ति की बात करते हुए सद्गुरु समझा रहे हैं कि ऐसी अवस्था का अनुभव लेने के लिए क्या करना पड़ता है? आप जब सोते हैं तब बस सोईए, कुछ और करने की कोशिश मत कीजिए। एक सुंदर

10 नवंबर रविवार, कार्तिक, शुक्लपक्ष, त्रयोदशी, पंचक समाप्त 11 नवंबर सोमवार, कार्तिक, शुक्लपक्ष, चतुर्दशी 12 नवंबर मंगलवार, कार्तिक, शुक्लपक्ष, पूर्णिमा, गुरु नानक जयंती 13 नवंबर बुधवार, कार्तिक, कृष्णपक्ष, प्रथमा 14 नवंबर बृहस्पतिवार,कार्तिक, कृष्णपक्ष, द्वितीया 15 नवंबर शुक्रवार, कार्तिक, कृष्णपक्ष, तृतीया, गणेश चतुर्थी 16 नवंबर शनिवार, मार्गशीर्ष, कृष्णपक्ष, चतुर्थी, संक्रांति

अनमोल सीख सोयेन एक अत्यंत प्रतिष्ठित जेन गुरु थे। उनके कुछ शिष्य गर्मी की दोपहरी में सो जाया करते थे। सोयेन उनसे कुछ नहीं कहते, मगर स्वयं सोयेन को एक दिन में नींद लेते किसी ने नहीं देखा था। इसके पीछे उनके गुरु की एक अनमोल सीख थी। सोयेन जब बारह वर्ष के थे, तेंदई

बाबा हरदेव उदाहरणतः एक व्यक्ति जब कहता है कि वह ईश्वर पर विश्वास करता है, तो यह बात जोर लगा कर कहता है कि वह विश्वास करता है। वह जानता है कि उतना ही ताकतवर अविश्वास इसके भीतर बैठा हुआ है जितना वह विश्वास पर ताकत लगा रहा है। अविश्वास न हो तो विश्वास करने