प्रतिबिम्ब

अतिथि संपादक, डा. सुशील कुमार फुल्ल, मो.-9418080088 हिमाचल रचित साहित्य -2 विमर्श के बिंदु साहित्य सृजन की पृष्ठभूमि में हिमाचल ब्रिटिश काल में शिमला ने पैदा किया साहित्य रस्किन बांड के संदर्भों में कसौली ने लिखा लेखक गृहों में रचा गया साहित्य हिमाचल की यादों में रचे-बसे लेखक-साहित्यकार हिमाचल पहुंचे लेखक यात्री अतीत के पन्नों

डा. सुशील कुमार फुल्ल, मो.-9418080088 साहित्य की निगाह और पनाह में परिवेश की व्याख्या सदा हुई, फिर भी लेखन की उर्वरता को किसी भूखंड तक सीमित नहीं किया जा सकता। पर्वतीय राज्य हिमाचल की लेखन परंपराओं ने ऐसे संदर्भ पुष्ट किए हैं, जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी, यशपाल, निर्मल वर्मा या रस्किन बांड सरीखे साहित्यकारों ने

हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी द्वारा प्रकाशित छमाही पहाड़ी पत्रिका ‘हिम भारती’ का ताजा अंक ‘जुलाई-दिसंबर 2021’ मिला जो शानदार सामग्री के साथ तैयार हुआ है। पत्रिका की मेहनती एवं सफल संपादक डा. श्यामा ठाकुर के संपादन में हर बार की तरह नई एवं महत्त्वपूर्ण सामग्री से सुसज्जित पत्रिका के आरंभ में ही ‘पीछे री

सुदर्शन वशिष्ठ मो.-9418085595 हिमाचल प्रदेश की संस्कृति पर हिंदी में सर्वाधिक लिखने वाले पहले लेखक महापंडित राहुल सांकृत्यायन हैं। यायावर राहुलजी ने हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों सहित विभिन्न भागों में भ्रमण किया। कुल्लू में चंद्रकांत, मंडी में चंद्रमणि जैसे लोग उनका स्मरण करते रहे हैं। उनकी ख़ासियत यह थी कि वे लोगों के घरों

अतिथि संपादक : चंद्ररेखा ढडवाल हिमाचल की हिंदी कविता के परिप्रेक्ष्य में-21 साहित्य के प्रतिबिंब में कविता के हिमाचली संदर्भ कितने उजले, कितने उत्तेजित और कितने उद्दीप्त हैं, इसी के अवलोकन में विमर्श खड़ा करतीं अतिथि संपादक चंद्ररेखा ढडवाल ने लगातार 21 हफ्तों से ‘हिमाचल की हिंदी कविता’ के परिदृश्य को शोध की धारा में

कविता एक सांस्कृतिक व सामाजिक प्रक्रिया है। इस अर्थ में कि कवि जाने-अनजाने, अपने हृदय में संचित, स्थिति, स्थान और समय की क्रिया-प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त भाव-संवेदनाओं के साथ-साथ जीवन मूल्य भी प्रकट कर रहा होता है। और इस अर्थ में भी कि प्रतिभा व परंपरा के बोध से परिष्कृत भावों को अपनी सोच के धरातल

डा. हेमराज कौशिक मो.-9418010646 कविता एक सांस्कृतिक व सामाजिक प्रक्रिया है। इस अर्थ में कि कवि जाने-अनजाने, अपने हृदय में संचित, स्थिति, स्थान और समय की क्रिया-प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त भाव-संवेदनाओं के साथ-साथ जीवन मूल्य भी प्रकट कर रहा होता है। और इस अर्थ में भी कि प्रतिभा व परंपरा के बोध से परिष्कृत भावों को

कविता एक सांस्कृतिक व सामाजिक प्रक्रिया है। इस अर्थ में कि कवि जाने-अनजाने, अपने हृदय में संचित, स्थिति, स्थान और समय की क्रिया-प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त भाव-संवेदनाओं के साथ-साथ जीवन मूल्य भी प्रकट कर रहा होता है। और इस अर्थ में भी कि प्रतिभा व परंपरा के बोध से परिष्कृत भावों को अपनी सोच के धरातल

कविता एक सांस्कृतिक व सामाजिक प्रक्रिया है। इस अर्थ में कि कवि जाने-अनजाने, अपने हृदय में संचित, स्थिति, स्थान और समय की क्रिया-प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त भाव-संवेदनाओं के साथ-साथ जीवन मूल्य भी प्रकट कर रहा होता है। और इस अर्थ में भी कि प्रतिभा व परंपरा के बोध से परिष्कृत भावों को अपनी सोच के धरातल