प्रतिबिम्ब

अतिथि संपादक:  डा. गौतम शर्मा व्यथित विमर्श के बिंदु हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -34 -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा -साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक -हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप -हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे -हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता -हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व -सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार -हिमाचली इतिहास से

राजेंद्र राजन मो.-8219158269 चुटीली और लच्छेदार भाषा। खिलेदड़ापन। अंदाज़े बयां कुछ ऐसा कि पाठक अगर फिल्मों या फिल्मी हस्तियों के बेहद दिलचस्प किस्सों-कहानियों को एक बार पढ़ना शुरू कर दे, खुद को अंत तक रोक न पाए। ये परिचय है लेखक व पत्रकार राजकुमार केसवानी का जिन्होंने 1984 में भोपाल में यूनियन कार्बाइड के उस

डा. रवींद्र कुमार ठाकुर, मो.-9418638100 हिमाचल प्रदेश जैसे प्राकृतिक सौंदर्य के धनी राज्य की अलौकिक छटाएं किसी के भी मन-मष्तिष्क को स्वर्ग सी अनुभूति दिला सकती हैं। यही अनुभूति किसी भी साधारण व्यक्तित्व को प्रकृति के आंचल में खो जाने और झूमने को मजबूर कर देती है। मनुष्य चाहे सांसारिक जीवन के झंझावातों में कितना

पुस्तक समीक्षा डा. नलिनी विभा नाज़ली का एक और बाल कविता संग्रह ‘निश्छल बचपन’ प्रकाशित हुआ है। 88 पृष्ठों के इस संग्रह में 68 कविताएं संकलित हैं। अविचल प्रकाशन बिजनौर से प्रकाशित इस कविता संग्रह का मूल्य 250 रुपए है। सहज, सरल, निश्छल भावों को सहज-सरल भाषा में अभिव्यक्ति सरल-सरस छंदों (लय) की बानगी, सरस

अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित विमर्श के बिंदु हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -33 -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा -साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक -हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप -हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे -हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता -हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व -सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार -हिमाचली इतिहास

डा. नलिनी विभा ‘नाज़ली’ का बाल कविता संग्रह ‘अनमोल सच’ बच्चों को लुभाने की पूरी कोशिश करता नजर आता है। 96 पृष्ठों में संकलित 69 कविताएं जहां आकार में काफी छोटी हैं, वहीं प्रभाव में दीर्घ लगती हैं। अमृत प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित इस बाल कविता संग्रह की कीमत 350 रुपए है। डा. नलिनी एक

आशा शैली, मो.-9456717150 लोककथा के इतिहास को खंगालने लगें तो हम देखते हैं कि लोककथा की परंपरा धरती के हर कोने में रही है, यह निर्विवाद सत्य है। लेखन की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही कहानी कहने-सुनने की उत्सुकता ने ही इस कला को जन्म दिया है। लोककथा का स्वरूप आमतौर पर लोक हितकारी

शेर सिंह मो.-8447037777 -गतांक से आगे… भारतीय पुरातत्त्व विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी छेरिंग दोरजे की पुरातत्त्व विषयक तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। लेकिन ये पुस्तकें अंग्रेजी भाषा में ही हैं। इसी प्रकार, पेशे से सेवानिवृत्त इंजीनियर रामनाथ साहनी की तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये भी अंग्रेजी भाषा में ही हैं। आईइएस सेवा

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी 32वीं किस्त… शिवा पंचकरण मो.-8894973122 भारत में लोक परंपराओं को जितना महत्त्व दिया जाता है, उतना शायद ही किसी और देश में दिया जाता हो। ‘कुछ