प्रतिबिम्ब

डा. मनोरमा शर्मा,  मो.-9816534512 मानव को आपस में एक-दूसरे से संपर्क करने तथा अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए सबसे प्रथम संभवतः भाव-भंगिमाओं अथवा संकेतों का प्रयोग शुरू हुआ होगा। बहुत बाद में  लिपि का आविष्कार हुआ होगा। भारतीय संस्कृति से जुड़े धर्म ग्रंथों तथा वेदों का कंठस्थ रूप में मौखिक परंपरा द्वारा आज से

साहित्यिक विमर्श राजेंद्र राजन मो.-8219158269 ‘पहल’ का 125वां अंक अपने प्रकाशन की 47 साल की यात्रा तय करने के बाद अंतिम अंक के रूप में पाठकों के हाथों में आया है। पत्रिका के संपादक ज्ञानरंजन इस अंक में अपने लंबे संपादकीय में लिखते है ‘हर चीज़ की एक आयु होती है, जबकि हम अपनी सांसों

कभी ऊपर ले जातीं कभी नीचे धकेल देतीं घिसे हुए अरमानों की तरह हर रोज कदमों की भीड़ में परिचितों-अपरिचितों की तरह मुलाकात करती हैं टूटते या फूटते पैमानों की तरह कभी-कभी खुरदरी हो जाती हैं थके हुए पांवों की तरह कराहती हैं, पुकारती हैं हथेलियों पर जलते दीप की तरह हर बार इंतजार में

किताब के संदर्भ में लेखक साहित्य में अपनी प्रतीति के साथ बद्री सिंह भाटिया ने, जीवन की कहावत को कर्म की शक्ति से ऐसे जोड़ा कि लम्हे लिखते रहे जिंदगी। वह न थके और न हारे, लेकिन अपनी ही किसी कहानी की तरह अमिट छाप छोड़ कर अलविदा कह गए। सूचना एवं जनसंपर्क की दवात

डेंजर जोन : मेरी रचनात्मकता मेरे द्वारा लिखित उपन्यास ‘डेंजर ज़ोन’ को हि. प्र. कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी, शिमला द्वारा 2015 के लिए कहानी, नाटक व उपन्यास विधा में पुरस्कार की घोषणा हुई है। किसी कृति को पुरस्कार की घोषणा होने से रचनाकार को प्रतीत होता है कि उसकी कृति का संज्ञान लिया गया

हिमाचल प्रदेश बारह जिलों और छोटे-छोटे जनपदों, घाटियों में बसा प्रदेश है। लगभग हर घाटी की अपनी एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा है। कमोबेश कुछ परंपराओं के निर्वहन में आस-पास के समाजों और कई बार आयात परंपराओं का समावेश भी देखने सुनने को मिलता है। इनमें वैवाहिक परंपराएं कुछ तो यथातथ्य पारंपरिक रूप से चल रही

साहित्य की निगाह में आजादी के सरोकार साहित्य की निगाह उसके रचयिता के कैमरे के पिक्सलों के अनुसार होती है। आजादी ने समाज को खुली हवा में विचरण और संविधान ने उसे एक बड़ा वितान दिया। समाज ने उसे आत्मसात किया और विभिन्न विकास योजनाओं का क्रियान्वयन आरंभ। समाज को उसकी अपेक्षा से कितना मिल

विमर्श के  बिंदु अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -29 -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा -साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक -हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप -हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे -हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता -हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व -सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार -हिमाचली इतिहास

प्रख्यात कवि राजेंद्र कृष्ण ने अपनी ‘अम्मा’ की स्मृतियों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए अपने काव्य संग्रह ‘अम्मा बोली’ में शब्दों की पावन माला अर्पित की है। इस काव्य संग्रह में कई कविताएं संकलित हैं जो अनुभवों का खजाना लगती हैं। कविताओं के माध्यम से कवि ने मानव जीवन से जुड़े अनेक प्रश्नों का