प्रतिबिम्ब

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस नई शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी दसवीं किस्त… मो.- 9418130860 विमर्श के  बिंदु अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -10 -लोक साहित्य की हिमाचली

जयंती विशेष उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ उपन्यासकार, निबंधकार, लेखक व कहानीकार थे। अश्क जी ने आदर्शोन्मुख, कल्पनाप्रधान अथवा कोरी रोमानी रचनाएं की। उनका जन्म पंजाब प्रांत के जालंधर नगर में 14 दिसंबर 1910 को एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अश्क जी छह भाइयों में दूसरे थे। उनके पिता पंडित माधोराम स्टेशन मास्टर थे। जालंधर से

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस नई शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी नौवीं किस्त… डा. प्रिया शर्मा मो.-9891755469 लोक संस्कृति परंपरा से प्राप्त होती है। मनुष्य समाज में रहकर ही संस्कृति को सीखता है और संप्रेषित करता

डा. सुशील कुमार फुल्ल मो.-7018816326 लोकसाहित्य लोक संस्कृति एवं लोक रंग किसी भी देश-प्रदेश की धड़कनों के परिचायक होते हैं। लोक मानस सैकड़ों वर्षों के अनुभवों, आचार-व्यवहार की अंतरंग सम्पृक्ति, काल के निकष पर प्रतीति से निर्मित एवं संचालित होता है। लोक कथा हो, लोक गीत हों, लोक गाथाएं हों, कहावतें एवं लोकोक्तियां हों, या

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस नई शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी सातवीं किस्त… डा. हेमराज कौशिक मो.-9418010646 लोकसाहित्य सदैव समाज से संपृक्त रहा है। भारतीय समाज में लोक संस्कृति का दर्पण लोकसाहित्य में निहित है। भारतीय

मो.- 9418130860 विमर्श के बिंदु  अतिथि संपादक:  डा. गौतम शर्मा व्यथित हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -6 -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा -साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक -हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप -हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे -हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता -हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व -सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार -हिमाचली

‘चींटियां शोर नहीं करतीं’ विजय विशाल का सद्यः प्रकाशित काव्य संग्रह है। यह सच है कि चींटियां शोर नहीं करतीं, पर यह अधूरा सच है। पूरा सच यह है कि अनेक ऐसे रचनाकार भी हैं जो बेहद खामोशी से रचनारत रहते हैं। वे भी शोर नहीं करते। विजय विशाल ऐसे ही रचनाकार हैं जो शहरी

डा. गंगा राम राजी मो.-9418001224 साहित्य का माध्यम भाषा और भाषा संप्रेषण का माध्यम है जिसके द्वारा साहित्य की दिशा और दशा निर्धारित करते हुए साहित्यकार पाठकों तक पहुंचता है। आज देश सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संक्रमणों में भारी बदलाव से गुजर रहा है। हमारा प्रदेश भी इस बदलाव से अछूता नहीं रहा है। इसलिए

समाज की दशा और दिशा निर्धारित करने में साहित्य की उपादेयता निर्विवाद है, बशर्ते कि लेखन सार्थक एवं शिक्षाप्रद संदेश देने को उद्यत हो। संदर्भनीय लेखन के लिए सृजन का विषय तथा वैचारिक-बिंदु सशक्त होना अत्यंत आवश्यक है और इस कसौटी पर यह सद्यप्रकाशित पुस्तक ‘रामराज्य’ खरी उतरती है।  राम की दिव्यता, अलौकिकता, चरित्र-संपन्नता तथा