प्रतिबिम्ब

मुरारी शर्मा कहानी के बहाने वक्त पर चोट करते हैं और इसीलिए बार-बार कोई छोटा-सा पात्र नायक बन जाता है। ‘ढोल की थाप’ कहानी संग्रह की शक्ति यही है कि लेखकीय तिजोरी में आम आदमी भी चारित्रिक तौर पर अमीर नजर आता है। कहानियों में संवाद, आंचलिकता और ठेठ पहाड़ी माहौल से उपजा सीधा और

आचार्य ओमप्रकाश ‘राही’ मो.-8278797150 साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों को प्रोत्साहन एवं बढ़ावा देने में सरकारी, अर्द्ध सरकारी एवं गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। सरकारी संस्थाओं के पास जहां सर्वकारीय संबल होता है, वहीं गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं के पास होता है मनोबल, जिसके बल पर वे अपने

सरोज परमार, मो.-9418380065 अंधेरे और मुश्किल समय में भयानक समाचारों के मध्य लिखा गया साहित्य मनुष्यता के प्रति प्रेम को अभिव्यक्त करता है। साहित्य विसंगतियों को खरी-खोटी कहने में नहीं चूकता। विवेक, नैतिकता और औचित्य के झांकते झरनों को साहित्य लबालब भरने में सशक्त होता है। जब-जब मनुष्यता खतरे में होती है, तब जिस साहित्य

पुस्तक समीक्षा कल्पना से परे है कि मात्र 16 पेज की पत्रिका ‘वसुंधरा पोस्ट’ आपको तब तक बांधकर रखेगी जब तक आप इसका आखिरी पन्ना नहीं पलट लेते। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। इतिहास से लेकर समसामयिक विषयों पर महज चार लेखकों ने इतनी संपूर्णता प्रदान कर दी मानो यह 30-40 पेज की पत्रिका

मुरारी शर्मा मो.-9418025190 साहित्य में सामाजिक चेतना और भाषायी सौंदर्य का समावेश अनिवार्य है। हमारे आसपास का परिवेश जिसे हम लोक भी कहते हैं, भाषायी सरोकार जनता के बीच हमारी चेतना को प्रभावित करता है। अब यह आप पर निर्भर करता है कि जीवन के यथार्थ को अपनी रचना में किस रूप में और कितना

हिमाचली लेखन साहित्य के कितना करीब हिमाचल-12 अतिथि संपादक : डा. हेमराज कौशिक हिमाचल साहित्य के कितना करीब है, इस विषय की पड़ताल हमने अपनी इस नई साहित्यिक सीरीज में की है। साहित्य से हिमाचल की नजदीकियां इस सीरीज में देखी जा सकती हैं। पेश है इस विषय पर सीरीज की 12वीं किस्त… विमर्श के बिंदु

अमरदेव आंगिरस, मो.-9418165573 साठ के दशक में ‘सरिता’ पत्रिका के एक स्तंभ ‘यह किस देश-प्रदेश की भाषा है’ के अंतर्गत गद्य-पद्य की कुछ पंक्तियां प्रकाशित होती थीं जो आम पाठक को ही नहीं, साहित्यिकों के लिए भी दुरूह, जनजीवन से दूर, उलझी हुई और पांडित्यपूर्ण होती थीं। उदाहरण के लिए एक सुप्रसिद्ध कवयित्री की पंक्तियां एक

पवन चौहान, मो.-9418582242 बाल साहित्य वह साहित्य है जो बच्चों में संस्कारों, उम्मीदों, सपनों, जज्बातों, जीवन मूल्यों की बुनियाद को पक्का करता है। बाल साहित्य का जन्म तब हुआ जब कोई बच्चा इस दुनिया में आया। आते ही उसने अपने तोतलेपन में कुछ कहा होगा। फिर कुछ बोलना, समझना सीखा होगा। उसके कई प्रश्न रहे होंगे

अनंत आलोक, मो.- 9418740772 ‘साहित्यसंगीतकला विहीनः साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः।’ (साहित्य, संगीत और कला से हीन पुरुष साक्षात् पशु ही है जिसके पूंछ और सींग नहीं हैं।) भर्तृहरि के इसी श्लोक से मैं अपनी बात का श्रीगणेश करना चाहता हूं। यद्यपि  इस बात को झुठलाया  नहीं जा सकता कि पशुओं में भी संगीत के प्रति रुचि-अरुचि देखी