संपादकीय

भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने ‘एक देश, एक चुनाव’ पर अपनी रपट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। यह रपट व्यापक विमर्श का महादस्तावेज है, लिहाजा यह संदेह करना कि देश में एक ही पार्टी काम करेगी या 2029 के बाद देश में चुनाव ही नहीं होंगे, फिजूल और पूर्वाग्रह है। करीब 7 माह के दौरान 65 बैठकें की गईं, 11 रपटों का अध्ययन किया गया और

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की व्याख्या ही बदलने की कोशिश की है। उन्होंने कुछ सवाल उठाए हैं, जो भावोत्तेजक हैं। उनकी मंशा हिंदू-मुसलमान से आगे बढक़र आर्थिक संसाधनों और स्थितियों पर केंद्रित करने की है, ताकि राजनीति की दिशा और दशा बदली जा सके। हालांकि ऐसी संभावनाएं नगण्य हैं। संयुक्त राष्ट्र नागरिकता को व्यक्तिपरक सुरक्षा का बुनियादी तत्त्व मानता है और प्रताडि़त, शोषित, मानवाधिकार कुचलन के शिकार लोगों को ‘शरणार्थी’ के तौ

सियासत के अद्भुत प्रतीक और शिनाख्त के पद्चिन्हों में राजनीतिक सपूत चुनने की कवायद में आगामी लोकसभा चुनाव की दृष्टि सामने आ रही है। पांचवीं बार हमीरपुर लोकसभा के अपने अभेद्य दुर्ग पर अनुराग ठाकुर को भाजपा, लोकसभा में मुकाम दिखा रही है। शिमला से सुरेश कश्यप पर भरोसा जताने के बावजूद मंडी का जौहर दिखाने में भाजपा की सियासी किफायत और कांगड़ा की

पार्टी आलाकमान का ऐसा एकाधिकार भी किसी लोकतंत्र का हिस्सा होता है, हमें याद नहीं है, लेकिन देश की सबसे बड़ी और सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा और एकाधिकार से ही संचालित होती है। प्रधानमंत्री की अचानक इच्छा हुई, तो हरियाणा के उस मुख्यमंत्री को, कुछ ही घंटों में, बदल दिया गया, जिसे जनादेश हासिल था। यह जनादेश अक्तूबर, 2024 के अंत तक का था। 2019 का विधानसभा चुनाव जिसके नेतृत्व में लड़ा गया और 41 विधायक जीत कर आए। यही नहीं, जो शख्स प्रधानमंत्री

कुछ तो शुक्रिया अदा शराब की बोतल का करें, जिसकी बदौलत प्रदेश का चूल्हा जलेगा। कोशिश हर बोतल से पूछ रही है कि इस बार कमाई के छबील पर कितना नशा बहेगा। ठेकेदारों की खिदमत में बोलियां लगाता आबकारी विभाग अपने सिर की जुएं निकाल देगा और फिर यूनिट दर यूनिट, इस महफिल में कमाने का जरिया, हमारी ही दरिद्रता के सामने अमीर हो जाएगा। पिछले दस महीनों में जिन लोगों ने नौ

नागरिकता संशोधन बिल को 2016 में संसद में पेश किया गया। दिसंबर, 2019 में लोकसभा और राज्यसभा में पारित किया गया। जाहिर है कि कानून बनाने की पटकथा को अंतिम रूप दे दिया गया, लेकिन 4 साल 3 माह की लंबी अवधि के बाद कानून की अधिसूचना तब जारी की गई, जब आम चुनाव की घोषणा कुछ दिन बाद होने ही वाली थी। इस संदर्भ में अधिसूचना के समय पर कठोर सवाल किए जाने स्वाभाविक हैं। अधिनियम के नियम, उसकी पात्रता और शर्तें आदि तय करने में इतना लंबा वक्त गुजार दिया गया, यह वाकई आ

सियासत यूं तो महत्त्वाकांक्षा का दाना है, लेकिन चुगने वालों की दावत कई बार पिंजरों में फंसा देती है। अपने-अपने मुकाम के संघर्ष में हिमाचल कांग्रेस के छह विधायक यूं तो एक प्रभावशाली धड़ा है, लेकिन सत्ता के संकट में उनके पक्ष में अनिश्चितता है। राज्यसभा सीट गंवा बैठी कांग्रेस भी फिलहाल दूध से धुली न•ार नहीं आ रही, लेकिन अदालत की पहली दरख्वास्त पर बागी विधायकों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रास्ता आसान नहीं किया। माननीय अदालत ने बागी विधायकों की फ

हिमाचल के सांस्कृतिक परिदृश्य की निरंतरता में मंडी शिवरात्रि समारोह का ही नजराना पेश हो, तो पर्यटन की मंडी में आर्थिकी का नया दौर शुरू हो सकता है। हम इन सांस्कृतिक समारोहों की रौनक में मंचीय उपलब्धियां देख रहे हैं, तो सियासत की पगडिय़ों

राजस्थान के एक सुदूर रेगिस्तानी गांव की बेटी महिला सशक्तीकरण का प्रतीक बन गई है। उसने अविवाहित महिलाओं के साथ सरकारी स्तर पर किए जा रहे भेदभाव के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और आखिरकार उसमें जीत हासिल करके महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने में सफलता हासिल कर ली है। यह कहानी है राजस्थान के बालोतरा जिले के गूगड़ी गांव की निवासी 26 वर्षीय मधु चारण की। एक गरीब मजदूर पिता की बेटी मधु के संघर्ष की बदौलत राज्य की हजारों अविवाहित महिलाओं को आंगनबाड़ी केन्द्रों में कार्यकर्ता और सहायिका