संपादकीय

प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार की शुरुआत की, तो पूरी राजनीति अपशब्दों और निजी आरोपों में विभाजित हो गई। प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान, बालाकोट, सबूत या सपूत, दमदार चौकीदार बनाम दागदार, नए भारत के संस्कार बनाम भ्रष्ट वंशवाद, गरीब आदि पर ही फोकस रखा। दूसरी तरफ कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को ‘ड्रामा किंग’, ढोंगी, नौटंकी आदि करार

दिल्ली से हिमाचल तक आगामी लोकसभा चुनाव के नतीजे जो भी रहें, लेकिन ये कुछ नेताआें को सेवानिवृत्त जरूर करेंगे। प्रचार का नकछेदन हिमाचल में भी नेताआें का हुलिया बदल रहा है। इसे हम बदलते संदर्भों में देख सकते हैं या सियासत के विद्रूप होते पन्नों की सजा के तौर पर भी अपना  सकते हैं।

जयराम सरकार को यह साधुवाद मिलना चाहिए कि प्रदेश की अर्जुन अवार्डी धावक सुमन रावत को खेल विभाग का निदेशक बनाकर सम्मानित किया जा रहा है। भले ही यह कुर्सी तीन दिन की मोहलत में ही उनको सेवानिवृत्त करेगी, लेकिन एक प्रतिष्ठित खिलाड़ी के लिए यहां तक पहुंचना किसी पदक से कम नहीं। सुमन रावत

27 मार्च, 2019 की तारीख भी इतिहास में दर्ज हो गई। भारत अंतरिक्ष की महाशक्ति वाला चौथा देश बन गया। हमारे वैज्ञानिकों ने ‘मिशन शक्ति’ का सफल परीक्षण किया है। लक्ष्य पर हमारी ही पुरानी, अनुपयोगी सेटेलाइट थी, जो लंबे अंतराल से पृथ्वी की परिक्रमा कर रही थी। मात्र 1-2 मीटर व्यास वाली यह सेटेलाइट

गरीबी से जुड़ा इतिहास 1971 से करीब एक शताब्दी पुराना है। तब भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश था और गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था। कांग्रेस पार्टी की भी स्थापना नहीं हुई थी। हम प्राचीन और मूल कांग्रेस की बात कर रहे हैं। तब दादाभाई नौरोजी ने 1867-68 के दौरान ‘गरीबी हटाओ’ सोच की शुरुआत की

शिक्षा में छुट्टियों का गणित जिस तरह से गिना जाता है, उसकी एक नई तस्वीर फिर हाजिर है। हर बार दायरे घूमते हैं और लौट कर उसी धुरी पर चक्कर काटने की वजह समझाई जाती है। अब फिर एक फरमान की कोशिश में शिक्षा विभाग यह चर्चा कर रहा है कि ग्रीष्म व शीतकालीन स्कूलों

1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था। उसी मुद्दे पर कांग्रेस को शानदार जनादेश प्राप्त हुआ था। उसके बाद परिस्थितियां और समीकरण बिलकुल बदल चुके हैं। करीब 48 साल बाद उनके पौत्र एवं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक ‘मास्टर’ योजना का एलान किया है-न्यूनतम आय गारंटी। उन्होंने देश

मंडी के दादा-पोते की कांगे्रस में वापसी से हिमाचल की राजनीति में पंडित सुखराम का इतिहास एक और मोड़ ले रहा है। चौथी बार पाला बदल कर ‘राजनीति की मंडी’ में उनकी कीमत अदा करती कांगे्रस को क्या उपलब्ध होगा, यह अभी देखना बाकी है। सुखराम की लाठी पकड़ कर पार्टी ने यह तो साबित

करीब 92 वर्षीय लालकृष्ण आडवाणी समेत भाजपा के सभी बुजुर्गों को इस बार लोकसभा उम्मीदवार नहीं बनाया गया, लेकिन खबरें और चर्चाएं आडवाणी के ही इर्द-गिर्द घूम रही हैं। जिस तरह घर और दफ्तर में एक उम्र के बाद भूमिकाएं बदल जाती हैं, वैसा राजनीति में भी अपरिहार्य है। यदि ऐसा नहीं होगा, तो किसी