संपादकीय

बरसाती पर्यटन के नाजुक लम्हों को समझे बिना, श्रावण महीने के भीगने का अर्थ नहीं समझा जा सकता। प्रदेश के धार्मिक स्थलों में श्रद्धा के नाम पर भागती अनियंत्रित भीड़ को हमें चुनौती की तरह देखना होगा। बेशक बंदोबस्त दुरुस्त करते हुए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन व्यवस्थागत प्रबंधन के कई मजमून खड़े हैं।

देश के 15वें राष्ट्रपति के लिए मतदान भी हो चुका है। अब हम 20 जुलाई का इंतजार करेंगे कि सत्तारूढ़ पक्ष के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद कितने वोट से जीतेंगे। चूंकि इस चुनाव में सांसद और विधायक ही मतदान करते हैं, लिहाजा जीत-हार लगभग तय होती है। विभिन्न दलों और उनके प्रतिनिधियों के वोट मूल्य के

कश्मीर के आतंकवाद में चीन का भी दखल है। चीन ने भी अब हाथ डालना शुरू कर दिया है। यह बदकिस्मती की बात है। चीन के आतंकी दखल की स्थापना नई है, लेकिन यह किसी का आरोप नहीं है, जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का सार्वजनिक कथन है। केंद्र्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात

विकास की मौजूदा दौड़ के बीच निर्माण रोकने की आवश्यकता को हम राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल के हालिया फैसले में देख सकते हैं। हरिद्वार से उन्नाव के बीच गंगा में कचरा फेंकने पर पचास हजार जुर्माने के अलावा नदी के आसपास सौ मीटर के दायरे में ‘नो डिवेलपमेंट जोन’ की घोषणा, एक बड़ा संदेश है। विकास

ठियोग में पुलिस के खिलाफ हल्ला बता रहा है कि इस आक्रोश के भीतर कितनी आंच है। मसला सुलगा भी इसलिए क्योंकि पुलिस का किरदार अपने ही शक में फंस गया। ठियोग में गुस्से की बाढ़ में फंसी पुलिस कितनी कसूरवार है, लेकिन जांच की वर्तमान शैली को जनता ने ठुकरा दिया है। हिमाचल के

कभी अखलाक, कभी जुनैद और कभी कोई और… चेहरे और नाम भिन्न हो सकते हैं, लेकिन हरकतें एक जैसी ही हैं। इन गुंडों ने गोमाता और हिंदुत्व का स्वयंभू ठेका ले रखा है। न कोई पहचान, न कोई प्रतिष्ठा, मवालियों के कुछ गुट हैं, जो देश भर में एक वर्ग विशेष के लोगों को निशाना

आजादी के हिमाचली अंदाज को जिस सुबह का इंतजार था, उसे बाबा कांशीराम ने एक मंजिल व मुकाम की तरह अपने व्यक्तित्व में ओढ़ लिया और आज हम स्वतंत्र भारत की संतान बनने का गौरव पा रहे हैं। आजादी के ऐसे दर्शन को स्वीकार करते हुए बेशक समारोह के रूप में मनाते वर्षों बीत गए,

एक ओर कश्मीर में अमरनाथ हमले के तनाव, क्षोभ, गुस्से और शोक से निजात नहीं मिली है। दुनिया के देश शोक संवेदनाएं जता रहे हैं और भारत के साथ खड़े होने का आश्वासन भी दे रहे हैं। दूसरा पहलू हमारे ही देश के भीतर का है। कांग्रेस के पूर्व सांसद एवं प्रवक्ता संदीप दीक्षित, आम

सामाजिक अंधेरों के बीच रहना या मुकाबले में किसी मोमबत्ती का संघर्ष समझना होगा। अपराध के चरित्र में जब सामाजिक ताना बाना टूट रहा हो या हमारी बेडि़यां खुद-ब-खुद कैद बन रही हों, तो ऐसे हालात की सिसकियों  में कोटखाई की कालिख में शामिल होने की वजह हमारे भीतर तक रहेगी। यहां सामाजिक संघर्ष में