संपादकीय

रिकार्ड के लिए देव ध्वनि का लिम्का बुक में दर्ज होना समूचे प्रदेश का गौरव बढ़ाता है, लेकिन इसके साथ बजंतरी समाज को नजदीक से समझने की टीस भी जुड़ती है। देव परंपरा का एक पहलू बजंतरियों के साथ रहता है और इनकी निगरानी में संगीत की धुनों का आकाश चलता है, लेकिन अपने नजराने

राजनीतिक अखाड़े में दूसरी राजधानी का भौगोलिक या राजनीतिक अर्थ जो भी निकाला जाए, लेकिन शिमला को बेहतर राजधानी बनाने का औचित्य स्वीकार करना होगा। हिमाचल की पूर्णता का एक विशाल चेहरा अगर शिमला है, तो इसकी विराटता का स्वरूप भी तय होना चाहिए। क्या शिमला का मौजूदा दौर अपनी गरिमा का एहसास है या

यह कई सौ फीसदी हकीकत है कि भाजपा को हिंदुओं की लामबंदी चाहिए और सपा-कांग्रेस, बसपा को मुसलमानों का फिक्र है। नतीजतन उत्तर प्रदेश में चौथे चरण के मतदान से पूर्व हिंदू, हिंदू और मुसलमान के जुमले सुनाई देने लगे हैं। इन नारों में कौन सा विकास छिपा है? मुलायम सिंह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से

भुट्टिको के उत्पादों को राष्ट्रीय हैंडलूम टैग का मिलना प्रदेश की हस्ती में भी इजाफे जैसा है। ये सहकारिता आंदोलन की हिमाचली बनावट के आदर्श हैं, जो राष्ट्रीय पहचान में शरीक हो रहे हैं। जाहिर तौर पर अब कुल्लू की शाल को प्रदर्शन का बड़ा नेटवर्क व बाजार मिलेगा और इस तरह पारंपरिक कला को

बसपा के संस्थापक नेता कांशीराम प्रेस, मीडिया को ‘मनुवादी’ मानते थे। उनकी दलील थी कि बसपा की सोच और बहसों को मीडिया तोड़-मरोड़ कर छापता है। उस दौर में बसपा प्रेस के किसी भी विमर्श में हिस्सा नहीं लेती थी और सोशल मीडिया तो तब था ही नहीं। अब बसपा में मायावती का दौर है।

हालांकि समझा यह जाता है कि भाषण की हंडिया पर ही गरीबों के राशन की पुडि़या चढ़ती है, लेकिन हिमाचल परिवहन निगम ने राजीव थाली परोस कर कुछ प्रशंसा बटोर ली। परिवहन क्षेत्र को नित नया नाम देने में माहिर मंत्री जीएस बाली ने, राजीव थाली में जो प्रयोग परोसा उसका असर स्वाभाविक है। खाने

क्या देश के प्रधानमंत्री को भी ‘बाहरी’ माना जा सकता है? यदि वह ‘बाहरी’ हैं, तो सांसद कैसे हैं? यदि सांसद के बाद प्रधानमंत्री भी हैं, तो ‘बाहरी’ कैसे हैं? ये गांधी परिवार की बौनी बुद्धि से उपजे सवाल हैं। प्रियंका गांधी औसत शिक्षा वाली महिला हैं, लिहाजा सोच भी उतनी ही सीमित और अधकचरी

बेशक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी 122 वोट हासिल कर विश्वास मत जीतने में कामयाब रहे, बेशक उनकी ‘कुर्सी’ फिलहाल सलामत रहेगी, बेशक पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम के पक्ष में मात्र 11 वोट ही पड़े, लेकिन विधानसभा के भीतर जो हंगामा हुआ, उसे स्पष्ट शब्दों में गुंडागर्दी, जंगलीपन, कमीजफाड़ और कुर्सीतोड़ राजनीति ही कहेंगे। यह लोकतंत्र पर

यकीनन मंत्रिमंडलीय बैठक साधुवाद की खोज में  बाबा रामदेव की जमीन तक पहुंच गई है और हर तरह के प्रयासों के बीच साधुपुल एक बार फिर पतंजलि से जुड़ने के काबिल हो गया। यह फैसला भाजपा को हैरान करेगा और सियासत की बेडि़यों से बाहर निकलकर सरकार की आदत बदल गया है। कहना न होगा