विचार

भीगते मौसम में भागती जिंदगी का रिश्ता अगर हिमाचल की हकीकत है, तो बारिश के बीच सलामी लेते मंत्रियों की दिलेरी का चित्रण क्या साबित करता है। अपनी छवि के परिमार्जन में हिमाचली नेताओं का सोशल मीडिया में इस तरह का जिक्र फौजी पृष्ठभूमि के राज्य की गरिमा के विरुद्ध ही माना जाएगा। राष्ट्रीय पर्व

संसद का बजट सत्र 30 जनवरी से शुरू हो रहा है। पहले दिन आर्थिक समीक्षा को पेश करने के बाद पहली फरवरी को बजट प्रस्ताव सार्वजनिक किए जाएंगे। 2017-18 का बजट कैसा होगा, फोकस क्या रहेगा, लोकलुभावन घोषणाएं होंगी या नहीं, देश का वित्तीय घाटा कितना होगा, इन तमाम पहलुओं का सच बजट पेश करने

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर) अति निर्धन, अति दीन हैं, फटी हुई है जेब, रोटी त्यागी, खा रहे, काजू-किशमिश, सेब। हाथी टिकटें बांटता, मांगे पांच करोड़, लेनी है तो बात कर, क्यों पड़ रही मरोड़। सर्दी से नस-नस जमी, गर्मी सा एहसास, टर्र-टर्र करने लगे मेंढक, कुछ तो है खास। गर्मी नेता को चढ़ी, हाड़

(अर्पित ठाकुर, बिझड़ी, हमीरपुर) गणतंत्र दिवस की परेड में दुनिया को अपनी बढ़ती ताकत का परिचय देने के पश्चात अमरीकी विदेश नीति से जुड़ी एक पत्रिका ने भारत के वैश्विक समुदाय में बढ़ते प्रभाव की तसदीक की है। ‘दि अमेरिकन इंटरेस्ट’ नाम की इस पत्रिका ने उल्लेख किया है कि अर्थव्यवस्था में भारत की एक

‘कुमारसंभव’ में कालिदास ने अपने आराध्य शिव को ही हास्य का आलंबन बनाया है। ब्रह्मचारी बटु शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या करने वाली पार्वती का मजाक उड़ाते हुए कहता है-हे पार्वती! जरा सोचो तो कि गजराज पर बैठने योग्य तुम जब भोले बाबा के साथ बूढ़े बैल की सवारी करोगी तो

(देव गुलेरिया, योल कैंप, धर्मशाला) कानपुर में हुए स्कूल बस हादसे का दृश्य इतना दर्दनाक कि कोई भी इनसान उसे देखकर दहल जाए। उन स्कूली नन्हे नौनिहालों के बिखरे स्कूली बैग-किताबें सड़क पर हमारी स्कूली व्यवस्था को दर्शा रहे थे। रोते-बिलखते वे मां-बाप अपने उन नन्हे बच्चों को कभी फिर न देख सकेंगे। सरकार द्वारा

रघुवीर सहाय  की गणना हिंदी साहित्य के उन कवियों में की जाती है, जिनकी भाषा और शिल्प में पत्रकारिता का प्रभाव होता था और उनकी रचनाओं में आम आदमी की व्यथा झलकती थी। रघुवीर सहाय एक प्रभावशाली कवि होने के साथ – साथ कथाकार, निबंध लेखक और आलोचक थे। वह प्रसिद्ध अनुवादक और पत्रकार भी

विवाह उत्सव में एक नहीं बार-बार इनकी पूजा करनी पड़ती है। कुलज की स्थापना कृषक-श्रमिक परिवारों में विभिन्न रूपों में होती है। कहीं पिंडियों के रूप में तो कहीं देहरी अथवा मढ़ी के रूप में तो कहीं दाड़ू की टहनी के रूप में इनकी उपस्थिति होती है। जिस दिन बारात चढ़ती है, उस दिन दूल्हे

‘तुम्हारे यूं चले जाने से’ तुम्हारे यूं ही चले जाने से न जाने कितनी बातें होंगी न जाने कितने सपने टूटे होंगे उन गरीब, असहाय लोगों के जिनके लिए तुम एक बैंक अधिकारी ही नहीं थे, बल्कि एक मसीहा थे। तुम्हारे यूं ही चले जाने से ये पत्ते-फूल फल व टहनियां भी उदासी लिए चुपचाप