विचार

हाकी में माजरा स्कूली खेल छात्रावास की लड़कियों ने पिछले कई वर्षों से राष्ट्रीय स्कूली खेलों में हिमाचल प्रदेश को पदक तालिका में स्थान दिलाया है। इन लड़कियों को एस्ट्रोटर्फ मिले तो यहां से और भी अच्छे परिणाम आ सकते हैं। माजरा छात्रावास को फीडिंग रख कर अच्छे खिलाडिय़ों को एस्ट्रोटर्फ पर प्रशिक्षण के लिए ऊना में एक और नया छात्रावास जल्द ही हिमाचल को खोलना चाहिए...

कोलकाता की नाक के नीचे शाहजहां ने वहां की महिलाओं के लिए जितना भयंकर नर्क तैयार किया हुआ था, वह सरकारी मशीनरी की प्रत्यक्ष-परोक्ष सहायता के बिना संभव नहीं है। ममता बनर्जी ने संदेशखाली की इन महिलाओं को सबक सिखाने की सोची। उन्होंने संदेशखाली में किसी के भी जाने पर पाबंदी लगा दी। धारा 144 लगा दी।

यह किसान आंदोलन है अथवा किसी जंगी टकराव के दृश्य हैं? हरियाणा-पंजाब की सीमाओं पर, दोनों तरफ, जेसीबी और पोकलेन सरीखी बड़ी मशीनें तैनात की गई हैं। आखिर किसके विध्वंस की रणनीति है यह? टै्रक्टरों को युद्ध के उपकरण के तौर पर मॉडिफाइड किया गया है। पत्थर जमा किए गए हैं। तलवारें चमक रही हैं। बोरियों में रेत-मिट्टी भर कर मोर्चेबंदी की गई है। आखिर किसान किसके खिलाफ जंग छेडऩे को लामबंद हो रहे हैं? सीमाओं पर 14,000 से अधिक किसान या कोई मुखौटाधारी क्यों मौजूद हैं? बातचीत तो किसानों के मु_ी भर नेता करते रहे हैं। जन-शक्ति का ऐसा प्रदर्शन किसके खिलाफ है? जिन टै्रक्टरों को खेतों में होना चाहिए था, ऐसे 1200 से अधिक टै्रक्टर शंभू बॉर्डर पर क्यों हैं? या कलेक्टर

हिमाचल में मर्जी की अदालतें और मनमर्जी के फैसलों में प्रदेश की आबरू पर कब और कौन सोचेगा। एनपीए पर बिगड़े डाक्टरों की मनमर्जी और कहीं बिजली महादेव रोप-वे के खिलाफ मंदिर के प्रबंधक अपनी अदालत लगाए खड़ेे हैं। ये दोनों ही मुद्दे आम आदमी के वजूद को नजरअंदाज करके, सीना ठोंक कर कह रहे कि हमें सिर्फ अपनी चिंता है। डाक्टरों की पेन डाउन स्ट्राइक के मायने उन दावों की पोल खोल रहे हैं, जो सरकार के इश्तिहार में चिकित्सा

भैयाजी मंत्री बन गए थे। उन्हें बधाई देना मेरे लिए लाजमी था, सो उनके निवास पर पहुंचा तो वे प्लेट में गुलाब-जामुन का ढेर लगाए उन्हें गटक रहे थे। मैंने कहा-‘यह क्या, आप अकेले-अकेले ही खा रहे हैं गुलाब-जामुन, मंत्री बनने की मिठाई तो हम भी खाएंगे।’ वे गुलाब-जामुन को गले से नीचे उतारकर बोले-‘अब तो अकेले ही खाना है शर्मा। चुनाव में तुमने कम खाया क्या? अभी तो मैं ढाबे वालों का हिसाब भी चुकता नहीं कर पाया हूं।’ मैं बोला-‘अब चुनाव प्रचार में भैयाजी अपने घर से परांठे-अचार थोड़े ही बांधकर ले जाता। तुम्हें तो पता होगा मैंने कितनी मेहनत की है आपको जितवाने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो प्रोग्राम में युवाओं से अनुरोध किया था कि वे राम जन्म भूमि में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर गीत, भजन, कविता आदि लिखें। प्रधानमंत्री की इस बात पर गौर करते हुए बहुत से युवाओं ने यह काम भी किया। युवाओं का सही मार्गदर्शन किया जाए तो वे देश और समाज के लिए बहुत से नेक काम कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने युवा शक्ति के बारे में कहा था कि, ‘मेरा विश्वास युवा

मैं फिर से दोहराता हूं कि हमारी कामना के फलीभूत होने का सीक्रेट, यानी रहस्य यह है कि हम इच्छा करें, सपने देखें, और ग्रेटेस्ट सीक्रेट यह है कि हम जिस चीज के सपने देख रहे हों, उसे पाने के लिए सार्थक प्रयत्न भी करें, क्योंकि असली काम तो काम ही है। इसके बिना जो कुछ है वो केवल मुंगेरी लाल के हसीन सपने, या यूं कहें कि शेखचिल्ली के सपनों के समान है, जिसका अंत निराशा और हताशा में होने की संभावना सबसे ज्यादा है।

जब से जिंदगी से रुखसत लेने का समय करीब आता जा रहा है, हम एक ही बात बार-बार सोचने लगे हैं, कि क्या हमारी इस घडऩतख्ता जिंदगी और नामुक्कमल जिंदगी की नाकामयाबी के पीछे यह सच्चाई तो नहीं कि हम किसी भी क्षण जिंदगी के किसी भी आयाम में एक समझौतापरस्त टुकडख़ोर न बन सके? जी हां, जीवन में कामयाब होने के यही दो अचूक मंत्र हैं। पहला तो यह कि सबसे अच्छा लड़ाकू वह जो अपने से तगड़े को देख कर समझौता कर उसकी चरणवंदना कर ले, और अपने से कमजोर के सामने एक ऐसे पहाड़ पर खड़े होने का नजारा पेश करे कि जिसके नीचे कोई सीढ़ी भी नहीं। ऐसे पहाड़ पर वह हमेशा अकेला खड़े रहता है, और अपनी कल्पना में एक ऐसी भीड़ को अपना अनुसरण करते देखता है

अंतत: हिमाचल का विधानसभा सदन खामोशी से सुन रहा बेरोजारों की वकालत। सरहद पर खड़ा बेरोजगार और विपक्ष की वकालत का सहारा, उसे हमेशा की तरह फिर किंकर्तव्यविमूढ़ बन रहा। मंगलवार की बहस में नौकरी का सरकारी रुतबा आसमान पर सितारे गिनता रहा। कहीं आउटसोर्स चीख रहा, कहीं साल में एक लाख नौकरी का टोटका बोलता रहा। इस दौरान बच्चों ने रोजगार कार्यालय का चेहरा देखना छोड़ दिया, लेकिन पंजीकृत 742845 बेरोजगारों के लिए सरकार ही ख्वाजा पीर की अरदास है या किसी मंदिर की पूजा में की गई मन्नत। कितने दोराहे-कितने चौराहे हैं पढ़े लिखे बेरोजगारों के लिए, लेकिन नौकरी का शब्द सरकारी शब्दकोष की तरह अपने अर्थ में मुगालते भर रहा है। अब गि