विचार

राष्ट्रीय परिधान से कहीं भिन्न हैं हिमाचल में सत्ता के वादों के रंग और यही दस्तूर सरकार के आईने में उजली छवि के दस्तावेज बन जाते हैं। इन्हीं दस्तावेजों की पालकी सजाए पुन: मंत्रिमंडल की बैठक ने रुकी हुई सरकारी नौकरियों की धडक़न तेज कर दी है। पुलिस भर्ती के माध्यम से 1226 कांस्टेबलों को नियमित वेतन की वर्दी पहनाने के अलावा यह भी सुनिश्चित हो रहा है कि आइंदा तीस प्रतिशत ऐसे पद महिलाओं के बीच आबंटित होंगे। नारी चरित्र में कानून के पहरों का सामाजिक व मनोवैज्ञानिक प्रभाव देखते हुए यह फैसला घर-परिवार में बेटियों के अस्तित्व व स्वाभिमान को ऊंचा कर रहा है। यह स्वाभाविक क्षमता है जिसके तहत हिमाचली बेटियां कल तक पुरुष क्षेत्र के लिए समझे गए दायित्व में अपनी श्रेष्ठता की नई क

जिले के उच्च पदस्थ सेवानिवृत्त व सेवारत अधिकारीगण, कार्मिक तथा सामान्य जन इस गांव के लोगों के साथ मानसिक व भावात्मक रूप से जुडक़र, उनका हौसला बढ़ा रहे हैं। गांव के लोगों को आशा है, प्राकृतिक आपदा से उत्पन्न इन दुश्वारियों से निजात पाने की उनकी उम्मीदें शीघ्र ही विश्वास में बदल जाएंगी। बहरहाल, सभी यही मानकर अपने आपको तसल्ली दे रहे हैं। समय-समय पर प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया लिंडूर गांव की स्थिति के बारे

मैं साहित्यकारों में अभी तक इतना आदरणीय नहीं हुआ हूं कि मुझे किसी जयंती वाले के कार्यक्रम में सादर बुलाया जाए। इसलिए अबके भी मैं उनकी जयंती वाले कार्यक्रम में जोड़ तोड़ का आमंत्रित था। वैसे जोड़ तोड़ वालों के वैसे वैसे काम मजे से हो जाते हैं जैसे आदरणीय से आदरणीय के भी नहीं होते। उस वक्त पता नहीं ये मेरा दुर्भाग्य था या कि जयंती वाले का सौभाग्य कि वे गलती से मेरे साथ वाली खाली कुर्सी पर आ विराजे सबसे पीछे वाली रो में। वैसे जो वे जयंती वाले थे तो कायदे से उन्हें

ऋग्वेद ने हमें समझाया है कि जो ईश्वर की आराधना के साथ-साथ पुरुषार्थ करते हैं, उनके दु:ख और दारिद्रय दूर होते हैं और ऐश्वर्य बढ़ता है। हमारी सभ्यता और संस्कृति ने हमें परोपकार की शिक्षा दी है। एक हिंदी फिल्म का गाना है ‘अपने लिये जिये तो क्या जिये, ऐ दिल तू जी ज़माने के लिये।’ प्राणी जगत में मात्र एक इनसान ही है जो अपनी बुद्धि का प्रयोग कर सकता है। पशु प्रवृत्ति होती है अकेले चरने की। इनसान तो अपनी नेक कमाई से जरूरतमंदों की मदद करता है।

हर घर में शौचालय बनने से खुले में शौच जैसे अभिशाप से मुक्ति हुई है, जिसके चित्र दिखाकर भारत को पिछड़ा दिखाने का प्रयास विदेशी अक्सर किया करते थे। महिलाएं आज सम्मान से जी रही हैं...

जातीय गणना का मुद्दा, राज्यों के चुनाव में, फ्लॉप रहा। हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी का अनुसरण करते हुए जातीय गणना का मुद्दा खूब उछाला गया। यहां तक वायदा किया गया कि 2024 में केंद्र में विपक्ष की सरकार बनी, तो राष्ट्रीय स्तर पर जातीय गणना कराई जाएगी। इस पर आरक्षित जमात के युवाओं ने भी कांग्रेस को समर्थन नहीं दिया। हालांकि विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन में जातीय गणना को ‘तुरुप के पत्ते’ के तौर पर ग्रहण किया गया था, लेकिन बिहार के अलावा किसी अन्य राज्य में जातिगत सर्वे नहीं कराए गए। कांग्रेस ने मप्र, राजस्थान और छत्ती

जिस तीन दिसंबर पर आकर देश का रथ खड़ा था, वहां अब 2024 के सफर का सारा कारवां बदल रहा है। पांच राज्यों के चुनाव में डंके की चोट पर कोई तो चोटिल हुआ। देश को बदलने की राजनीतिक मंशा में कहीं तो कांग्रेस अपने बुनियादी प्रश्रों से घायल और अपाहिज नजर आई। खास तौर पर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई सेंधमारी बताती है कि भाजपा की चुनावी मशीनरी बेहतर नहीं, घातक भी है। अब इसमें शंका करने की वजह घट रही है कि भाजपा का यही अभियान 2024 के चुनावी मैदान में भारी नहीं पड़ेगा। देश के मुद्दे एक तरफ, दाल-आटा एक तरफ, लेकिन भूगोल से गणित तक भाजपा अपने लिए पैरवी का ऐसा मजमून बनाती है, जिसके आगे कांग्रेस गच्चा खा रही है। कम से कम विपक्ष में एक साथ खड़ा होने के सपने तो चूर-चूर हो रहे हैं। यकीनन सियासत बदल गई है, लेकिन कांग्रेस फिर अपनी ही पिच पर यह भूल जाती है कि सामने खिला

इसलिए इस अभियान में सभी वर्गों को सक्षम और जिम्मेदार बनाने की योजना अमल में लाई जा रही है। ‘उड़ता हिमाचल’ बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे इस प्रदेश को बचाने के लिए नशामुक्त ऊना अभियान मॉडल कारगर विकल्प है...

साधो! आजकल आर्यावर्त मुस्तफा ख़ाँ शेफ़्ता के एक शे’र का बड़ा क़ाइल है, ‘हम तालिब-ए-शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम। बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा।’ मौक़े के हिसाब से कपड़े उतारने में अब देश इतना माहिर हो चुका है कि डर लगता है कि क्या पता किस पल विश्व गुरु, उसकी मंडली या भक्तों में से कोई अपनी नंगई दिखाना शुरू कर दे। लेकिन आप भयभीत न हों। नंगई पर उतरने के अर्थों में महज़ शरीर के कपड़े उतारना ही शामिल नहीं। कपड़े तो इनके तन पर एक से एक डिज़ायनर सजे रहते हैं। इसलिए सवाल उठता है कि कौनसे नंग परमेश्वर से बड़े माने जाते हैं। ऐसे में अगर ज़मीर से नंगों के लिए कोई शब्द या कहावत ईजाद हो जाए तो हो सकता है कि तन से नंगे उनके सामने बौने सा