वैचारिक लेख

निश्चल बैठ कर सांसों पर नियंत्रण और साथ में मौन, मानो सोने पर सुहागा है। मौन रहने का अभ्यास हमें अंतर्मन की यात्रा में ले चलता है, हम बाहरी जगत की ओर से ध्यान हटाकर अपने ही भीतर जाने लगते हैं। पूजा, भजन, कीर्तन आदि क्रियाएं अच्छी हैं, पर ये शुरुआती साधन हैं। आध्यात्मिकता में आगे बढऩे के लिए माइंडफुलनेस, गहरी लंबी सांसें और मौन बहुत लाभदायक हैं। अध्यात्म की अगली सीढ़ी है निश्छल प्रेम, हर किसी से प्रेम, बिना कारण, बिना आशा के हर किसी से प्रेम। मानवों से ही नहीं, पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों से भी प्रेम, जीवित लोगों से ही नहीं, जीवन रहित मानी जाने वाली चीजों से भी प्रेम। एक बार जब हम प्रेममय हो गए तो आध्यात्मिकता की गहराइयों में चले जाते हैं...

बूढ़ा हो जाने के बाद आदमी कितनी सफाई से झूठ को सच बना कर बोल लेता है। लगता है इतना बूढ़ा हो गया है। सच ही कह रहा होगा। हो सकता है वास्तव में इसने जीवन में इतनी ही उपलब्धियां हासिल कर ली हों! इसका जीवन एक शाहकार बन कर गुजरा हो। वास्तव में क्यों न इसकी बात मान ही लो कि दुनिया में सबसे अकलमंद गदहा होता है, और सबसे सुखी जीव सुअर है। जो बात एक बूढ़े होते आदमी के लिए सही है, वही बात एक बू

भारत को 2047 तक विकसित देश बनने के लिए अगले 23-24 साल तक विकास दर को 7.7 फीसदी की रफ्तार से बढऩा होगा। इसलिए वर्तमान संदर्भ में यह अनिवार्य हो गया है कि केंद्र सरकार मजदूरों के शोषण पर लगाम लगाकर, आर्थिक और कृषि विकास में तेजी लाकर, आय की असमानताओं को दूर करे...

वर्दी या यूनिफॉर्म एक प्रकार की वह पोशाक है जिसे किसी पाठशाला के विद्यार्थियों या किसी संगठन के सदस्यों, कर्मियों या श्रमिकों द्वारा उस संस्थान या संगठन की गतिविधियों में भाग लेते हुए पहनी जाती है। वर्दी को आम तौर पर सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक संगठनों जैसे पुलिस, आपातकालीन सेवाओं, सुरक्षा गार्डों, कुछ कार्यस्थलों और स्कूलों के विद्यार्थियों, श्रमिकों तथा जेलों में कैदियों द्वारा पहनी जाती है। किसी संस्था के सदस्यों द्वारा उस संस्था

तो हुआ यों कि पिछले हफ्ते मेरे खास बकवास लेखक दोस्त ने मुझे अपनी किताब सादर भेजी। वह भी बुकपोस्ट से नहीं, स्पीडपोस्ट से। जैसे मैं पता नहीं कितना महान पाठक होऊं। यह पता होते हुए भी कि मैं किताब फ्रेंडली बिल्कुल नहीं। पर दोस्त ने दोस्त को किताब भेजी तो मुझे खुशी हुई। वह भी स्पीड पोस्ट से। पूरे सौ रुपए खर्च कर। दोस्त को किताब भेजना एक बात है तो उससे अपनी किताब पढ़वाना दूसरी बात। वैसे दोस्त दोस्तों की

जनवरी 15 से 19 के बीच दुनिया के एक महत्वपूर्ण मंच, वल्र्ड इक्नॉमिक फोरम, का सम्मेलन डावोस (स्विट्जरलैंड) में सम्पन्न हुआ। वर्ष 1971 में अस्तित्व में आया वल्र्ड इक्नॉमिक फोरम, पिछले लगभग 53 साल से वैश्विक आर्थिक संरचना पर चर्चा करने वाली एक महत्वपूर्ण संस्था के नाते उभरा है। व्यापार, भू-राजनीति, सुरक्षा, सहकार, ऊर्जा से लेकर पर्यावरण और प्रकृति समेत अनेकानेक मुद्दों पर इस मंच पर चर्चा होती रही है। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, प्रौद्योगिकी क्षेत्र की बड़ी हस्तियों ने डावोस के इस सम्मेलन में भाग लिया। 60 देशों के शासनाध्य

खालिद शरीफ ने कहा है, ‘ बिछुड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई। इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया।’ 20 जनवरी 2024 की सुबह 5 बजे डा. कैलाश आहलूवालिया साहित्य और रंगमंच की दुनिया को वीरान करके चले गए। हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और बॉम्बे तक उनके देहावसान की खबर से सन्नाटा पसर गया। शोकग्रस्त नामी गिरामी दोस्तों, रंगमंच, फिल्म और लेखकों की हस्तियों को जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था। उत्तरायण काल में उन्होंने नश्वर देह का त्याग कर दिया और हंस अकेला अनंत उड़ान भर गया था। 30 जनवरी 1937 को डा। कैलाश का जन्म कांगड़ा जिले के डुहक गांव में हु

कबीर जिए तो राजशाही में थे। पर शायद उन्होंने पन्द्रहवीं सदी में ही विश्व गुरू के लोकतंत्र का हाल देख लिया होगा। तभी अपने निर्वाण के लिए काशी छोड़ मगहर चले गए थे। आजकल काशी में जीने का पता नहीं। पर चुनाव जीतने के लिए कुछ लोग काशी ज़रूर जाते हैं। दस साल पहले खाँसी वाले एक मफलर भाई झाड़ू लेकर चुनाव लडऩे बनारस पहुँचे थे। लेकिन काशी ने कहा कि उसे सफाई पसन्द नहीं। उसका नारा है- ‘रांड, साँड, सीढ़ी, संन्यासी, इनसे बचे तो पावे काशी।’ इसलिए उसने नमो-नमो जपते हुए विश्व गुरू को भारी बहुमत से चुनाव जिता दिया। उन्होंने तमाम दावों के बावजूद काशी

वहां सार्वजनिक होलिडे ने आत्महत्या कर ली थी। सारा देश हैरान नहीं, परेशान भी था कि आखिर इसकी भरपाई कैसे की जाएगी। पहले ही इसे ढूंढते-ढूंढते तीन अन्य नेताओं के नाम पर राष्ट्रीय अवकाश देना पड़ा था। राष्ट्रीय होलिडे की आत्महत्या ने देश के सार्वजनिक क्षेत्र, तमाम सरकारी कर्मचारियों और सरकारी दफ्तरों के पहली बार कान खोल दिए थे, बल्कि इस खबर से आंखें फटी की फटी रह गईं। कोई मानने को तैयार ही नहीं था कि एक दिन ऐसी भी स्थिति आ सकती है। सरकारी छुट्टी तो बड़े ही नसीबों वाली होती है, इसके बहाने देश का एक पूरा दिन लंबी तान कर सो स