वैचारिक लेख

एक दिन में 35 मिनट की तेज सैर एक आसान और प्रभावशाली शारीरिक क्रिया है। इसके अलावा दौड़, तैराकी और साइकिलिंग भी हमारे शरीर की शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने में काफी असरदार सिद्ध हो सकती हैं। एक जज्बे के साथ हम अपने मुताबिक किसी भी शारीरिक क्रिया का चयन करके और उस चयन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाकर स्वयं को और अपने परिवार को काफी हद तक मधुमेह और मोटापा जनित रोगों से दूर रख सकते हैं। इसके अलावा हम अपने खाने की आदतों में सुधार करके भी जीवन को अधिक ऊर्जावान बना सकते हैं...

आजकल की खबरें कितनी कंजूस हो गई हैं। बात-बात पर लाचार, दरिद्र, लेकिन अवतार होने के लिए एक-दूसरी से लड़ रही हैं। पुरानी खबरों की मूंछें हुआ करती थीं, फिर भी वे लड़ती नहीं थीं। आज मूंछ कटी लड़ती हैं, ताकि दबदबा बना रहे। खबर को उड़ाने वाले अब पैदा हो गए हैं। दरअसल खबर में हवा भरनी पड़ती है और यह काम आजकल आसान हो गया है। शुद्ध हवा तो मिलती नहीं, लेकिन जैसी-तैसी और जहर से भरी प्रचुर मात्रा की हवा भरने वाले आसानी से मिल जाते हैं। कई मीडिया समूह तो इसी ताक में हैं कि कोई खबरों में हवा भर दे। इससे आम के आम और गुठली के दाम की स्थिति पैदा हो रही है। यानी जितनी हवा भरवाकर खबर को छोड़ोगे, उतने ही दाम भी मिलेंगे। मार्किट में सूखी मूली की तरह कई ऐसी भी खबरें मिल जाएंगी, जो देखने में कैसी भी हों, उठते-बैठते डकार मारती हैं। अपने बुद्धिजीवी को कई बार समझाया गया कि खबरों के बा

अमरीका को ऐसे किसी भी संवैधानिक बदलाव से बचना चाहिए जो शक्तियों के इस सुंदर संतुलन को बदले। अमरीकी सिस्टम की कुछ विशेषताओं पर अकसर ‘अलोकतांत्रिक’ होने के रूप में हमला किया जाता है। जैसे कि इलेक्टोरल कॉलेज, सेनेट का सभी राज्यों को समान वोट और फिलिबस्टर नियम। परंतु उन्हें खत्म करने से सरकार की शक्तियां कुछ ही हाथों में समाहित हो जाएंगी। विश्वास बनाए रखो, अमरीका। आपका लोकतंत्र बिल्कुल सही चल रहा है...

हर व्यक्ति, चाहे देश के किसी भी कोने अथवा विदेश में ही क्यों न रह रहा हो, अपने सगे संबंधी के निधन पर स्नान कर, मृतक के प्रति आत्मिक संवेदनाएं व्यक्त करता है। इसमें मूल भावना दिवंगत के प्रति सम्मान प्रकट करना व अपने को उससे अभिन्न मानने का विचार प्रमुख है...

नए साल में अपन ने क्या नया करना है, यह एजेंडा अब पूरी तरह सेट है। कई कई रातें लगाकर पूरे होशो हवास में ठोक बजाकर यह एजेंडा सेट किया है। अब पूरे 365 दिन इसी एजेंडे पर अमल करना है। क्या मजाल है कि इसमें एक भी आइटम आगे पीछे हो जाए। हमारा यह एजेंडा पर्सनल टाइप का एजेंडा है। यह एजेंडा किसी राजनीतिक दल के एजेंडे की तरह नहीं है और न ही यह चुनावी घोषणा पत्र की तरह है कि उस पर अमल करने की कोई जरूरत नहीं होती। पब्लिक भी पहले बड़े ध्यान से एजेंडा सुनती है और फिर दुनिया भर की उलझनो में मशरूफ हो जाती है। पब्लि

अब भारतीय जनता पार्टी ने राजनीति में एक नई रीत चला दी है। ऐसे-ऐसे लोग राजनीति में आगे आ रहे हैं जिनके बारे में जानने के लिए मीडिया वालों को गांवों में जाकर धक्के खाने पड़ रहे हैं। कौन हैं भजन लाल शर्मा? पिता जी क्या करते हैं? गांव में सडक़ भी है या नहीं? ऐसी कितनी जानकारियां जमा करनी पड़ र

मैदाने जंग में दुश्मन की बहादुरी का एहतराम करके शत्रु सैनिकों को रणभूमि में खिराज-ए-अकीदत पेश करने वाले जज्बात भारतीय सेना की महानता को जाहिर करते हैं। पाक सेना से भारतीय सरजमीं को मुक्त कराने में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले ‘नग्गी युद्ध’ के शूरवीरों को सेना नमन करती है...

अब कुत्तों से ही नहीं, गधों से भी सावधान रहना है। यह अच्छी बात है कि लोग कुत्तों से पहले ही सावधान हैं। जहां तक गधों का प्रश्न है, मैं उनसे सावधान रहने के लिए जन अभियान चला रहा हूं, क्योंकि गधों ने राष्ट्र का बहुत नुकसान किया है। लोग गधे को सिर्फ सीधा भोला-भाला जीव समझकर अपना समर्थन देते रहें, इसे मैं उचित नहीं मानता। गधों के मानसिक दिवालियेपन के कारण और उनकी सदैव चरते रहने की वृत्ति ने देश का सर्वनाश कर दिया है, इसलिए मैं इस मौसम में देशवासियों से खुली अपील करता हूं कि गधों से सावधान रहें। गधों के हिमायती सदैव यह तर्क

इसीलिए कहा गया है कि हमारी असली पूजा तब शुरू होती है जब हम पूजा खत्म करके पूजा-स्थल से बाहर आते हैं और लोगों के साथ व्यवहार में पूजा के उन सूत्रों को व्यावहारिक रूप देते हैं, अमलीजामा पहनाते हैं, वरना पूजा स्थलों में की गई पूजा का कोई अर्थ नहीं है। देखना यह होता है कि हम उन लोगों से कैसा व्यवहार करते हैं जिनसे हमें कोई काम न हो। हम उन लोगों से कैसा व्यवहार करते हैं जिनका सामाजिक-आर्थिक स्त