वैचारिक लेख

विकसित भारत/2047 का उद्देश्य आजादी के 100वें वर्ष यानी 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है। यह भारत के इतिहास का वह दौर है जब देश लंबी छलांग लगाने जा रहा है। भारत के लिए यही समय है, सही समय है, युवा शक्ति परिवर्तन की वाहक भी है और परिवर्तन की लाभार्थी भी है। देश की राष्ट्रीय योजनाओं, प्राथमिकताओं और लक्ष्यों के निर्माण में देश के युवाओं को सक्रिय रूप से सम्मिलित करने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप ‘विकसित भारत /2047’ देश के युवाओं को एक मंच प्रदान करेगी। यह दृष्टिकोण आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, पर्यावरणीय स्थिरता और सुशासन सहित विकास के विभिन्न पहलुओं को सम्मिलित करता है। इस कार्यक्रम के शुभारंभ ने एक नई दृष्टि और दिशा दी है।

2012 में, तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने केंद्रीय मंत्रालय को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि सांसदों की बढ़ती संख्या के दृष्टिगत नई इमारत का निर्माण किया जाए...

हमारी अगली विद्वान पीढ़ी को शहरों में अच्छी-अच्छी नौकरियां मिल रही हैं, लेकिन जहरीली हवा में सांस लेने से अच्छा है गांव से जुड़े रहें...

खडख़ड़ जी को आजकल न जाने क्या हो गया है? जब से उनके पोते ने उनकी मिमिक्री की है, उन्हें लगता है कि हर कोई उन्हें चिढ़ाते हुए उनका उत्पीडऩ कर रहा है। उनके दादा होने का बोध ख़तरे में है। उनकी गरिमा तार-तार हो रही है। कोई हँसता भी तो है उन्हें लगता है कि वह खी-खी की आवाज़ केवल उन्हें चिढ़ाने के लिए ही निकाल रहा है। इसलिए उन्होंने आजकल बाज़ार निकलना भी छोड़ दिया है। घर में अगर कोई खाँसता भी है तो उन्हें लगता है

विकसित देश बनने के लिए 2047 तक लगातार करीब 7 से 8 फीसदी की दर से बढऩा होगा। हम उम्मीद करें कि जिस तरह 11 और 12 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अमृतकाल में नई पीढ़ी को विकास के लिए लंबी छलांग लगाने के जो मंत्र सौंपे हैं, उनके मद्देनजर देश के युवा और शासन-प्रशासन समन्वित रूप से दुनिया में सामथ्र्यवान भारत की तस्वीर बनाते हुए आगे बढेंग़े और वर्ष 2047 तक देश विकसित देश के रूप में रेखांकित होता हुआ दिखाई देगा...

विरोधियों को साथ लेकर चलने की कला ने उनको सबसे अलग बना दिया। अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसे नेता के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने विपरीत विचारधारा के लोगों को भी साथ लिया और गठबंधन सरकार बनाई। वह विपक्ष की आलोचना के साथ अपनी आलोचना सुनते थे...

बुद्धिजीवी के स्थायी भ्रम बुद्धि को लेकर ही होते हैं और वह इन्हीं के बीच जिंदगी गुजार देता है। इस बार वह अपनी जिंदगी को सामने रखी हुई दवाई की गोलियों के बीच समझने लगा। पहली बार उसने देखा कि तरह-तरह गोलियां एक-दूसरे पर भारी पड़ रही हैं। सबसे ज्यादा हृदय रोग की दवाई उछल रही थी। तभी उसने सुना, एक गोली कह रही थी, ‘मैं सुबह देखती हूं। मेरे साथ ही मरीज सुबह देखता है।’ दूसरी ने जवाब दिया, ‘नाश्ता और दोपहर का खाना अब मेरे बिना कौन खा सकता है।’ तीसरी आंखें फाड़ कर बोली, ‘मरीज को सुलाने, सपनों और परिवार के झंझट से दूर रखने में इक मैं ही

सांसदों का चुनाव इसीलिए होता है कि संसद में जाकर आमजन की तकलीफों पर चर्चा करें और उन्हें दूर करने के लिए रास्ते बनाएं। इसके विपरीत सांसद फिजूल की बहसबाजी मेें उलझे हैं...

मैंने हिंदी के लिए एक नया मुहावरा गढ़ा है। मुहावरा है- नाक में रुई डल जाना। इसका अर्थ है किसी व्यक्ति का मृत्यु को प्राप्त हो जाना। यह मुहावरा बिल्कुल मौलिक है, और स्वरचित भी। इसका वाक्य में प्रयोग करके भी मैं आपको दिखाना चाहूंगा। यह प्रयोग है- आजकल के कुछ संस्कारविहीन बच्चे इस ताक में