वैचारिक लेख

ऐसा करने से एक तरफ  किसान को पानी का मूल्य अदा करना पड़ेगा तो दूसरी तरफ  किसान को मूल्य अधिक मिलेगा और उसकी भरपाई हो जाएगी। लेकिन तब हम आप शहरी जनता को महंगा अनाज खरीदना पड़ेगा। इसलिए अंततः प्रश्न यह है हम सस्ते अनाज के पीछे भागेंगे अथवा प्रकृति को संरक्षित करते हुए थोड़ा

समाज में बढ़ता नशा पंचायतों की गैर जिम्मेदारी वाली कार्यप्रणाली का नतीजा है। जनता को न्याय मुहैया करवाना केवलमात्र पुलिस का काम नहीं है। पंचायतों को भी पुलिस के समान अधिकार मिले हुए हैं, मगर उनकी पालना कौन करे? पंचायत प्रतिनिधियों में मनोबल की कमी ज्यादा है। नतीजतन गांवों में एकता, भाईचारा, सद्भाव, अपनापन खत्म

जैसे-जैसे प्रो. चौपट नाथ की रिटायरमेंट का समय नज़दीक आ रहा था, उनके माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं। वह अपनी तमाम पारिवारिक चिंताओं से मुक्त होकर, बुज़ुर्गों के शब्दों में कहें तो ‘गंगा नहा चुके थे’। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें भारी-भरकम पेंशन भी मिलने वाली थी। फिर भी उन्हें चिंता सताए

पिछले लगभग एक वर्ष से पूरे विश्व को कोरोना महामारी ने बुरी तरह से घेर रखा है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। भारत में एक करोड़ से भी अधिक लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं और डेढ़ लाख से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। वर्ष 2020 में इस महामारी ने देश के

डा. जयंतीलाल भंडारी विख्यात अर्थशास्त्री इस समय जब सरकार कोविड-19 की चुनौतियों के बीच राजकोषीय घाटे की चिंता न करते हुए विकास की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है, तब कई बातों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घोषित किए गए विभिन्न आर्थिक पैकेजों के क्रियान्वयन पर

मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही नारी ने हर क्षेत्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और समाज को प्रेरणा देती रही हैं। जरूरत इस बात की है कि इन सभी चरित्रों, ऐतिहासिक तथ्यों और असली किस्सों को देश के स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। लड़के और लड़कियां बराबर हैं, यह मानसिकता समाज एवं वर्तमान पीढ़ी

वर्ष 2020 हमें जीवन की वास्तविकता समझा गया। वर्ष 2021 के आगमन के साथ 2020 बीते समय का हिस्सा हो गया। प्रत्येक व्यक्ति इसे अपने जीवनकाल का सबसे कठिन नकारात्मक समय बताता रहा। वर्ष 2020 आने वाले सैकड़ों वर्षो तक हमारी जिंदगी में एक मील का पत्थर साबित होगा। जीवन की आपाधापी में हम सब

मुर्गी ने चैन की नींद सोते हुए सारे सपने बटोरे और पूरी रात खुद की किस्मत पर भरोसा करती रही। दरअसल हम सभी की जिंदगी में सपना कभी अंडा बन कर आता है या कभी मुर्गी बनकर। हम हर सपने को पहले मुर्गी या पहला अंडा मानकर देखते-देखते यह भूल जाते हैं कि हर जगह

न तो कांग्रेस में और न ही कम्युनिस्टों में इतनी शक्ति बची है कि वह नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ खुल कर जनता के बीच जा सकें। इसलिए इन्होंने यह आंदोलन बहुत ही सफाई से भारतीय किसान यूनियन को आगे करके शुरू किया। लेकिन आम आदमी पूछ सकता है कि क्या कांग्रेस को इस