वैचारिक लेख

पहली बात यह समझ लेनी है कि हमें समय का प्रबंधन नहीं करना है, बल्कि उपलब्ध समय के अनुसार अपना प्रबंधन करना है। दूसरी बात यह समझ लेनी चाहिए कि सीमित समय में आप जितने काम कर लेना चाहते हैं, वे कभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं होंगे, इसलिए एक तरह के अधूरेपन को झेलने की, उसके साथ जीने की आदत आपको विकसित करनी ही होगी। तीसरी बात

साधो! चुनावों का शोर है। कलियुग घनघोर है। हो सकता है कि चुनावी मौसम होने के बाद भी आप मुझसे कहें कि हमने रसीदी टिकट तो देखा है, लेकिन चुनावी टिकट कभी नहीं देखा। तो मैं आपको बता दूँ कि बिना रसीद के चुनावी टिकट भी नहीं मिलता। रसीद पैसे की भी हो सकती है और ईमान बेचने की भी। यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि आप किस राजनीतिक दल का चुनावी टिकट किस तरह हासिल करते हैं। एक कहावत है कि राजनीति लुच्चों का खेल है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप लुच्चे होना चाहते हैं या नहीं। जो राजनीतिक दल भूखे-नंगे हो चुके हैं या कर दिए गए हैं, उनके कुछ राजनेताओं को

11 नवंबर 1849 ईस्वी को वजीर राम सिंह पठानिया सिर्फ 24 साल के थे, जब वह अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए लड़ते हुए बलिदान हो गए। उनकी जयंती पर देश उन्हें नमन करता है...

अन्य राज्यों में भी शराब पर उच्च उत्पाद शुल्क लगाया जाता है और इसका उद्देश्य कभी भी बड़ा राजस्व कमाना नहीं होता। बहरहाल यह ठीक नहीं कि केजरीवाल राजनीतिक प्रतिशोध के शिकार हैं...

हमें यह ध्यान रखना होगा कि वर्ष 2047 तक देश को विकसित देश बनाने के लिए सरकार के द्वारा आम आदमी की प्रति व्यक्ति आय और खुशहाली बढ़ाने के लिए जो व्यय किए जाते हैं, वे उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जिस तरह सरकार के द्वारा बुनियादी ढांचे पर भारी निवेश लाभप्रद होता है। उम्मीद है सरकार रणनीतिक रूप से कारगर प्रयासों की राह पर आगे बढ़ेगी..

पहली बार बुद्धिजीवी ने एक ऐसा परिंदा देखा जो वाकई पर नहीं मार रहा था। बुद्धिजीवी यह देख सोच में पड़ गया कि यह अपने पंख होते हुए भी आख्रिर उड़ क्यों नहीं पा रहा है, ‘यह जरूर किसी से टकराया होगा। कहां टकराया होगा। अदालत के दरवाजे या संसद के गुंबद से।’ देखने में परिंदा तंदरुस्त था। तरह-तरह की बोली बोल रहा था। हरकतें कर रहा था, लेकिन अपने पर नहीं खोल पा रहा था। पहली बार बुद्धिजीवी ने इनसान जैसी असमंजस किसी पक्षी में देखी। देश की असमंजस पक्षी पर इस

नशे की लत को पूरी करने के लिए बच्चे अपराध करने से भी नहीं हिचक रहे हैं। नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में आए दिन हो रही चोरी, छिनैती में मुख्य रूप से युवा ही शामिल हो रहे हैं। यही नहीं, रेलवे स्टेशन के आसपास घूमने वाले बच्चे चलती ट्रेन में भी वारदात करने से नहीं चूकते... भारत को युवा देश माना जाता है। जिस ओर

चुनावी बॉण्ड असंवैधानिक करार कर उनसे राजनीतिक दलों को चुनाव फण्डिंग न किए जाने के सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद यह संज्ञान में रहना चाहिए कि कम से कम मान्य चुनावी प्रक्रियाओं के संदर्भ में चुनावी बॉण्ड से मिला धन शुचिता वाला धन न होकर काले धन के समतुल्य ही था। दुखद यह रहा कि जब प्रजातांत्रिक चुनावों में काले धन का वर्चस्व हर बीतते चुनावों के साथ बढ़ता ही जा रहा था, चुनावी बॉण्ड की गुमनामी धनराशि भी उसी रूप में इसमें मददगार भी हो रही थी। जब ये एन चुनावों के पहले जारी होते थे, तब तो खासकर इनसे पाए करोड़ों रुपयों से राजनीतिक दलों को चुनाव लडऩे में आसानी होती थी। लगभग पांच सा

वर्ष 2023 में हुए पंचायत चुनाव के मतदान के दौरान चुनावी हिंसा में 17 लोगों की जान गई। तृणमूल कांग्रेस का दावा था कि चुनावी हिंसा में सबसे ज्यादा उनके कार्यकर्ताओं की हत्या हुई। मरने वालों में 60 फीसदी उनके कार्यकर्ता हैं...