वैचारिक लेख

गाय, गाली और गोली में दो समानताएं हैं। पहला, इन तीनों का आरम्भाक्षर ग है। दूसरा, समय, मौत और ग्राहक की तरह ये न तो किसी का इन्तज़ार करती हैं और न किसी से पूछ कर आती हैं। गाय कहीं भी और कभी भी आपके पेट में सींग घुसा सकती है या आपके खेतों में घुस कर उन्हें उजाड़ सकती है। गाली किसी को भी, कभी भी और कहीं भी दी जा सकती है और गोली पर तो बिल्कुल भरोसा नहीं करना चाहिए।

हमें यह बात भी ध्यान में रखनी है कि चीन की आर्थिक कमजोरी भी भारत के लिए चिंताजनक है। भारत के लिए चीन दूसरा सबसे बड़ा आयातक और चौथा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। ऐसे में चीन की अर्थव्यवस्था पर सतर्क निगाहें जरूरी हैं। हमें ध्यान में रखना है कि दुनिया के कोने-कोने की अधिकांश अर्थव्य

शिक्षक का काम विद्यार्थियों को सिर्फ पाठ्यक्रम पढ़ाना ही नहीं, बल्कि उनके शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक विकास के लिए कार्य करना भी है। अभी हाल में ही दो घटनाओं ने अध्यापक के रोल पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिए, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक स्कूल शिक्षिका ने छात्रों से कक्षा के अंदर एक मुस्लिम बच्चे को थप्पड़ मारने को कहा गया था। वहीं दूसरे घटनाक्रम में कश्मीर में कठुआ जिले के एक सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक ने छात्र की इस बात पर जमकर पिटाई

बुद्धिजीवी सुकून के लिए शमशानघाट में ही ज्यादा समय व्यतीत करने लगा था। वहां लाशों के बहाने लोग बतियाते, तो उसे सुकून मिलता। हर दिन किसी न किसी शव के मार्फत बुद्धिजीवी शमशानघाट पहुंच जाता। उसने देखा कि हर शव नेताओं की ही शिकायत करता है, तो उसकी दिली ख्वाहिश हुई कि किसी नेता के शव को खोजा जाए। उसने कंधों पर बैठे नेता देखे थे, बल्कि नेता वही बना जिसे लो

यह निश्चित है कि विपक्षी दल जब तक सार्वजनिक तौर पर भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था को लेकर तुष्टिकरण की नीति का त्याग नहीं करेंगे, तब तक एकता के नाम पर देश के मतदाताओं का विश्वास आसानी से हासिल नहीं कर सकेंगे

अध्यापक हर स्तर पर अपने सम्मान को उच्चतर बनाने का प्रयास करें, ताकि कोई विद्यार्थी या अभिभावक विद्यालय को आलोचना का अखाड़ा न बनाए

बहुत दिनों बाद एक शादी में जाना हुआ। शादी में जाने का मज़ा तभी आता है अगर उचित जगह पर आयोजन हो और पार्किंग आराम से हो जाए। पंडाल के अंदर पहुंचे तो देखा चोपड़ा व शर्मा, राजकुमार के बेटे के वैवाहिक मेले में गोलगप्पे, बिना गिने खाए जा रहे थे। चोपड़ा ने समझाया, चाट

नए-नए केन्द्रीय मंत्री थे। एक पार्टी में मिल गये। प्लेट में पांच-सात गुलाब जामुन रखे बारी-बारी से गटक रहे थे। मैंने भी अपनी प्लेट भरी और उनके पास पहुंच गया। गुलाब जामुन का एक पीस पेट में जमा कर मैंने मंत्री जी से पूछा-‘क्यों साब ये अच्छे दिनों की उम्मीद कब तक की जा सकती

हमारे चिकित्सा विज्ञान की सबसे बड़ी असफलता यह है कि यह भावनात्मक घावों को समझने और ठीक कर पाने में पूरी तरह से असफल है। दावा चाहे कुछ भी किया जाए, कोई भी प्रणाली सिर्फ शरीर के इलाज तक ही सीमित है। कोई भी प्रणाली मन का पूरा और सही-सही इलाज कर पाने में पूरी तरह से विफल है और उसके लिए आध्यात्मिक उपचार के अलावा और कोई साधन है ही नहीं। अब समय आ