वैचारिक लेख

भजन-कीर्तन करते हों तो करें। माला जपते हों तो जपें। उसमें कुछ भी बदलने की आवश्यकता नहीं है। समझना सिर्फ ये है कि ये सब अध्यात्म की शुरुआती सीढिय़ां हैं। अध्यात्म में आगे तब बढ़ेंगे जब हम खुद भगवान हो जाएंगे, तो हमारा हर काम खुद-ब-खुद परमात्मा को समर्पित होता चला जाएगा। जीवन सिर्फ स्वस्थ ही नहीं होगा, खुशनुमा भी होगा और खुशहाल भी होगा। स्पिरिचुअल हीलिंग, यानी आध्यात्मिक उपचार इस मामले में हमारे लिए सबसे उपयुक्त साधन है, जो हमें हमारी मानसिकता

हिमाचल सरकार गर्मियों के सीजन में यदि चार महीनों के लिए ही सही, ऑनलाइन बुकिंग द्वारा हेलीकाप्टर सेवा और बड़ा भंगाल में पर्यटकों के रहने-खाने की व्यवस्था एक पैकेज के तहत व्यवस्थित तरीके से करे, तो निश्चित तौर पर बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आना और ठहरना चाहेंगे, जिससे न केवल बड़ा भंगाल क्षेत्र में पर्यटक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, अपितु राज्य की आर्थिकी को भी

अभी हमने सिर उठाया भी नहीं, कि उससे पहले ही उन्हें खतरा पैदा हो गया, कि ये लोग सिर उठाएंगे तो जीने की राह मांगेंगे। पीठ भरने का वसीला मांगेंगे। खोई हुई जानों का हिसाब मांगेंगे। इसलिए इससे क्या बेहतर नहीं कि ये सिर उसी प्रकार झुके रहें, और अपनी जान और माल की खैर खैरियत हमसे मांगते रहें। आप पूछ सकते हैं, कौनसी जान और कौनसा माल? क्या वह जान जो संक्रमित होकर इसलिए द

पानी आवश्यकता ही नहीं, हमारे प्राणों से जुड़ा है। इसके लिए हम सबकी पहल जरूरी है, अन्यथा आने वाले समय में क्या देश और क्या दुनिया, सभी को प्यासे ही गुजर-बसर करना होगा। जल ही जीवन है। जल के बिना कल की कल्पना नहीं की जा सकती। जल संरक्षण, वॉटर रिजार्च और जन जागरूकता ही विकल्प हैं। लोगों की भागीदारी के बिना यह संभव नहीं है...

लोकसभा के चुनाव सिर पर हैं। राजनीतिक दल अपनी-अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार मतदाताओं से वादे कर रहे हैं, किंतु ज्यादातर वादे लोकलुभावन किस्म के ही होते हैं जिनमें दीर्घकालीन जनहित का अभाव देखने को मिलता है। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में विशेषकर हिमालय और आम तौर पर पूरा देश ही संकटग्रस्त होने की स्थिति में आ गया है। बाढ़, सूखा, असमय बारिश, बर्फ बारी का कम होते जाना, ग्लेशियरों का तेज गति से पिघलना जैसे लक्षण तेज गति से फैलते जा रहे हैं। परिणामस्वरू

मैं अमुक नाम:, अमुक स्कूल:, अमुक शहर का स्वेच्छा से स्कूल मास्टरी के पेशे में आया पहला स्कूल मास्टर सूअरों के बाड़े के साथ बने किराए के कमरे में एक खास मकसद से सानंद रहता हूं। सूअरों के बाड़े के साथ बने किराए के कमरे में रहने का मेरा इरादा मेरा कम वेतन कदापि न लिया जाए। मैं अपने वेतन से पूरी तरह संतुष्ट हूं। मैं सूअरों के बाड़े के साथ बने किराए के कमरे में इसलिए रहता हूं कि रिटायर होने से पहले जो सच्ची को दो चार सूअरों को इन्सान बना गया तो मेरा स्कूल मास्टर होना सार्थक होगा।

सत्ता के गलियारों में घूमते हुए बुद्धिजीवी ने इनसान को बुत और बुत को इनसान बनते देखा है। यह सत्ता को भी मालूम नहीं कि उसके भीतर कितनी प्रतिमा और कितनी प्रतिभा है, लेकिन जब गलियारे ही आमादा हो जाएं बताने और दिखाने के लिए, तो क्षमता बढ़ जाती है। हर सत्ता का कोई ने कोई गलियारा ऐसा भी होता है, जो हमेशा बतियाता है, वरना अब सरकारें खुद को प्रतिमा बनाने में शरीक हैं, इसलिए कार्यों की मौन प्रगति बेचैन है। यहीं बेचैनी नेताओं को प्रगतिशील बता रही है या बेचैन नेता ही प्रगति के असली

इस क्रांतिकारी दल का एक ही उद्देश्य था, सेवा और त्याग की भावना मन में लिए देश पर प्राण न्योछावर कर सकने वाले नौजवानों को तैयार करना। लाला लाजपत राय जी की मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने अंग्रेज अफसर सांडर्स पर गोलियां चलाईं...

वैसे तो नेता जी की कोठी में उत्सव होना कोई नई बात नहीं है। इधर चुनावों का बिगुल बजता है, उधर नेता जी के घर उत्सव शुरू हो जाता है। दारू की पेटियां पहुंचने लगती हैं। शौकीनों की बहार आ जाती है। दो घूंट अंदर जाते ही ‘जिंदाबाद-जिंदाबाद’ के नारों से पूरी कोठी गुंजायमान हो जाती है। नेताजी के चुनाव जीतने के बाद तो उत्सव लगातार कई दिन चलता है। पूरी कोठी रंगीन लाइटों से जगमग करने लगती है। बधाई देने के लिए जब थोड़ा रुतबे वाले लोग आते हैं तो जाहिर है कि दारू के ब्रांड भी सुपीरियर हो