डा. कुलदीप चंद अग्रिहोत्री

रूस के पतन के बाद अमेरिका को लगता था कि अब वह दुनिया की एकमात्र शक्ति बन कर रह गया है। लेकिन जल्दी उसे समझ आ गया कि दुनिया में एक सिविलाईजेशनल वार भी शुरू हो चुकी है, जिसमें इस्लाम के कट्टरपंथी ईसाइयत को ललकार रहे हैं। 9/11 के बाद यह लड़ाई और तेज हो गई। विश्व की सांस्कृतिक ताकतों में भारत का भी अपना स्थान है। दक्षिण पूर्व एशिया के बौद्ध देशों व जापान को मिला कर यह तीसरा सांस्कृतिक मंच बनता है। पिछले कुछ समय से यह मंच भी सक्रिय ही नहीं हुआ है, बल्कि विश्व गुरु की आवाज भी आनी शुरू हो गई है। चीन भी अमे

इसमें कोई शक ही नहीं कि जब पश्चिमोत्तर द्वार से भारत पर अरबों, तुर्कों, मुगल मंगोलों के आक्रमण हुए तो उसको चुनौती देने वालों में से वाल्मीकि समाज अग्रणी भूमिका में था। लेकिन उससे पहले हजारों वर्षों तक इस समाज ने देश में ज्ञान की ज्योति भी प्रज्ज्वलित करने में अपनी भूमिका निभाई। दुर्भाग्य से इतिहासकारों ने न तो इस दिशा में शोधकार्य किया, न ही वाल्मीकि समाज की संरचना और उसकी गोत्र प्रणाली को समझने की दिशा में

नीतीश बाबू को इससे कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। अलबत्ता उनकी इस भागदौड़ में लालू के बेटों ने आंगन के पिछवाड़े पर कब्जा कर लिया। सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन का सारा श्रेय उन्होंने स्वयं लेना शुरू कर दिया। नीतीश बाबू का नाम ही गोल कर दिया। इंडी में पूछ प्रतीत नहीं और लालू के बेटे पीछे से घेरने लगे तो नीतीश बाबू ने बिहार विधानसभा में ही शाब्दिक अश्लील हरकतें करनी शुरू कर दीं। विधानसभा में महिला सदस्य भी बै

सदियों पहले अरबों ने ईरान पर हमला करके उसे जीत लिया था। जीत ही नहीं लिया था बल्कि उसे बलपूर्वक इस्लाम पंथ में मतान्तरित भी कर लिया था। बहुत से ईरानी उस समय मतान्तरण से बचने के लिए ईरान से भाग कर भारत में भी आ गए थे जिन्हें आजकल पारसी कहा जाता है। लेकिन अब ईरान अरबों के आगे विवश था। उसकी सभ्यता संस्कृति खत्म हो रही थी। अरबों से बदला लेने का उसे पहला अवसर तब मिला जब मुसलमानों ने हजरत मोहम्मद को दामाद हजरत अली और उनके सभी रिश्तेदारों की कर्बला के मैदान में धोखे से हत्या कर दी थी...

यह काम कनाडा को दिया गया क्योंकि विश्व राजनीति में कनाडा की औकात कुछ नहीं है। बाकी चार आंखें जमा जुबानी कनाडा की हां में हां मिलाती रहेंगी। लेकिन भारत से संबंध बिगाड़ेंगी नहीं क्योंकि चीन

गुज्जर जिसे संस्कृत में गुर्जर कहा जाता है, जितना प्राचीन शब्द है, उतना ही प्राचीन इनका इतिहास है। गुजरात और राजस्थान से इनका इतिहास जुड़ा हुआ है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू और कश्मीर में जितने गुज्जर समुदाय के लोग हैं, वे सभी किसी न किसी समय राजस्थान से ही चल कर इन स्थानों पर पहुंचे थे। मोटे तौर पर गुज्जर पशुओं का पालन करते हैं। उनको लेकर निरन्तर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। लेकिन इतने वर्षों में गुज्जर जन-समुदाय के कुछ लोगों ने घुमक्कड़ी का जीवन छोड़ कर स्थायी तौर पर भी रहना शुरू कर दिया है। स्थायी

मोदी सरकार को अपदस्थ करने में लगी शक्तियों को जानते-बूझते हुए भी, प्रधानमंत्री बनने की लालसा के चलते, राहुल गांधी हाथ में जाति का झुनझुना बजाते हुए मैदान में घूम रहे हैं...

मैरीलैंड में अंबेडकर की मूर्ति स्थापना का संकेत क्या है? भारत को भी उत्तरी अमेरिका में अफ्रीकी मूल के नागरिकों व इंडियन के अधिकारों के लिए अपनी आवाज विश्वमंचों पर उठानी चाहिए...

पिछली बार बातचीत करने के लिए नेहरू ने शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को भेजा था, इस बार उन्हीं के पुत्र और पौत्र फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला को भेजा जा सकता है।