डा. कुलदीप चंद अग्रिहोत्री

पहले चरण को सफलतापूर्वक निपटा लेने के बाद एटीएम ने देसी मुसलमान को नियंत्रित करने के लिए अपने ही मूल के विदेशी आतंकियों की सहायता ली, लेकिन दूसरे चरण में बहुत से देसी मुसलमानों को अपने साथ जोड़ लिया। जिन देसी मुसलमानों ने इसका विरोध किया, उनकी भी हत्या कर दी गई… मतांतरित होने के

गोवा को पुर्तगाली साम्राज्यवादियों से मुक्त करवाने के लिए भारतवासियों को अपने ही देश की सरकार से लडऩा पड़ा, यह इतिहास की किताबों में से गायब है। पंडित जवाहर लाल की सरकार उन सत्याग्रहियों पर गोलियां चला रही थीं जो गोवा की आजादी के लिए पुर्तगाली शासन के खिलाफ मोर्चा लगा रहे थे। राम मनोहर

भारतीय देसी मुसलमान भी एटीएम की इस दुर्भावना को पकड़ नहीं पा रहे हैं। ताज मोहम्मद एटीएम की इसी दुर्भावना पर व्यंग्य कसते हुए लिखते हैं, ‘ये सैयद साहिब हालांकि अपनी अपील में मुसलमानों के बीच जाति विशिष्टता के खिलाफ दलील देते दिखाई पड़ते हैं परंतु व्यावहारिक उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने स्वयं अपने

टीटीपी की शर्त थी कि पाकिस्तान सरकार ट्रायबल क्षेत्र उसके हवाले कर दे। इसका मतलब था कि पाकिस्तान सरकार खैबर पख्तूनखवा पर अपना दावा छोड़ कर उसे टीटीपी के हवाले कर दे। बातचीत फेल हुई तो टीटीपी के हमले भी तेज हो गए। ये हमले पाकिस्तान में ही तेज नहीं हुए बल्कि अफगानिस्तान में भी

इसीलिए वे चिल्ला कर गला हलकान किए हैं, मैं उनकी खड़ाऊं लेकर आ गया हूं, राम भी पीछे आ रहे हैं। इन्हीं लोगों ने अरसा पहले राहुल गांधी के गले में कमीज से ऊपर जनेऊ पहना देने का कांड भी किया था। इनका दर्द समझ में आता है, लेकिन राहुल गांधी को सत्ता छिन जाने

मोती लाल मेहरा परिवार समेत जि़न्दा जी कोल्हू में पेर दिया गया। गुरु गोबिंद सिंह जी को बाद में इस बात का पता चला तो उन्होंने सामने बैठी संगत की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘इन पुत्रन के सीस पर वार दिए सुत चार। चार मुए तो क्या हुआ, जब जीवत कई हज़ार।’ भारत सरकार

यह भी कहा जा रहा है कि निचले हिमाचल में तो भाजपा को भाजपा ने ही हराने का काम किया है। हमीरपुर, ऊना और बिलासपुर में यही खेल चलता रहा। उसके बावजूद इन तीनों जिलों में दोनों दलों को मिले वोटों में कोई ज्यादा अंतर नहीं रहा। एक तटस्थ विश्लेषक ने सही कहा कि जनता

कश्मीर घाटी में देसी कश्मीरियों व एटीएम में शेर-बकरा का यह खेल इतने दशकों से चल रहा है। शेख अब्दुल्ला कश्मीरियों का साथ छोड़ कर एटीएम के हाथों के खिलौना बन गए… कश्मीर में चल रहे घटनाक्रम को समझने के लिए अरब, तुर्क, मुग़ल (एटीएम) और कश्मीरी मुसलमानों के बीच सदियों से चल रहे संघर्ष

यदि कोई कला अपने युग को उत्तर नहीं देती तो वह कला न रह कर वल्गर बन जाती है। मुझे नहीं पता लैपिड अपनी फिल्मों में अपने युग को कितनी अभिव्यक्ति देते हैं लेकिन क्या वे सचमुच मानव को, उसके भाव प्रकटीकरण की प्रक्रिया को जानते भी हैं? यह दोष लैपिड का नहीं है बल्कि