आपके लिए धर्म का अर्थ क्या?
– खुशवंत सिंह, लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं
हमारा सरोकार इस बात से होना चाहिए कि हम इस धरती पर अपने जीवन में क्या करते हैं। मैंने जिंदगी के बारे में जो कुछ सुना है, वह बीच की बात है। न तो इसकी शुरुआत जानता हूं, न अंत…
मेरा सुझाव है कि धार्मिक त्योहारों पर मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर और गुरुद्वारों में जाने और पूजा-पाठ करने के बाद लोगों को थोड़ा वक्त आधे घंटे से ज्यादा नहीं, अकेले में बिताना चाहिए और अपने आप से पूछना चाहिए, मेरे धर्म का मेरे लिए वास्तविक अर्थ क्या है। हिंदू राम नवमी या दिवाली पर, मुसलमान ईद पर, ईसाई क्रिसमस पर और सिख सिख धर्म के जन्मदाता गुरुनानक के जन्मदिन पर यह कर सकते हैं। मैं सिख धर्म के प्रति अपनी सोच की व्याख्या करता हूं। मैं एक सिख के रूप में पैदा हुआ और पला बढ़ा। मैंने अपनी दैनिक प्रार्थना सीखी और इसे दिल से बोल सकता था। मैं प्रार्थना करने के लिए गुरुद्वारे जाता था और धार्मिक जुलूसों में भी भाग लिया करता था। मैं स्कूल और कालेज में कई दिनों तक इसका पालन करता रहता था। लाहौर में सात साल रहने और मंजूर कादिर से निकट संबंध होने के कारण मैंने सभी धर्मों की बहुत सी बातों पर सवालिया निशान लगाना शुरू कर दिया। वह मुसलमान थे, लेकिन घर या मस्जिद में नमाज पढ़ने नहीं जाते थे, यहां तक कि ईद पर भी नहीं। न ही उनके अंकल सलीम यह सब करते थे, जो कई साल तक भारत के टैनिस चैंपियन रहे और एक यूरोपियन की तरह रहना पसंद करते थे, न कि मुस्लिम नवाब की तरह। मुसलमान होने का मतलब उनके लिए एक धर्म में जन्म लेने के अतिरिक्त कुछ नहीं था। उनमें से किसी ने भी धर्म को मुद्दा नहीं बनाया। मैंने बनाया। भारत को जब आजादी मिली, मैंने अपने आप को धर्म की रूढि़यों से आजाद कर लिया और खुलेआम अपने आप को नास्तिक घोषित कर लिया। कहना न होगा कि कई वजह से धर्मों में मेरी रुचि कम नहीं हुई। मैंने सभी धर्मों के ग्रंथों को पढ़ा। अपने धर्म का बहुत कुछ अनुवाद किया और अमरीकी विश्वविद्यालय जैसे कि प्रिंसटन, स्वार्थमोर और हवाई में तुलनात्मक धर्म पढ़ाया। इस विषय में अभी भी मेरी रुचि है। गुरुनानक के जन्मदिन (21 नवंबर) पर मैंने इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की- मैं कितना सिख हूं? और जवाबों की सूची तैयार की। हालांकि मैं अपने कोई धार्मिक रीति-रिवाज नहीं मानता, सिख समाज के प्रति मेरे अंदर अपनेपन की भावना है। इसके साथ जो भी होता है, उसका मुझ पर असर होता है और उसके बारे में बोलता या लिखता हूं। मैं समझता हूं कि हम कहां से आए और मृत्यु के बाद कहां जाएंगे, यह समय बर्बाद करने जैसा है। किसी को जरा सा भी अंदाजा नहीं है।
हमारा सरोकार इस बात से होना चाहिए कि हम इस धरती पर अपने जीवन में क्या करते हैं।
एक उर्दू शेर में क्या खूब कहा है ः
हिकायत-ए-हस्ती सुनी, तो दर्मियान से सुनी
न इब्तिदा की खबर है, न इंतेहा मालूम
मैंने जिंदगी के बारे में जो कुछ सुना है, वह बीच की बात है। न तो इसकी शुरुआत जानता हूं, न अंत।
मैंने अपनी समझ के मुताबिक सिख धर्म को ग्रहण किया है। मैं इस धर्म के आधार पर सत्य को मानता हूं, जिसे जीवन के लिए आवश्यक समझता हूं, जैसा कि गुरु नानक ने कहा-
सुच्चों उरे सबका उपर सच्च आचार
सबसे ऊपर सत्य है, सत्य के ऊपर सच्चा व्यवहार है
मैं झूठ न बोलने की भरकस कोशिश करता हूं। यह झूठ बोलने से ज्यादा आसान है, क्योंकि एक झूठ को ढकने के लिए दूसरे झूठ बोलने पड़ते हैं। सच बोलने के लिए दिमाग पर जोर नहीं लगाना पड़ता। अपनी कमाई खुद करो और इसमें से कुछ दूसरों में बांटो गुरु नानक ने कहा-
खट-घाल किच्छ हत्थों दे नानक रहा पछाने से
जो अपने हाथों से कमाता है और अपने हाथों से दे देता है, नानक कहते हैं, उसे सच्ची राह मिल गई है। मैं कोशिश करता हूं कि दूसरों की भावनाओं को चोट न पहुंचे। अगर मैंने ऐसा किया भी होता, तो मैं साल खत्म होने से पहले माफी भी मांग लेता हूं। मैंने तो ‘चड़दी कला’ का रास्ता अपनाया है कि हमेशा खुश रहा जाए, कभी मरने की बात न की जाए। इस पर विचार कीजिए और चलने की कोशिश कीजिए।
शोर से खुश होता देश
कभी-कभी मैं सोचता हूं कि मेरा बढ़ता हुआ बहरापन शायद मेरे लिए वरदान भी हो सकता है। यह वरदान दिवाली से एक हफ्ता पहले और दिवाली के एक हफ्ता बाद महसूस होता है। पहले सप्ताह में लोग पटखों की आजमाइश करते हैं, दिवाली की रात को वह बुराई के खिलाफ लड़ाई में उन्हें जला देते हैं, उसके एक हफ्ते तक वह बचे हुए पटाखे फोड़ते रहते हैं। अपने फ्लैट के चारों तरफ रहने वाले कुत्ते, बिल्ली और कबूतरों की तरह मुझे भी पटाखों के शोर से एलर्जी है। मेरे साथ एक फायदे की बात यह है कि मैं हीयरिंग एड इस्तेमाल कर सकता हूं, जो सुविधा मेरे साथी पशु पक्षियों को नहीं है। जब भी मुझे लगता है कि पटाखों का शोर बर्दाश्त से बाहर है, तो मैं मशीन निकाल लेता हूं और मेरे चारों तरफ खामोशी छा जाती है। मुझे दिवाली के पखवाड़े के दौरान कई बार इसका इस्तेमाल करना पड़ा। मेरे बदकिस्मत पशु और पक्षियों के पास शोर से बचने का कोई रास्ता नहीं था। कुत्ते गुर्राते रहते, बिल्लियां कोने में दुबक जातीं, कबूतर गहरे अंधकार में उड़ जाते, बिना यह बात जाने कि रात में कहां बसेरा होगा। हीयरिंग एड का इस्तेमाल मैं तब भी करता हूं, जब कोई बातूनी मुझसे मिलने आता है। अपने हीयरिंग प्लग निकालने के लिए मुझे अपने हाथों को तरकीब से घुमाना पड़ता है और अपनी आंखों में चमक लानी पड़ती है, मुझे यह दिखाना पड़ता है कि मैं उस बातूनी की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा हूं। जब बह अचानक बोलते हुए रुक जाता है, तो यह निष्कर्ष निकालता हूं कि उसने मुझसे कोई सवाल पूछा होगा, जो मैं सुन नहीं सका। मैं जल्दी से हियरिंग एड खिसका लेता हूं और उसे दोबारा बोलने को कहता हूं। ‘क्या तुमने सुना जो मैंने कहा, तब मुझे यह स्वीकार करना पड़ता है कि नहीं मैंने एक शब्द भी नहीं सुना। मैं बहरा हूं और मैंने कान में हीयरिंग एड नहीं लगा रखे थे और वह दोबारा वह सब कुछ दोहराते हैं, क्योंकि बातूनियों को अपनी बातें सुनाने से ज्यादा और कुछ अच्छा नहीं लगता और जो अच्छे खासे बोर होते हैं।
जवान संभाल के
लोकसभा अध्यक्ष ने चिल्लाते सांसदों से कहाः कृपया हाउस में असंसदीय भाषा का इस्तेमाल
न करें।
सांसद ः ‘अजीब बात है मेरी पत्नी भी अकसर कहती है हाउस में असंसदीय भाषा का इस्तेमाल न करें।’
(जीएस राठौर ने खन्ना, लुधियाना से भेजा)