खेलों में अभी भी पिछड़े हैं प्रदेश के विश्वविद्यालय
– भूपिंदर सिंह, लेखक, पेनल्टी कार्नर खेल पत्रिका के संपादक हैं
अगर पंजाबी विश्वविद्यालय की तरह खेलों को बढ़ावा देना है, तो हमें अधिक से अधिक खेल प्रशिक्षक तथा खेल विंग राज्य में चलाने होंगे, खिलाडि़यों के लिए वजीफे का प्रबंधन करना होगा, जिससे वे अपनी खुराक तथा खेल किट खरीद सकें…
जहां स्कूली खेलों को खिलाडि़यों की नर्सरी कहा जाता है, वहीं पर विश्वविद्यालय खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी भविष्य की उच्च स्तरीय अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के नायक होते हैं। पंजाब के विश्वविद्यालयों में पंजाब, चंडीगढ़, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला तथा गुरुनानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर के खिलाड़ी अंतर विश्वविद्यालय खेलों की सर्वोच्च ट्राफी को कई बार जीतकर यह सिद्ध कर चुके हैं कि खेलों के लिए उचित प्रशिक्षण तथा प्रबंधन उनके पास है। हिमाचल प्रदेश में सरकारी तीन विश्वविद्यालय पिछले कई दशकों से हिमाचल को शिक्षित कर रहे हैं। कृषि में पालमपुर तथा उद्यान व वानिकी के लिए सोलन के नौणी में विश्वविद्यालय हैं। इन विश्वविद्यालयों में व्यवसायी कोर्स होने के कारण वहां पर खिलाड़ी बनना या बनाना बहुत दूर की बात है। हां यहां पर खेल प्रतियोगिताएं जरूर आयोजित होती रहती हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के अंतर्गत राज्य के सभी डिग्री कालेज आते हैं। यह विश्वविद्यालय लगभग हर खेल की प्रतियोगिता जरूर करवाता है। अंतर विश्वविद्यालय खेल प्रतियोगिताओं में भी प्रतिनिधित्व जरूर करवाता है। मगर खेल सुविधाओं तथा प्रशिक्षण के अभाव में इसके खेल परिणाम अन्य विश्वविद्यालयों के मुकाबले में बहुत पीछे हैं। यहां पर चंद नाम हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे हैं या राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत सके हैं। प्रदेश विश्वविद्यालय को पहली बार ऊना के भवानी अग्निहोत्री ने 5000 मीटर व 10,000 मीटर की दौड़ों में स्वर्ण पदक अंतर विश्वविद्यालय एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में तीन पदक दिलाए थे। उसके बाद सुमन रावत, कमलेश कुमारी, पुष्पा ठाकुर, वनीता ठाकुर, आशा कुमारी, रीता कुमारी, मंजु कुमारी, प्रोमिला देवी तथा संजो देवी ने महिलाओं में प्रदेश के लिए पदक जीते हैं। लड़कों में सुंदर लाल, अमन सैणी, अजय लखनपाल, रितेश रतन, दिनेश कुमार, प्रवीण कुमार व राकेश ने एथलेटिक्स में पदक जीते हैं। उपरोक्त धावकों में से सुमन रावत ने 1986 के एशियाई खेलों में 300 मीटर की स्पर्धा में देश के लिए कांस्य पदक जीता था। कमलेश कुमारी एशियाड या ओलंपिक के लिए क्वालीफाई तो नहीं कर सकी थीं, मगर 1989 में दिल्ली में आयोजित हुई एशियाड ट्रैक एंड फील्ड में 1500 मीटर दौड़ कर देश का प्रतिनिधित्व कर गई हैं। अमर सैणी ने कई बार क्रास कंट्री व लंबी दूरी की दौड़ों में राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल के लिए पदक जीते तथा एशियाड क्रास कंट्री तथा 2003 में हैदराबाद की एफ्रो एशियन खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया है। पुष्पा ठाकुर ने 400 मीटर की दौड़ में लगातार एक दशक तक फाइनल में पहुंचकर राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल को तेज गति की दौड़ों में पदक दिलाया है तथा वह 2004 ओलंपिक के ट्रायल में क्वालीफाई मार्क को पास भी कर गई थीं। संजो देवी ने अंतर विश्वविद्यालय एथलेटिक्स में बललूर 2007 में जनवरी में भाला प्रक्षेपण में नया कीर्तिमान बनाकर वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्ज के लिए क्वालीफाई कर लिया था। इस समय ये धाविकाएं लगभग हर वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रही हैं। मुक्केबाजी में शिव चौधरी, मान सिंह, सोहन सिंह आदि कई नाम हैं, जो हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के लिए अंतर विश्वविद्यालय स्तर पर पदक जीत चुके हैं, मगर एशियाड व ओलंपिक तक कोई नहीं पहुंच पाया है। वालीबाल में जागीर सिंह रणधावा का नाम है, जो हमीरपुर कालेज में पढ़कर फिर पंजाब चला गया था और एशियाड खेलों तक पहुंचा है। इस समय पूजा ठाकुर तथा अजय ठाकुर अच्छा प्रदर्शन कबड्डी में कर रहे हैं। पूजा ठाकुर इस समय देश की सबसे अच्छी कबड्डी खिलाड़ी हैं, मगर दुर्भाग्य कहें कि वह आज जब एशियार्ड हो रहा है, तो घुटने के आपरेशन के कारण घर बैठी हैं। खेल छात्रावासों के कारण कुछ खेलों में अंतर विश्वविद्यालय स्तर पर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। अगर पंजाबी विश्वविद्यालय की तरह खेलों को बढ़ावा देना है, तो हमें अधिक से अधिक खेल प्रशिक्षक तथा खेल विंग राज्य में चलाने होंगे, खिलाडि़यों के लिए वजीफे का प्रबंधन करना होगा, जिससे वे अपनी खुराक तथा खेल किट खरीद सकें। यहां पर अच्छी स्तरीय प्ले फील्ड तैयार करवानी होगी तभी हम पड़ोसी राज्य पंजाब व हरियाणा की बराबरी कर सकते हैंं। विश्वविद्यालय खेल परिषद, खेल विभाग तथा खेल संघ तीनों मिलकर काम करें, तो अच्छे परिणाम आ सकते हैं।