भ्रष्टाचार और जनता की मुश्किलें
– डा. अश्विनी महाजन, लेखक, पीजीडीएवी कालेज दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं
टेलिकाम क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास के फलस्वरूप भ्रष्टाचार के ज्यादा अवसर भी वहीं सबसे ज्यादा हैं। लगभग दो दशक पहले केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम से वर्तमान संचार मंत्री ए राजा तक के घोटालों की कहानी इस बात को साबित करती है…
पिछले लगभग अढ़ाई वर्षों से 2-जी स्पेक्ट्रम के आबंटन से जुड़े घोटालों की चर्चा बार-बार उठती रही है। हाल ही में भारत के महालेखाकार एवं अंकेक्षक (कैग) द्वारा उजागर तथ्यों से इन घोटालों के कारण राजकोष को हुए नुकसान की मात्रा भी तय हो गई है। कैग का कहना है कि टेलिकाम मंत्रालय द्वारा किए गए स्पेक्ट्रम के इस विवादास्पद आवंटन के कारण सरकार को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इससे पहले माननीय उच्च न्यायालय ने भी इस स्पेक्ट्रम आबंटन को गैर कानूनी करार दिया था। कुछ दिन पूर्व उच्चत्तम न्यायलय ने इस बाबत प्रधानमंत्री की चुप्पी पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। संसद में जेपीसी की मांग हो रही है और देश में एक चर्चा प्रारंभ हुई है।
देश में यह कोई पहला घोटाला नहीं है। तेलगी घोटाले में हुए राजस्व के नुकसान का अभी आकलन भी नहीं हो पाया है, लेकिन यह भी कोई 50 हजार करोड़ से कम नहीं है। बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा करों पर चोरी पर सरकारी चुप्पी पर समय-समय पर आवाजें उठती रही हैं, लेकिन इन सबके बावजूद हमारा व्यवस्थागत ढांचा इस बाबत कुछ नहीं कर पाया। आम जनता भ्रष्टाचार के अस्तित्व को लेकर शायद हालातों से समझौता कर चुकी है। इसलिए किसी भी बड़े घोटाले पर संसद और विधानसभाओं में हो-हल्ला तो होता है, लेकिन कोई समाधान नहीं होता। राजकोष को हुए नुकसान की भरपाई तो दूर की बात है, लेकिन असली दोषी राजनेता और अफसरशाही पाक साफ बच कर निकल जाती है। ऐसा लग रहा था कि सूचना के अधिकार को लागू किए जाने के बाद भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा, लेकिन शायद अफसरशाही और राजनीतिज्ञों ने उसका भी हल निकाल लिया है। लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन की तैयारी में हुए भ्रष्टाचार के चलते ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल द्वारा भारत पर पारदर्शिता सूचकांक फिर घटकर 3.3 तक पहुंच गया है। अब जबकि कैग ने 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले का पर्दाफाश कर दिया है, यह पारदर्शिता सूचकांक और अधिक घट सकता है। वैसे तो आज भी ईमानदारी और पारदर्शिता के संबंध में हमारा देश अभी भी 178 देशों की सूची में 87वें स्थान पर आता है। ऐसी आशंका है कि कहीं यह दुनिया के भ्रष्टतम देशों में न गिना जाने लगे। विडंबना यह है कि दुनिया में अधिकतर भ्रष्टतम देश गरीब देश होते हैं। अमीर मुल्कों में कानून और व्यवस्था नियमों का अनुपालन करवाने वाली होती है, जिसके चलते वहां भ्रष्टाचार कम और ईमानदारी ज्यादा होती है। इसका अभिप्राय यह भी कहा जा सकता है कि विकास के साथ-साथ ईमानदारी का सूचकांक भी बढ़ता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के विपरीत भारत में बढ़ती राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय के बावजूद भ्रष्टाचार का सूचकांक भी बढ़ रहा है। देश के लोगों की प्रतिभा और अथक मेहनत से प्रगति तो हो रही है, उपयोग भी बढ़ रहा है, लेकिन लचर राजनीतिक और कानून व्यवस्था देश में ईमानदारी और पारदर्शिता लाने में सक्षम दिखाई नहीं दे रही। इसका लाभ तंत्र में भ्रष्ट राजनेता और अफसर उठाते हैं और देश की प्रगति का लाभ आम जनता तक पहुंचने में यह एक बहुत बड़ा अवरोध है। देश में बढ़ते उत्पादन और आमदनियों के कारण राजस्व में भी अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए केंद्र सरकार का कर राजस्व जो 1980-81 में मात्र 9390 करोड़ था, 2010-11 में 534000 से भी ऊपर पहुंच चुका है। यानी 40 वर्षों में 55 गुणा से भी ज्यादा वृद्धि, लेकिन गैर कर राजस्व में यह वृद्धि मात्र 43 गुणा हुई है। टेलिकाम का क्षेत्र हो अथवा खनन से रोयाल्टी इन सबसे बहुत कम राजस्व में वृद्धि हुई है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि जिन सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को उनकी अक्षमता के लिए दोषी ठहराया जाता है, उनके द्वारा राजस्व में पहले से कहीं ज्यादा योगदान दिया जा रहा है। टेलिकाम क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास के फलस्वरूप भ्रष्टाचार के ज्यादा अवसर भी वहीं सबसे ज्यादा हैं। लगभग दो दशक पहले केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम से वर्तमान संचार मंत्री ए राजा तक के घोटालों की कहानी इस बात को साबित करती है। इन घोटालों का आम आदमी की जिंदगी से सीधा-सीधा संबंध है। राजस्व की कमी के कारण सरकार को घाटे का बजट बनाना पड़ता है। वर्ष 2010-11 के बजट में लगभग चार लाख करोड़ रुपए का घाटा रहने वाला है। पिछले वर्ष भी यह घाटा चार लाख करोड़ से अधिक था। इतने बड़े घाटे को पूरा करने के लिए सरकार ऋण लेती है, जो हमारी आगे की पीढि़यों को ऋणग्रस्त बनाती है। जब सरकार द्वारा जनता से ऋण लेना संभव नहीं होता, तो ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण लेकर काम चलाना पड़ता है। भारतीय रिजर्व बैंक इसके लिए अतिरिक्त नोट छापता है। इससे देश में मुद्रा की पूर्ति बढ़ती है और जो मुद्रा स्फीति यानी महंगाई का मुख्य कारण है। यदि वर्तमान टेलिकाम घोटाला न हुता होता, तो कैग के अनुसार 1.76 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हो सकता था। यदि ऐसा होता, तो हमारा राजकोषीय घाटा 1.76 लाख करोड़ रुपए कम होता। ऐसे में न तो अतिरिक्त नोट छापने पड़ते और भविष्य की पीढि़यों पर कर्ज का बोझ भी कम पड़ता यानी भ्रष्टाचार आज की महंगाई और बढ़ते सरकारी कर्ज का मुख्य दोषी कहा जा सकता है।
कुछ समय पूर्व सरकार द्वारा शिक्षा के अधिकार संबंधी विधेयक पारित करवाया गया। हम जानते हैं कि भारत के संविधान के निदेशक सिद्धांतों के अनुसार सरकार से अपेक्षा रखी गई थी कि प्राथमिक शिक्षा सभी को उपलब्ध करवाई जाएगी। संविधान के लागू होने के 60 वर्ष के बाद तक हम सभी को प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित नहीं करवा पाए। वर्तमान आकलन के अनुसार सरकार को मात्र 30 हजार करोड़ रुपए खर्च करने होंगे और शिक्षा का अधिकार सभी देशवासियों के लिए सुनिश्चित हो जाएगा और यह राशि टेलिकाम घोटाले की राशि का मात्र छठा हिस्सा है। आज सरकार उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से मुख मोड़ रही है और आम आदमी को शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए निजी संस्थानों के आसरे छोड़ दिया गया है। वर्ष 2010-11 के अनुसार सरकार द्वारा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर मात्र 23530 करोड़ रुपए ही खर्च करने का प्रावधान रखा गया है। एक मोटे अनुमान के अनुसार यदि सरकार मात्र 30 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च करे, तो उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को आम आदमी के लिए मुहैया करवाया जा सकेगा। आज हमारे देश में एक लाख में से 230 माताएं अपने बच्चे को जन्म देने से पहले इस संसार से विदा ले लेती हैं। आज भी एक हजार में से 66 बच्चे अपना पांचवां जन्मदिन भी नहीं मना पातो। इन सभी परिस्थितियों में सुधार तभी संभव है, जब देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो।