दोनों हाथ खाली थे
(जग्गू नौरिया, सोलन)
कोयला घोटाला दिखा रहा, कोयले जैसा रूप, हर रोज ठप हो रही संसद
बर्बाद हो रहा जनता का धन मूल
धन की बर्बादी करना भी घोटाले का ही है रूप
फिर क्यों इस बात को नेता गए भूल
या सिर्फ शोर मचाना, मीडिया में रहना
बना लिए नेताओं ने असूल
संसद चलाओ, बहस को आगे बढ़ाओ
ऐसा कुछ करो हुजूर, बेनकाब करो लुटेरों को, संसद में हो जाए घोटाले कबूल
हर बात की है एक हद होती
कफन में कभी जेब नहीं होती
घोटालेखोरों इस बात को क्यों रहे हो भूल, सिकंदर ने भी एक समय थी मचाई लूट, दोनों हाथ उसके खाली थे
जग गया जब उससे छूट