पर्यावरण को बचाना है तो
(कृष्ण संधु, कुल्लू)
जितना भी कूड़ा-कचरा और दूसरा जैविक वेस्ट लाखों टनों में देश में पैदा हो रहा है उसे यदि रिसाइकिल नहीं किया जाता तो याद रखें यह कूड़ा-कचरा वातावरण, पानी और जमीन को ऐसा प्रदूषित कर देगा कि इस धरती पर रहने वाले हर प्राणी को मौत के जबड़ों में जाने से कोई नहीं बचा पाएगा। पश्चिमी देशों खास कर अमरीका सरीखे देश, जहां की व्यवस्था इतनी जागरूक और सजग है व उनकी सोच इतनी आगे है कि उन्होंने इसका तोड़ भी ढूंढ लिया है और इस जानलेवा कचरे को बिजली बनाने में प्रयोग किया जाने लगा है। इस कचरे को प्रयोग करने के बाद जो वेस्ट बचता है, वह एक उत्तम खाद के रूप में होता है, जिसमें पेड़-पौधों के लिए जरूरी खनिज होते हैं। इस तरह इस पावर हाउस से जो थोड़ी-बहुत कार्बन गैस पैदा हो रही है उसे वे पेड़ सोख लेते हैं, जिन्हें पावर हाउस से बचे हुए वेस्ट रूपी खाद की खुराक मिलती है। क्या हमारे देश के योजनाकारों के दिमाग में यह सोच कभी आ पाएगी या जमीनें खोद कर कोलगेट जैसे स्कैंडल होते रहेंगे या पहाड़ों का सीना चीर कर और लाखों लोगों को उनके घरबार से बेघर करके किया बिजली पैदा करने का जुगाड़ होता रहेगा? यानी लाखों टन कचरा ठिकाने लगाकर यदि कुछ लाभ हो तो जरूरी तौर पर इसे अपनाया जाना होगा या फिर नदी से लेकर पहाड़ की चोटी तक फैले कचरे को यदि समय पर संभाला नहीं जाता है, तो इस कचरे की सड़ांध से लाखों लोग बेमौत मारे जाएंगे।