महल की रोशनी
(शेर सिंह मेरुपा, सुल्तानपुर, कुल्लू)
महल के भीतर
तभी तो देश का हाल है बदतर
गरीबी और बेरोजगारी के साथ
सपने अब सपनों में ही पूरे होंगे
अब यही हमारे राष्ट्रीय प्रतीक होंगे
एक रोटी तोड़ेगा
निन्यानवे लोग उसके आगे हाथ जोड़ेंगे
या तो सांसें छोड़ेंगे
या छीना झपटी की ओर खुद को मोड़ेंगे
अगर मायूसियां बढ़ती गईं
शायद ऐसी चादर भी ओढ़ेंगे
व्यवस्था के हर किताब में होगा मकड़ी का जाला
जब नजर न आएगा निवाला
सभी संभालेंगे धनुष तीर
और हर तरफ होगी बेकाबू भीड़।